हिंदी को बुरा-भला वही कहते हैं जिनका इससे Business बढ़ता है

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: May 13, 2022, 11:57 PM IST

हिंदी में कंटेंट आपका, रिसर्च भी आपकी लेकिन व्यापारी कहते हैं देखिए 35 पैसे प्रति शब्द दे सकते हैं, मार्केट में यही रेट है.

नेहा दुबे

हिंदी को कमतर समझने वाले वही व्यापारी हैं जो इसे ग्लोबल भाषा बनाकर अपना व्यापार बनाना चाहते हैं. बड़ी कंपनियों को छोड़िए वो चिंदीचोरी के लिए पहले से जाने जाते हैं. बात करते हैं स्टार्टअप्स की, इनको शुद्ध और साफ हिंदी चाहिए लेकिन सैलरी मूंगफली खाने लायक देने के लिए भी तैयार नहीं हैं.
खैर, कंपनी को या फ्रीलांस में काम असाइन करने वाले को गाली देने से क्या होगा जब खुद की इज्जत नहीं करेंगे तो.


यहां कुछ पॉइंट्स में समझिए
- कंपनियों को पता है कि हिंदी का मार्केट 60 प्रतिशत से भी ज्यादा है लेकिन लोगों में काम करने की इतनी उत्सुकता है कि अगर 20 हजार में बोलेंगे तब भी मान जायेंगे और 10 साल के एक्सपीरियंस वाले को तो 35 हजार में मना ही लेंगे.
हिंदी में कंटेंट आपका, रिसर्च भी आपकी लेकिन व्यापारी कहते हैं देखिए 35 पैसे प्रति शब्द दे सकते हैं, मार्केट में यही रेट है. यह कीमत किसने तय करवाई हमारे ही बंधु भाई ने ही तो यह तय किया है.
हिंदी कौन पढ़ता है यार? और ये नौकरी देने के नाम पर एहसान जताकर ऊंट के मुंह में जीरा डालकर सेठ ने बेवकूफ बना दिया.

बच्चे को जन्म देना एक Biological Process है, मातृत्व का अनावश्यक Glorification बन्द हो

हिंदी के लोगों का दोहन अभी भी बहुत हो रहा है
हिंदी के लोगों का दोहन अभी भी बहुत हो रहा है और हमारे हिंदी बंधु भाई के हाथों ही हो रहा है, लेकिन जिस दिन आपने मना करना सीख लिया उस दिन रास्ते अपनेआप निकल आएंगे. 
साल 2018 में एक स्टार्टअप (प्रेगनेंसी एंड पेरेंटिंग कंपनी) में कंटेंट राइटर के तौर पर काम कर रही थी. नौकरी के तीनों महीने सैलरी कम आती रही. एक दिन CEO से जाकर मैंने पूछ लिया कि क्या इश्यू है समझ नही आ रहा. सैलरी बेहद कम आ रही है. बिचारा झल्लाकर बोला यार हम तो 15 हजार में भी हिंदी वालों को थोक के भाव में उठा लें, तुम्हे तो तब भी ज्यादा दे रहे. मैने चुपचाप उसकी बात सुनी, सीट पर आकर जॉब अप्लाई किया और रात में रिजाइन दे दिया. दूसरे दिन मैनेजर ने पूछा कुछ 

प्रॉब्ल है तो बताओ, बात तो बता दी उसे और मैंने कहा अब रुका नहीं जायेगा यहां. खैर मैनेजर बहुत ज्यादा अच्छी थी सब समझ गई. एक घंटे बाद ही एक स्टार्टअप कंपनी का फिर से कॉल आया और इस बार मैंने डबल पैकेज मांगा. गनीमत यह थी कि उन्होंने तुरंत मान ली और उन्हे एम्पलाइज की इज्जत करनी आती थी.

 

(नेहा दुबे पत्रकार हैं. भिन्न मुद्दों पर लिखती हैं. यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है)

(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)