आशुतोष कुमार
जश्न का बहाना इस उधेड़बुन में नहीं गंवाना चाहिए कि यह भारतीय भाषाओं में लिखा गया सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है या नहीं. बेशक हमारे पास कई बेशकीमती चीजें हैं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि रेत समाधि एक बड़ी किताब है.
टूम ऑफ सैंड को मिला यह बुकर जितना लेखिका गीतांजलि श्री का है, उतना ही अनुवादक डेजी रॉकवेल का भी. उचित ही है कि माई और हमारा शहर उस बरस की हमारी प्रिय लेखिका ने इसे अनुवादक के साथ साझा किया है.
रेत समाधि पर पहली परिचर्चा दिल्ली में 2018 में हुई थी. तब जो कुछ कह पाया था, वह आज भी इस किताब पर मेरी समझ का हिस्सा है.
"गीतांजलि श्री एक वाचक की तरह कहानी कहने से परहेज करती हैं. वे चाहती हैं, कहानी ख़ुद को कहे. कहानी जैसे एक जीव हो, जिसको उसका मुकम्मल पर्यावास मिल जाए, तो सहज ही बोलने लग जाए . गीतांजलि उसके समूचे ब्रह्मांड को रचना चाहती हैं. हर कोने को , हर सांस को , फुर्सत से सहेजना चाहती हैं.
वे पाठक से पर्याप्त धीरज की मांग करती हैं. लेकिन अगर एक बार पाठक इस वातावरण में रम जाए , वो कहानी की हर धडकन को बोलते सुन सकता है .
पांडेय बेचैन शर्मा उग्र - हिंदी के वे पहले लेखक जिनकी Bold Writing से साहित्यकार ही नाराज़ हो गए थे
'रेत-समाधि' एक परिवार के विघटन की महागाथा को भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के आख्यान से अन्तर्ध्वनित करता भारतीय यथार्थ के उस तल की खोज करता है, जहां विघटन और विभाजन जैसी चीजें होकर भी नहीं होतीं.
कहानी का फोकस आख़िरी पडाव के लिए ख़ुद को तैयार करती एक मां और उसे लगातार सहेजती उसकी बेटी पर बना रहता है, जो धीरे धीरे अपनी भूमिकाएं अदल-बदल रही हैं.
ऊपर से निहायत अ-राजनीतिक लगते हुए भी यह उपन्यास एक राजनीतिक उपन्यास इस अर्थ में है कि वह मानवीय रिश्तों और देशों की नियतियों के पीछे सत्ता के अनेक रूपों के खेल को कभी नजरअंदाज नहीं करता .
(आशुतोष कुमार हिंदी के प्रख्यात आलोचक हैं. )
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)