Dreams : सपने के भीतर सपना

| Updated: Feb 17, 2022, 11:53 AM IST

व्यक्ति जो सपना देख रहा है उसे पता है कि वह सपना देख रहा है और उस सपने पर उसका नियंत्रण है. वह अपने सपने में सजग है conscious है

है ग़ैब-ए-ग़ैब, जिसको समझते हैं हम शहूद

हैं  ख़्वाब में  हनोज़  जो जागे हैं  ख़्वाब में 

मेरी अपनी एक समस्या यह है कि मैं सालों से ग़ालिब पर मुग्ध हूं. अचानक दीवान- ए-ग़ालिब का कोई एक शेर उठाता हूं फिर घण्टों उसे चुभलाता रहता हूं, उसकी गंध, रस और स्वाद को महसूस करता रहता हूं. कल सोचा था कि मिर्ज़ा नौशा पर कुछ लिखूं पर ये शेर-दिमाग में उलझ गया. अभी भी उलझन में ही हूं.

शहूद (सूफिज्म में एक ऐसी अवस्था है जिसमें  इंसान को हर शै में बस ख़ुदा ही नज़र आता है)… ग़ैब का मतलब है परोक्ष या अदृश्यलोक. ग़ैब-ए- ग़ैब (रहस्य का रहस्य या अदृश्यलोक के पीछे का अदृश्यलोक, अर्थात हमें जो दिखाई दे रहा है या जिसे हम दिखाई देना समझे हुए हैं वह तो रहस्य का भी रहस्य है. ठीक उसी तरह जिस तरह इंसान अगर ख्वाब में जाग भी जाए तो भी वह रहता ख़्वाब में ही तो है ख़्वाब में जागने का मतलब ख़्वाब में ही  तो होना है. यहां दूसरी पंक्ति में दोनों जगह ख़्वाब  में आया है यानी कि ख़्वाब से बाहर नहीं आये है यानी परत दर परत सपना... सपने से बाहर आने का मतलब संसार की क्षणभंगुरता को समझ लेना है. 

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अंग्रेज़ी में एक term है lucid dreaming- जिसका तात्पर्य है व्यक्ति जो सपना देख रहा है उसे पता है कि वह सपना देख रहा है औरउस सपने पर उसका नियंत्रण है. वह अपने सपने में सजग है conscious है. यह एक सुखद अवस्था है, दूसरी तरफ मुझे एक हॉलीवुड फिल्म याद आ रही है INCEPTION वह भी सपनों पर ही आधारित है वही परत दर परत सपना.

रहस्य का रहस्य, स्वप्न के पीछे एक स्वप्न, इस फ़िल्म में नायक (लियोनार्डो डिकैप्रियो) सपनों की इतने परतों में उलझा रहता है कि समझ ही नहीं पाता कि जब वह जागता है तब वह दरअसल जाग गया है या तब भी सपने में है.

मुझे ग़ालिब हमेशा ही चमत्कृत करते है शायद आपको भी करते ही होंगे. वे अपने समय से बहुत आगे थे. उनके लेखन के रहस्य कुछ हम समझ रहे हैं , कुछ हम अब भी नहीं समझ पा रहे होंगे. उसे हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां समझेंगी... भले ही वे अपने लिए कहते हों-

ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान “ग़ालिब”

तुझे हम वली समझते, जो न बादाख़्वार होता

(मसाइल-ए-तसव्वुफ़ – दर्शन सम्बन्धी विषय, वली – संत(विशेषज्ञ),बादाख़्वार – शराबी)

तो मिर्ज़ा नौशा भले ही आप बादाख़्वार हों हम तो आपको वली ही समझते हैं।

 

(सुरेश तोमर मध्य प्रदेश सरकार में अधिकारी हैं. सामाजिक चिंतन के साथ  सुन्दर और अर्थ-पूर्ण गद्य उनकी विशेषता है. )

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)