प्रियंका गांधी के तेवर को यूपी विधानसभा चुनावों में कितना भुना पाएगी कांग्रेस?

अभिषेक शुक्ल | Updated:Nov 26, 2021, 06:00 PM IST

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (फाइल फोटो- फेसबुक)

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं. प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस सूबे में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है.

डीएनए हिंदी: प्रियंका गांधी वाड्रा के भरोसे कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रही है. प्रियंका गांधी के राजनीतिक तेवर बता रहे हैं कि उनकी सीधी चुनौती सूबे में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) से है. प्रियंका गांधी भले ही कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं हैं लेकिन यह तय है कि राज्य में कांग्रेस की जड़ मजबूत करने के लिए पार्टी ने उन्हें चुना है.

प्रियंका गांधी की नजर यूपी में होने वाली हर घटनाक्रम पर है. अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) मुख्य विपक्षी पार्टी भले ही हो लेकिन समाजवादियों से ज्यादा कांग्रेस यूपी में जमीनी स्तर पर नजर आने लगी है. प्रियंका गांधी ने कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश की है लेकिन पार्टी के पास हकीकत यह है कि सक्रिय कार्यकर्ताओं का अभाव है. प्रियंका गांधी खुद सक्रिय राजनीति में जनवरी 2019 में उतरी हैं. सत्ता में आने के लिए पार्टियों दशकों का संघर्ष करती हैं. प्रियंका का संघर्ष अभी बाकी है.

अखिलेश से ज्यादा जमीन पर नजर आ रहीं प्रियंका गांधी

उन्नाव कांड हो या हाथरस, प्रियंका गांधी महिला सुरक्षा को लेकर केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को घेरती हैं. महिला सुरक्षा के मुद्दे पर प्रियंका गांधी जितना सोशल मीडिया पर सक्रिय नजर आती हैं, उतनी ही सक्रियता जमीन पर भी दिखाती हैं. हाथरस कांड में प्रियंका गांधी का मजबूती के साथ पीड़ित परिवार के साथ खड़ा हो जाना उनकी सक्रियता की बानगीभर है.

लखीमपुर खीरी में जब किसानों की गाड़ी चढ़ने से हुई दर्दनाक मौत का मामला सामने आया तब प्रियंका गांधी आधी रात को निकल पड़ी थीं पीड़ित परिवारों से मुलाकात करने. लखीमपुर हिंसा में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे पर आरोप है कि किसानों के ऊपर उसने गाड़ी चढ़ाई है. इस हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी. अभी हाल में बुदेंलखंड में पीड़ित परिवार के साथ प्रियंका नजर आईं.

लखीमपुर हिंसा के बाद विपक्ष सरकार को घेरने लखीमपुर जाने की कोशिशें करता कर रह गया लेकिन कामयाबी सिर्फ प्रियंका गांधी को मिली. अखिलेश यादव के घर के बाहर बैरिकेडिंग कर दी गई थी लेकिन प्रियंका गांधी बचते-बचाते वहां पहुंची. प्रियंका गांधी को सीतापुर में हाउस अरेस्ट कर लिया गया था. वे अनशन पर बैठ गई थीं. हालांकि लगातार विरोध के बाद पुलिस ने उन्हें पीड़ित परिवारों से मुलाकात की इजाजत दे दी थी. दूसरी विपक्षी पार्टियां बयानबाजी करती रहीं एक्शन में प्रियंका गांधी नजर आईं.

किन मोर्चों पर बीजेपी को घेर रही हैं प्रियंका?

प्रियंका गांधी लगातार यूपी में खुद को विपक्ष का बड़ा चेहरा साबित कर रही हैं. किसान आंदोलन के समर्थन में किसान न्याय रैली से लेकर महिला सशक्तीकरण तक, प्रियंका गांधी कांग्रेस को यूपी में स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रही हैं. महिला वोटरों को लुभाने के लिए प्रियंका ने 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' का नारा दिया. यह भी उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी 40 फीसदी टिकट देगी. यूपी में बीजेपी को घेरने के तमाम मुद्दे हैं. महंगाई से लेकर निजीकरण तक बीजेपी सरकार कई मोर्चों पर घिरी है. कांग्रेस पेगासस, राफेल जैसे मुद्दों को चुनाव में भुनाने की कोशिश भी कर रही है लेकिन कामयाबी को लेकर कोई भी आश्वस्त नहीं है.

