मनाली से कुल्लू की तरफ जाते हुए एक जगह है नग्गर. यहीं पर स्थित है निकोलस रोरिक आर्ट गैलरी. इसी में एक छोटा सा म्यूज़ियम भी है जहाँ पर हिमाचल प्रदेश की ट्रेडिशनल आर्ट कल्चर, फोक की झलक मिलती है. निकोलस एक एक्सप्लोरर थे और बहुत शानदारचित्रकार, जो बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में यहाँ आकर बस गए थे. यह उनका घर था, जो म्यूज़ियम में कन्वर्ट कर दिया गया है. कुल्लूमनाली आने वाले अधिकांश लोग यहां नहीं आते. शायद इसलिए भी यहाँ बहुत शांति थी. नीचे टिकट विंडो से लेकर ऊपर म्यूजियम तकका रास्ता थोड़ा चढ़ाई लिए था पर वह वर्थ था. बेहद सुंदर नज़ारा था नीचे से म्यूज़ियम तक ऊपर जाने वाले रास्ता का. रास्ता ही अपनेआप में इतना खूबसूरत था कि घंटों सिर्फ यहीं पर बिताया जा सकते थे. यह म्यूज़ियम कुछ चीज़ों के लिए मुझे हमेशा याद रहेगा औरएक बात के लिए भी. म्यूज़ियम शायद याद रहेगा इसलिए कि वह घर था. उनके स्टडी रूम ने बहुत आकर्षित किया मुझे. उनकी छोटी सीप्रयोगशाला भी जिसमें बहुत सारे उपकरण थे.
यह खिड़की उनके स्टडी रूम के ठीक बाहर थी. यहां पर यह फोटो मैंने इसलिए खिंचवाई कि मुझे याद रह सके कि मैंने उस रोज़ खिड़कीसे बाहर क्या देखा था. देखी थी मोहब्बत की सुंदर कहानी. यूं तो किसी , खुद में खोए जोड़े को ऐसे देखना अच्छी बात नहीं है पर उनमें इंटिमेसी से ज़्यादामासूमियत थी , मैं नज़र न हटा सकी. मुझे वह चेहरे याद रहें या न भी रहें पर उनके जेस्चर हमेशा याद रहेंगे.
लड़के का घुटने पर बैठकर लड़की के जूते का लेस बांधना याद रहेगा
उस लड़के का घुटने पर बैठकर लड़की के जूते का लेस बांधना याद रहेगा. लड़की का उसको थैंक यू बोलने की बजाय उसके ज़ोर सेबाल खींच यह कहना कि पहली बार में ठीक से क्यों नहीं बांधे, मैं गिर जाती तो! और फिर लड़के का उठकर, लड़की की पोनीटेलखींचकर उसको बांहों में भर किस्स कर लेना.
मोहब्बत दुनिया में आबाद रहनी चाहिए कि दुनिया और सुंदर दिखाई देती है. इतनी हरियाली बेहिसाब फूलों के बीच वह दोनों दिन कीरोशनी में नन्हे चांद लग रहे थे
ईश्वर रोशनी कायम रखें.
(सुषमा गुप्ता लेखिका हैं. प्रेम पर सुन्दर नोट्स पढ़े जाने लायक़ होते हैं. यह उनकी फ़ेसबुक वॉल से लिया हुआ है. )
(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)