पिछले साल के अंत से ही हर कहीं पुष्पा-पुष्पा हो रहा है. अब मुझे बताने की जरूरत नहीं कि यह पुष्पा द राइज इस वक्त की सबसे धमाकेदार फिल्म है. मूल तेलुगू में बनी इस फिल्म ने तमिल और हिंदी के डब्ड वर्जन में भी खूब बिजनेस किया है. दो दिन पहले मैंने इस फिल्म के आयटम नंबर का एक वीडियो देखा: ओ अंतवा.
पिछले कुछ समय से चर्चा में रहने वाली साउथ की दिलचस्प कलाकारा सामंथा एकदम कैटरीना स्टाइल में सिजल करती नजर आ रही हैं. फिर कुछ डाॅयलाग सुने जैसे पुष्पा इज नॉट एक फ्लॉवर, इट इज फायर, पुष्पा झुकेगा नहीं ...
कहीं भी फिल्म में महाराष्ट्र नहीं है फिर भी हिंदी सम्वाद मुम्बइया है
कल रात को वक्त भी था, माहौल भी और ठंड भी. ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पहले तमिल में यह फिल्म देखना शुरू किया, फिर हिंदी में आ गई. हिंदी में हीरो अल्लू अर्जुन यानी पुष्पा को आवाज दिया है श्रेयस तलपड़े ने. हिंदी वर्जन में पता नहीं क्यों हीरो अपनी मां को आई कहता है, हालांकि फिल्म में कहीं भी महाराष्ट्र की पृष्ठभूमि नहीं है लेकिन संवाद में हर तरफ मुम्बइयापन है.
पुष्पराज उर्फ पुष्पा हजारों बार फिल्मों में दोहराए किरदार की तरह है
पुष्पा द राइज का पहला हिस्सा फिलहाल रिलीज होने वाला है. फिल्म आधे में खत्म हो जाती है. पूरे तीन घंटे की इस फिल्म में ऐसा है क्या जो कोरोना के तीसरी लहर को चीरती हुई थियेटर में जबरदस्त बिजनेस कर रही है? मुझसे पूछें तो एक बड़ी वजह है, अर्से बाद एक विशुद्ध मसाला फिल्म आई है, जो अच्छी बनी है. एडिटिंग से ले कर सिनेमाटोग्राफी तक में काम किया गया है. कहानी? क्या वो महत्वपूर्ण है?
पुष्पराज उर्फ पुष्पा हजारों बार फिल्मों में दोहराए किरदार की तरह है, एक नामी बाप की अवैध संतान, जो बिना बाप के नाम के बड़ा होता है. पैसा कमाना है. तो रिस्क लेता है और मामली मजदूरी की जगह चंदन की तस्करी करने वालों के लिए काम करने लगता है. बंदा स्मार्ट है, चालाक है, दमदार है, बातों को बाजीगर है. समझ जाता है कि अमीर बनने का रास्ता क्या होना चाहिए. अपने रास्ते के बुलडोजरों को साफ करते हुए वह आगे बढ़ता जाता है. मारधाड़, खूनखराबा, एक्शन, डॉयलागबाजी और आयटम नंबर यहां सब है. इन सबके बीच में है अल्लू अर्जुन, जो अपने पूरे स्वैग में है. बंदे के मैनरिजम्स कमाल के हैं. लुंगी में भी बंदा डैशिंग दिखता है.
फिल्म पूरी तरह अल्लू अर्जुन की है, बाकि किरदार बस परछाई का काम करते हैं
फिल्म पूरी तरह अल्लू अर्जुन की है. बाकि किरदार बस परछाई का काम करते हैं. इस टिपिकल कहानी में कई लोचे हैं. एक्शन सीन्स को बेवजह लंबा खींचा गया है. गाने दिखने में अच्छे लगते हैं, सुनने में नहीं. पर इन सबकी किसे परवाह है? फिल्म की गति इतनी तेज है कि आप अंधेरे जंगलों और उजले गांवों में उलझते हुए पुष्प की दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं.
इस फिल्म के लेखक और निर्देशक सुकुमार कुछ समय पहले तक आंध्र प्रदेश के आदित्य जूनियर कॉलेज में गणित और फीजिक्स के प्रोफेसर थे. एक दिन अपनी नौकरी छोड़छाड़ कर तेलुगू फिल्मों में असिस्टेंट डाइरेक्टर बन गए. उनकी फिल्म आर्या 1 और आर्या 2 काफी चर्चित रही. पिछली फिल्म रंगस्थलम भी हिट हुई. उन्हें खुद अंदाजा नहीं था कि पुष्पा इतनी बड़ी हिट हो जाएगी.
खबर है कि इन दिनों सुकुमार हैदराबाद में धनुष से मीटिंग कर रहे हैं. धनुष उनकी अगली फिल्म में काम करना चाहते हैं. वैसे सुकुमार यह भी कह चुके हैं कि जब कभी वो हिंदी में कोई फिल्म बनाएंगे तो उसके हीरो अक्षय कुमार होंगे.
जयंती रंगनाथन एक बड़े मीडिया समूह में सम्पादक हैं एवम लेखक हैं.
(यहां दिये गये विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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