आलोक वार्ष्णेय
कितना अजीब है ना कि हमने एक ऐसा समाज बनाया है जिसमें अपने ही करीबी लोगों को “आई लव यू” कहने में अंदर तक जान निकल जाती है.
कितना मुश्किल है अपने मां बाप, भाई बहिन से ये कह पाना कि हमें तुमसे प्यार है. यहां तक कि शादीशुदा लोग भी अपने जीवनसाथी से यह कह पाने में कितना झिझकते हैं, मानो प्यार को अभिव्यक्त करना अपराध हो.
हम अपने लोगों को गाली तो झट दे देते हैं
इसके ठीक विपरीत किसी को, यहां तक कि गुस्से में अपने करीबियों को ही गाली दे देना, हमारे यहां किसी को असहज नहीं करता. गाली, गुस्सा, घृणा युक्त शब्दों का प्रयोग भरे समाज के सामने लोग करते हैं और उन्हें इसके लिए शर्म भी महसूस नहीं होती, लेकिन क्या वो भरे समाज मे जिन्हें प्यार करते हैं, उन्हें प्यार जताने का माद्दा रखते हैं. ज्यादातर नहीं ही रखते.
कमाल है कि हमने जिस जिस बात की पूजा की उसे सिर्फ मंदिर तक सीमित रख दिया. प्रेम की सबसे ज्यादा पूजा हमने ही की, लेकिन अब उसे अभिव्यक्त करने में शर्माते हैं, यहां तक कि गैर संस्कारी मानते हैं. आप किसी भी छोटे शहर में अपनी पत्नी का हाथ पकड़ के भी घूम रहे होंगे, तो सारा बाजार आपको घूरने लगेगा. लेकिन आप उसी बाजार में माँ बहिन की गाली दे दीजिए, किसी को कोई खास आपत्ति नहीं होनी.
कुछ भारी बेसिक भूल हुई है हमसे. जो हमारी किताबों में है, वो जीवन मे नहीं दिखता और जो जीवन में घुस आया है, वो किसी किताब में था ही नहीं.
(आलोक वार्ष्णेय शिक्षक हैं और सोशल मीडिया पर अपने चुटीले व्यंग्यों के लिए सुख़्यात हैं.)
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)