- देवेश
जिस धोबी को कपड़े इस्त्री करने को देता हूं, उनकी आयु व आकार-प्रकार और अपने संस्कार की वजह से अंकल जी कहता हूं. ज़ाहिर सी बात है उनकी अर्द्धांगिनी को आंटी जी ही कहूंगा. दोनों स्वभाव के दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े हैं. अंकल जी चिड़चिड़ेपन का साक्षात अवतार हैं और आंटी जी के चेहरे पर हमेशा कुटिल मुस्कान रहती है लेकिन कम शब्दों में वे ऐसी बात करती हैं कि अंकल जी सुलग कर रह जाते हैं.
अभी कुछ देर पहले मैं एक पैंट-शर्ट लेकर पहुंचा तो अंकल जी ने दूर से देखते ही कहा कि अब लेकर चले आ रहे हो, कल मिलेगा कपड़ा. उनके बगल में ही बैठी आंटी जी के भरोसे मैं आगे बढ़ता गया और तभी आंटी जी ने कहा ' बेटा ले आओ, अभी हो जाएगा.’
अंकल पैर पटकते हुए घर के अन्दर चले गये. आंटी ने मुझसे कहा रुको अभी इस्त्री कराके लेकर जाओ. अंकल पुनः प्रकट हुएऔर मेरी शर्ट को टेबलशायी करते हुए उन्होंने उसपर पानी के दो-चार छींटे मारे और गरमागरम प्रेस उठाकर मुँह पर वितृष्णा का भाव लाते हुए मुझसे बोले, 'मेरे घर वाले *****समझते हैं कि मैं काम नहीं करना चाहता..!' (सितारों के स्थान पर आप दिल्ली-हरियाणा की प्रचलित गाली suppose करें)! बेटा पिछले साल मेरे पेट में रोग हो गया था. डॉक्टर ने ऑपरेशन किया. सत्रह टाँके आए!'
क्या हुआ था अंकल?
मैंने पूछा अंकल कौन सा रोग हुआ था? अंकल ने जैसे ही हर्निया बोला, आंटी बीच में ही बोल पड़ीं कि एक फोड़ा हुआ था बेटा, उसको ये हर्निया कहते हैं!
अंकल ने तिलमिलाते हुए प्रेस शर्ट पर रखकर दोनों हाथों के भरपूर प्रयोग के साथ बातचीत करने का फैसला लिया और मैं जॉन प्लेयर्स के निर्माताओं के कारीगरी की सफलता की दुआ करने लगा. अंकल ने स्वेटर समेत अपनी शर्ट ऊपर करते हुए अपने उदर के एक छोर से दूसरे छोर तक उँगली से एक काल्पनिक रेखा खींचते हुए आंटी को उपरोक्त गाली देते हुए कहा कि फोड़ा इतना बड़ा होता है क्या? मैंने प्रेस को शर्ट से खुद ही हटाते हुए कहा कि अंकल मैं मानता हूं कि आप हार्निया ग्रस्त थे लेकिन अब क्या प्रॉब्लम है आपको?
अंकल फट पड़े, 'शकल से तो पढ़े लिखे मालूम पड़ते हो. इतना पता नहीं है कि जब इतना लंबा चीरा लगता है तो कितना खून बहता है और जिस आदमी का इतना खून निकल जाए वह कमज़ोर नहीं हो जाएगा?' इसके पहले कि पढ़े लिखे होने के इल्ज़ाम का मैं बुरा फील करता आंटी ने मोर्चा सँभाला, 'अरे टांके का निशान दिखे तब ना कोई अंदाजा लगाए कि कितना बड़ा चीरा लगा था? ' अंकल चीखे-' वो तो मैंने इतनी मंहगी क्रीम लगाई तब जाकर वो निशान मिट गये! 'आंटी ने आग में घी डाला-'तुमको कौन सी साड़ी पहननी थी. ना लगाते इतनी मंहगी क्रीम!'
गोली बारह रुपये वाली!
अंकल ने प्रेस वहीं छोड़ा और अंदर चले गए फिर आंटी ने प्रेस किया. मैंने कहा 'लगता है अंकल नाराज़ हो गए 'आंटी बोली ' नहीं, नाराज़ नहीं हुए हैं, आते होंगे अपनी दवाई लेकर तुम्हें दिखाने और कहेंगे कि बारह रूपये की एक गोली खाता हूं रोज़ लेकिन तुम ये समझना कि दो रूपए की है एक गोली!'
मैंने कहा-'मैं चलता हूं!' मैंने पैसे देकर अपने कपड़े लिए और चलने लगा कि तभी अंकल बाहर आए और बोले आगे से ध्यान रखना. कपड़े बारह बजे तक दे जाया करो! आंटी बोलीं ' बेटा ऐसी कोई बात नहीं. जब मर्ज़ी लाया करो! ' चलते-चलते मैंने पुन: अंकल के मुँह से उपरोक्त गाली का उच्चारण सुना!
(देवेश लेखक हैं. लोक से जुड़े हुए क़िस्से अक्सर सोशल मीडिया पर शाया करते हैं. 'पुद्दन कथा' के नाम से इनकी किताब भी हाल में प्रकाशित हुई है. )
(यहाँ दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)