-रुचि भल्ला
जाने क्या बात है इन दिनों कि सड़क सड़क से मुझे मोहब्बत हुई जाती है. सड़क को उठाकर गले लगाने का जी करता है. सड़क है कि दुनिया की मोहब्बत में बिछी रहती है. वैसे तो सड़क हवाई यात्रा भी करा आती है. वहां भी रहती है जहां से हवाई जहाज आसमानी उड़ान भरता है. जल समन्दर के भीतर जाने का वह रास्ता दिखा देती है पर ज़मीन से सटकर रहना उसने जीवन में चुना है.
वो Down to Earth सी सड़कें
सड़कें हर हाल Down to Earth होती हैं. सारी दुनिया का बोझ उठाती हैं. पलक झपका लें इतना भी नहीं वे सोती हैं. जागती सड़कें रात में चांद के साथ तो दिन में सूरज की हमकदम हो जाती हैं. हमकदम सड़क पर चलते हुए मुझे यकायक एक तस्वीर मिल गई थी. वह ऐसे मिली जैसे सरेराह चलते हुए कोई एक रुपये का सिक्का पा जाता है. सिक्के सी चमकती वह रुपहली तस्वीर थी. वह तस्वीर नये साल का जश्न मनाती पुरानी सड़क पर थी.सातारा रोड पर थी. जहां सड़क पर किसी ने अपने हाथ से नये साल की नई तारीख लिख दी थी. लिखा था नया साल 2022...
नए साल की नई सड़क
वह 2022 मेरी आंखों के आगे सड़क पर ऐसे चला आ रहा था जैसे धरती पर आने के लिए उसने सदियों का रास्ता देखा था. हैरत होती है कि नये साल को भी आने के लिए दुनिया की पुरानी चलती सड़क पर आना होता है. चलती सड़क पर मैंने मिर गांव के कृषक दशरथ को भी देखा था. सतारा रोड पर साइकिल चलाते हुए वह अपने गांव की हद के बहुत करीब मिले थे. वैसे भी एक किसान अपनी धरती से जुड़ा होता है. धरती की धुरी पर घूमती सड़क पर वह साइकिल चला रहे थे. मेरे देखते-देखते वह वहीं सड़क के किनारे उतर गए थे.
सातारा रोड के माइल स्टोन्स
बरसों पुराना वहां गांव का मंदिर बना हुआ था. वह मंदिर सड़क से इस कदर जुड़ा था जैसे सड़क पर उसकी निगहबानी हो. सादा दिल बने उस मंदिर की बाहरी दीवार पर एक फूल और एक पक्षी का चित्र बना हुआ था. मंदिर के सामने खुली ज़मीन पर कुछ शिलापट्ट टिके हुए थे. हर शिलापट्ट पर पत्थर के चित्र उकेरे हुए थे. वे चित्र जैसे बीते समय की उस पर लिखी कविता समझ लीजिए या भूली बिसरी कथा. उन्हें नज़र भर देखिए वे आंखों -आंखों में बात करते थे. एक समय का वे हस्तलिखित साक्ष्य लगते थे. सतारा रोड के वे माइल स्टोन्स थे.
जब बीच राह में रुककर मैं वे शिलापट्ट देख रही थी तब कृषक दशरथ मंदिर के भीतर जाकर हाजिरी लगा रहे थे. वह मंदिर जिसकी एक तरफ़ चलती सड़क थी तो दूसरी ओर कीकर का जंगल खड़ा था. उस घने जंगल के बीच मुझे अचानक कब्रगाह दिखाई दी थी. गौर से देखने पर ही वह कीकर के झाड़ के बीच नज़र आती थी, जबकि वह मंदिर के बहुत पास थी.
कृषक दशरथ ने बताई जीवन की परिभाषा
मंदिर के पास कब्रगाह को देखते हुए जब मुझे कृषक दशरथ ने देखा तो खुद ही कह उठे थे कि हमारे गांव की बस्ती में हिन्दू-मुस्लिम सब साथ -साथ रहते हैं. इस धरती पर हम सबका बराबरी का हक और भाईचारा है. बराबर भी क्या हम दोनों एकच हैं. एक ही हैं हम दोनों. हम दोनों में कोई अंतर नहीं है. अलग सिर्फ़ काम के आधार पर होते हैं. अपने -अपने काम का अपना -अपना हिस्सा होता है. अपने हिस्से का सबका काम है. कोई खेती करता है तो कोई मटन की दुकान खोल लेता है. जिसके हाथ जो काम आए, वह वही काम करता है. काम जीवन जीने का आधार है. बड़ी सरलता से सरल भाषा में कृषक दशरथ जीवन की सरल परिभाषा बता रहे थे. वह बोल रहे थे, मैं सरेराह उन्हें देख रही थी. देख रही थी कि वह खेत में हल ही नहीं चलाते, भाईचारे का बीज भी बोया करते हैं.
(रुचि भल्ला लेखिका हैं. वह शानदार फ़ोटोग्राफर भी हैं. रुचि महाराष्ट्र के फलटण कस्बे में रहती हैं. यह लेख उनके फेसबुक वॉल पर पोस्ट की गई 'फलटण डायरी' की एक किश्त है. हम इसे यहां साभार प्रकाशित कर रहे हैं.)