UP Election 2022: कैसे नई 'अयोध्या' बन रही Mathura-Kashi, चुनाव से पहले बदल रही सियासी तस्वीर?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Feb 03, 2022, 08:30 AM IST

मथुरा सिविल कोर्ट ने विवादित स्थल का सर्वे कराने का आदेश दिया है.

उत्तर प्रदेश की सियासत में अब मथुरा-काशी पर सियासी जंग शुरू हो चुकी है. अयोध्या के बाद अब मथुरा और काशी पर नई बहस छिड़ी है.

डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Assembly Elections 2022) में मथुरा (Mathura) नया अयोध्या (Ayodhya) बनता नजर आ रहा है. योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने बुधवार को मथुरा की एक रैली से पहले ही संकेत दिया है कि जैसे अयोध्या में राम और काशी में भगवान विश्वनाथ का भव्य मंदिर बनाया जा रहा है, वैसे ही मथुरा और वृंदावन में भी भव्य निर्माण होगा. उनके इस बयान से साफ है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में हिंदुत्व (Hindutva) को अपना सबसे बड़ा हथियार बना रही है.

एक वर्चुअल रैली की शुरुआत से पहले जब योगी आदित्यनाथ ने एक के बाद एक मथुरा-वृंदावन पर कई ट्वीट किए तभी जानकारों ने अटकलें लगानी शुरू कर दीं कि सियासत अलग मोड़ ले रही है. सीएम योगी ने बुधवार को ट्वीट किया था, 'भारत की अस्मिता और सनातन आस्था के मानबिन्दुओं के सम्मान व अपने अतीत की गौरवशाली परम्परा की पुनर्स्थापना भाजपा का ध्येय है. अयोध्या में प्रभु श्री राम का मंदिर और काशी में भगवान विश्वनाथ का भव्य  धाम बन रहा है. फिर मथुरा-वृन्दावन कैसे छूट जाएगा?

सियासत में कहे गए शब्दों के गंभीर मायने होते हैं. सीएम योगी ने मथुरा का जिक्र कर श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर जारी बहस को नई हवा दे दी है. साल 1670 में मुगल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) ने यहां के एक प्राचीन मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण कराया, जिसे आज शाही ईदगाह (Shahi Idgah) कहा जाता है. मथुरा का मामला भी अयोध्या जैसा ही है और इसीलिए बीजेपी ने इसे चुनाव में मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है.

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बदल सकती है चुनावी तस्वीर!

काशी और मथुरा का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जो उत्तर प्रदेश चुनाव की तस्वीर पूरी तरह से बदल सकता है. अगर मुद्दा यही रहा तो चुनाव धर्म के इर्द-गिर्द सीमित रहेगा. जातीय समीकरण इस चुनाव में एक बार फिर ध्वस्त हो सकते हैं. अगर चुनाव धर्म के नाम पर होता है तो इससे बीजेपी को जबरदस्त फायदा होगा. अयोध्या के बाद उत्तर प्रदेश में काशी और मथुरा दो जगहें ऐसी हैं जहां दो बड़ी मस्जिदों को मुगलों ने प्राचीन मंदिरों को तोड़कर बनवाया था.

कैसे पड़ी मथुरा मंदिर विवाद की नींव?

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि जनवरी 1670 में रमजान के महीने में औरंगजेब ने मथुरा के प्रसिद्ध केशव राय मंदिर (Keshav Rai temple) को तोड़ने का आदेश दिया था. ओरछा के राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस समय 33 लाख रुपये में इसे बनवाया था. कटरा केशवदेव, भगवान कृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है. यह लगभग 13 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के स्वामित्व में है. उसी जमीन के करीब 2.5 एकड़ में औरंगजेब के आदेश पर शाही ईदगाह भी बना हुआ है जिसे लगातार हटाने की मांग की जा रही है. हिंदू पक्ष का तर्क है कि यह ईदगाह श्रीकृष्ण के गर्भगृह के ऊपर बना है.

क्या है काशी-ज्ञानव्यापी मस्जिद विवाद?

ऐसा ही विवाद काशी की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyan Vapi Masjid) को लेकर भी बना हुआ है. अयोध्या के बाद काशी विश्वनाथ को हिंदुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है. अयोध्या भगवान राम की नगरी है. काशी भगवान शिव की नगरी है. अयोध्या की तरह यहां भी मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद है. हिंदू पक्ष का दावा है कि जहां भगवान शिव को समर्पित वास्तविक ज्योतिर्लिंग मौजूद है, वहां औरंगजेब द्वारा एक मस्जिद का निर्माण किया गया था. इसे आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है.

भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों (Muslim invader)  के आगमन के साथ, काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए. कुतुबुद्दीन ऐबक ने पहली बार 11वीं शताब्दी में हमला किया था और इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया. आक्रमण के बाद भी प्रार्थनाएं चलती रहीं. सन 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया. उन्हें अकबर के नौ रत्नों में से एक माना जाता है.

साल 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया और वहां एक मस्जिद का निर्माण कराया गया. 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में एक नया मंदिर बनवाया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जानते हैं. काशी का मंदिर विवाद आज तक जारी है और मामला कोर्ट में चल रहा है. 2018 में हिंदू पक्ष ने मांग की थी कि पुरातत्व विभाग द्वारा पूरे ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण किया जाए ताकि इस विवाद को सुलझाया जा सके.

धर्म पर सियासी लड़ाई में मजबूत कौन?

काशी और मथुरा उत्तर प्रदेश के चुनावी समीकरणों की दिशा और दशा बदल सकते हैं. अगर यह चुनावी मुद्दा बना तो राज्य के करीब 80 फीसदी हिंदू वोट एकजुट हो सकते हैं. यही बीजेपी का मकसद भी है. वहीं समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) चाहती है कि ये चुनाव धर्म के आधार पर न होकर जातियों के आधार पर हों. अगर जाति आधारित चुनाव होते हैं तो यूपी की सियासत में मुस्लिम-यादव समीकरणों के सफल प्रयोग देखे जा चुके हैं. उत्तर प्रदेश की लगभग 80 प्रतिशत आबादी हिंदू है. 19 प्रतिशत मुसलमान और बाकी अन्य धर्मों के लोग हैं. मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) भी यूपी चुनाव में अहम पक्ष है. जनाधार खोती बसपा की असली लड़ाई बीजेपी और सपा से न होकर कांग्रेस (Congress) से है जो एक बार फिर सूबे में अपना जनाधार बनाने की कोशिशों में जुटी है. 

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