एक बार नारद मुनि धरती के चक्कर लगा रहे थे अचानक उनकी नज़र कीचड़ में लोट-पोट हो रहे मोटे शूकर पर पड़ी. उन्हें न जाने क्यों उस पर तरस आया कि देखो कीचड़ में पड़ा है विष्ठा का सेवन कर रहा है. वे द्रवित हो उठे और उसके पास गए और कहा हे शूकर महाराज आप यहाँ क्यों पड़े हैं चलिए आपको मैं ले चलता हूं. शूकर को लगा नारद मुनि स्वयं ले जा रहे हैं तो ज़रूर किसी ऐसी जगह ले जायेंगे जो मेरी मन पसन्द होगी. नारद जी तो अंतरयामी हैं मन की बात समझते ही हैं वह उनके साथ चल पड़ा. नारद मुनि ने उसे स्वर्ग में ले जाकर छोड़ दिया.
दुबला हो गया था शूकर
कई वर्ष बीत गए नारद मुनि को मौक़ा ही न मिला स्वर्ग जाने का और जब वे गए तो स्वर्ग का माहौल वैसा ही था जो हुआ करता था. वे वहाँ टहल रहे थे कि उनका ध्यान एक मरियल से दुबले-पतले, कीकड़ जानवर पर गया. वो उन्हें कुछ पहचाना सा लगा. वे देख ही रहे थे कि उस मरियल से जानवर ने उन्हें देख लिया और वो उनके पास आया. अब तक नारद मुनि उस शूकर को पहचान चुके थे वे आश्चर्य से बोले ये क्या हाल बना रखा है. इस स्वर्ग में तुम दुबला रहे हो ? क्या बात है कुछ परेशानी हो तो बताओ. शूकर ने कहा महाराज मैं पूरा स्वर्ग घूम चुका हूँ न तो कहीं कीचड़ दिखा न हो खाने को विष्ठा मिली मैं भूख से मर रहा हूँ.
नारद मुनि के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी बोले अरे मूर्ख ये स्वर्ग है यहाँ न कीचड़ होगा न विष्ठा. वितृष्णा से शूकर ने कहा फिर ये स्वर्ग कहाँ ? आप तो मुझे वापस मेरे स्वर्ग में ले चलिए. कहाँ इस नर्क में लाकर पटक दिया. इस तरह शूकर वापस लौट आया!
(अखिलेश इस वक़्त के सबसे शानदार चित्रकारों में एक हैं और साहित्य प्रेमी हैं. )
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)