आम का मौसम है. लोग -बाग़ , बाग़ बाग़ हो रहे हैं. डालों पे लटक लटक आम झटक रहे हैं. फ़ोटो तो हमने नहीं खिंचवाई पर रसपुरी,सफेदा, दशहरी, डिंगा, लंगड़ा, केसर, नीलम, अल्फांज़ो का स्वाद ले लिया. लगभग एक किलो का रसपुरी अद्भुत सुंगध वाला. हरदिल अजीज़ सफेदा सख्त नर्म और मिठास गजब. खट्टापन तो उसने जाना ही नहीं. तीखी गंध का दशहरी हाथों से दबाव जितना दीजियेगा उतना माल मुंह में भरता चला जाएगा और गुठली हाथ से फिसल फिसल जाये. संभालिये. गहरा हरा लंगड़ा. ऊपर से लगे बड़ी अमिया पर रेशेदार शहद घुलता ही चला जाए क्या करें. हां कई बार उत्साह से चाक़ू चलाने पर खच्च की आवाज़ बता दे लँगड़ा कच्चा निकल गया.
छुटकू सा डिंगा. जबरदस्त पीला . छोटे में बड़े गुण. एक बार में कई डिंगा खा सकते हैं. टपके को चुनौती देता.गूदा कम गुठली मोटी. देखने में सबसे सुंदर केसर. बस ज़रा सी केसर घिस दी हो बदन पर. छिटक रही हो जहाँ तहाँ. मीठे में कुछ तीखी सुगन्ध लिए. गूदा रस से डूबा. सफेदे से हल्का. चोंचदार नीलम. महंगा अल्फांज़ो मज़ा उसका भी पर इन सबसे उन्नीस ज़रा. चौसा ज़रा देर से आया इस बार. आम वाले भैया ने कहा आपके सामने निकाल रहा हूँ और ऐसे प्यार से टोकरी में रख दिया जैसे नवजात शिशु. प्यारे चौसा, जरा जल्दी आया करो. तुम हो कमाल. आम की किस्म और गुण आज इतना ही ...
Feminism & Literature : इस्मत चुगताई की कहानी लिहाफ का नया पाठ
कथाकार प्रज्ञा रोहिणी दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं. अपने उपन्यास और अपनी कथाओं के लिए सम्मानित हो चुकी हैं. यह पोस्ट उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया हुआ है.
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)