Life : किसी और के शक की वजह से कड़वी होती स्मृतियां

| Updated: May 04, 2022, 11:44 PM IST

उन्हें अच्छी स्मृतियों के साथ उनकी कविताएं पढ़ते हुए याद करना चाहती हूं पर जाने कैसे जेहन में कड़वाहट घुल जाती है.  पर कोशिश करूंगी.

 

अंजू शर्मा

उनसे फेसबुक के बाहर मुलाकात हुई थी.  उनका कविता पाठ था और मैं उस दिन सुनने गई थी.  परिचय हुआ तो हैरत के समुद्र में डूब गई मैं.  इतने बड़े व्यक्ति, इतना बड़ा ओहदा, ऐसी ऐसी उपलब्धियाँ और इतनी विनम्रता.  इतने सज्जन कि देखते ही उनके हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़ जाते.  कुछ बोलने से पहले ही हाल चाल पूछ लेते.  उन दिनों विवेक फ्री होते थे तो हम साथ जाते थे तो विवेक भी उनकी विनम्रता, ज्ञान और विद्वता से बहुत प्रभावित हुए.

 हम लोग एक समूह से जुड़े थे तो अक्सर आयोजनों में मुलाकात होती. इसी संदर्भ में  फोन पर भी एकाध बार संक्षिप्त और औपचारिक बात हुई.  कभी औपचारिकता से आगे नहीं बढ़ पाए.  पुस्तक मेले में उन्होंने पत्नी से मिलाया. भली महिला लगीं मुझे.  मुझसे फेसबुक पर वे भी जुड़ गईं.

मेरे पास अविश्वास की वजह नहीं थी 

 एक दिन अचानक इनबॉक्स में एक थम्पस अप मिला सर के अकाउंट से.. एक दो बार हुआ तो  पूछने पर पता चला कि उन्होंने नहीं भेजा. संभवतः फेसबुक की कोई गड़बड़ी है.  मेरे पास अविश्वास की वजह नहीं थी.  फिर एक दिन अचानक देखा कि कहीं उन्होंने कमेंट किया या किसी ने उनको टैग किया जो मुझे नहीं दिख रहा है.  याद आया कि काफी समय से फेसबुक पर गायब हैं और मुझे लगा प्रोफाइल डिएक्टिवटेड हैं.  एक मित्र से यूं ही ज़िक्र किया तो मालूम चला वे तो सक्रिय हैं.

इसका अर्थ ये हुआ मैं ब्लॉक्ड हूं. न न ये कैसे हो सकता है.  बहुत सोचा पर कोई ऐसा कारण याद नहीं हुआ, कोई वजह नहीं थी, कोई विवाद नहीं.  सामने पड़ने पर उतने ही स्नेह से मुस्कुराते हुए पूछते, कैसी हैं आप? पूरा दिन परेशान रहने के बाद न रहा गया तो उनसे फोन पर पूछ बैठी.  उन्होंने ग्लानि भरे धीमे स्वर में फिर वही कहा कि मैंने नहीं किया,मुझे तो मालूम भी नहीं.  फेसबुक गड़बड़ी है. हालांकि मुझे कुछ सामान्य नहीं महसूस हुआ.

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उनकी कविताएं पढ़ते हुए याद करना चाहती हूं पर जाने कैसे जेहन में कड़वाहट घुल जाती है

 बाद में उसी मित्र से जो मालूम हुआ उससे समझ ही नहीं आया कि कैसे और क्या प्रतिक्रिया दूँ. वे पत्नी के शक़ का शिकार थे.  बहुत परेशान भी. पहले भेजे गए इमोजी और ब्लॉक सब उनकी पत्नीजी  का किया धरा था. मुझे जरा भी क्रोध नहीं आया पर सर के लिये मैं कई दिन परेशान रही. एक बार मिलने पर उन्होंने माफ़ी मांगी तो मैने कहा कोई बात नहीं सर.  अनब्लॉक मत कीजियेगा.  मैं समझती हूं.

कुछ अरसा मैं कम सक्रिय रही.  उनसे कोई खास सम्पर्क तो था नहीं. उन्ही दिनों उन्हें कैंसर डायग्नोस हुआ और कुछ ही समय बाद वे नहीं रहे.  उनका जाना अपने किसी  बड़े का जाना महसूस हुआ.  कल परसो किसी मेमरी पोस्ट पर उनके कमेंट ने सब याद दिला दिया था. आज उन्हें गए कई वर्ष बीत गए. मैं आज भी ब्लॉक्ड हूं. उन्हें अच्छी स्मृतियों के साथ उनकी कविताएं पढ़ते हुए याद करना चाहती हूं पर जाने कैसे जेहन में कड़वाहट घुल जाती है.  पर कोशिश करूंगी.

(अंजू शर्मा कवि और लेखक हैं. यह पोस्ट उनकी यादगारी का एक हिस्सा है.)