क्यों जमीन पर कमजोर पड़ रही है कांग्रेस?

प्रियंका गांधी को मीडिया कवरेज मिलता है. सोशल मीडिया पर भी उन्हें लेकर क्रेज देखने को मिलता है. लेकिन प्रियंका गांधी का क्रेज जमीनी स्तर पर कितना है यह किसी से छिपा नहीं है. हर पार्टी के स्थानीय स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ता हैं. बीजेपी के अनुषांगिक संगठनों की मजबूत पकड़ जमीन पर है. अखिलेश यादव के साथ मुस्लिम यादव समीकरण का बल है तो साथ ही जमीनी स्तर पर बड़ी संख्या में कार्यकर्ता है. बसपा के पास कार्यकर्ताओं की कोई कमी नहीं है. कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि नेता कई हैं कार्यकर्ताओं का टोटा है.

कांग्रेस में नेता ही नेता हैं, कार्यकर्ता हैं ही नहीं. किसी भी पार्टी को जड़ें जमाने के लिए जरूरत होती है कार्यकर्ताओं की. कांग्रेस के पास बूथ क्या जिला स्तर पर भी कार्यकर्ताओं की कमी है. जो हैं वे इतने सक्रिय नहीं हैं कि पार्टी को मजबूत कर सकें. राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का हश्र छुटभैये पार्टियों जैसा हो गया है. 2014 में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन किया था. गठबंधन को 54 सीटें मिलीं, बसपा को 19 और बीजेपी गठबंधन को 325.

हैरान करने वाली बात यह है कि कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन था फिर भी महज 7 सीटें कांग्रेस जीत सकी. रायबरेली से अदिती सिंह, रामपुर खास से आराधना मिश्रा, कानपुर कैंट से सोहेल अख्तर, हरचंदपुर से राकेश सिंह, सहारनपुर से मसूद अख्तर, बेहट से नरेश सैनी और तमकुहीराज विधानसभा से अजय कुमार लल्लू. अजय कुमार लल्लू और अदिती सिंह के अलावा कोई ऐसा विधायक नहीं है जिसे प्रदेश स्तर पर जननेता की स्वीकृति मिली हो. अदिती सिंह इसलिए क्योंकि उनके तेवर पार्टी से बगावत वाले हैं.


क्या कहता है प्रियंका गांधी का ट्रैक रिकॉर्ड?

जनवरी 2019 में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में उतर गई थीं. लोकसभा चुनावों से ठीक पहले प्रियंका गांधी की सक्रियता को माना जा रहा था कि यूपी में कांग्रेस को बढ़त मिलेगी. प्रचंड मोदी लहर में कांग्रेस की 2 जो सीटें बची थीं, उनमें से भी एक चली गई. यह कांग्रेस का सूबे में सबसे बुरा दौर था. प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की कमान भी दी गई थी. वहीं प्रियंका सबसे कमजोर पड़ गईं. अब तक तो प्रियंका गांधी का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता. स्कोर जीरो है.

कांग्रेस को उम्मीद है कि शायद प्रियंका गांधी का मैजिक चले और यूपी में पार्टी का कल्याण हो. सियासी आंकड़े कांग्रेस के पक्ष में 2014 से ही नहीं हैं. 2014 इसलिए कि कांग्रेस देश की सत्ता से बेदखल भी इसी साल हुई थी. 2014 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस के पास महज 2 सीटें थीं. 5 साल बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस 1 सीट पर सिमट गई. राहुल गांधी कांग्रेस का गढ़ 'अमेठी' हार गए थे. अगर केरल के वायनाड से भी उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा होता तो वे लोकसभा नहीं पहुंच पाते. सोनिया गांधी, रायबरेली में अपनी सीट बचा ले गई थीं. प्रियंका गांधी आने वाले विधानसभा चुनाव में कितना कामयाब होती हैं यह तो वक्त बताएगा लेकिन उनकी मेहनत को पूरे अंक दिए जा सकते हैं.

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