यूपी, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर के नतीजे जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं कांग्रेस के समर्थक अदृश्य होते जा रहे हैं. भारत की सबसे पुरानी पार्टी की स्थिति किसी पुरानी इंजन वाली कार जैसी ही हो रही है. कम से कम नतीजे तो ऐसे ही सामने आ रहे हैं.
इस पूरे चुनाव में कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ता सिर्फ़ एक बार आत्मविश्वास से लबरेज़ दिखे थे, जब प्रियंका गांधी ने "लड़की हूं, लड़ सकती हूं" रैली का शंखनाद किया था. लेकिन इस रैली के बाद भी वो खुद को सीएम पद का दावेदार घोषित नहीं कर रही थीं.
कांग्रेस की हार हो जाना तय था, राहुल गांधी की आइसक्रीम खाते हुए फोटो आज कितने कांग्रेसियों का दिल जला रही होगी, समझा जा सकता है. लेकिन इस राष्ट्रीय पार्टी के सामने अब अपने अस्तित्व को बनाए रखने की चुनौती है. यह ज़ाहिर है कि पार्टी के अंदर गहन मंथन हो रहा होगा लेकिन इन मुद्दों का समाधान किए बिना कांग्रेस के लिए राह कठिन नज़र आ रही है -
भविष्य की चिंता
राहुल गांधी सबसे अधिक मज़बूत तब दिखे थे जब उनके जैसी जैकेट पहनकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट उनके हम कदम थे. राजस्थान और मध्य प्रदेश चुनाव में कांग्रेस को इस तिकड़ी ने जीत भी दिलवा दी थी. लेकिन फिर इतिहास, वर्तमान पर भारी पड़ा और राहुल के हम कदम रहे दोनों ही नेताओं को सीएम की कुर्सी नसीब नहीं हुई.
इसके बाद जो हुआ वो किसी से छिपा नहीं है. राजस्थान में पार्टी में हुई अंतर्कलह और मध्य प्रदेश में गिरी सरकार का पूरा ठीकरा कांग्रेस की रणनीति में छिपा था. वो भविष्य नहीं, भूतकाल की राजनीति में अटके रहे और पार्टी ने वापसी का एक सुनहरा मौका खो दिया. इस समय कांग्रेस के पास कोई ऐसा नाम नहीं जो उनका भविष्य बन सकता है.
लेने होंगे कड़े फैसले
पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस तरह से पार्टी के आदेश और उसके नेतृत्व की खिल्ली उड़ाई, भाजपा में ऐसा दुस्साहस कोई नहीं करेगा. कांग्रेस में इस समय अनुशासन की बड़ी कमी है और पार्टी को एक सूत्र में बांधने वाला कोई नहीं. कांग्रेस को एक बार के लिए ही सही, कड़े फैसले लेते हुए पार्टी को रीवैंप करना ही होगा.
गांधी से आगे - ग्रांउड वर्क
कांग्रेस की समस्या है कि उनके कार्यकर्ता अब लोगों के बीच कम और कार्यालयों में ज्यादा नज़र आते हैं. इक्का-दुक्का रैली के अलावा कांग्रेस पार्टी के नेता जनता की समस्याओं के लिए लोगों के बीच नहीं पहुंचते. यूपी चुनाव के दौरान प्रचार के अलावा और प्रचार से पहले कांग्रेस पार्टी और उसके नेता लोगों के बीच से नदारद रहे.
इक्का दुक्का मौकों पर राहुल और प्रियंका ज़रूर लोगों की सुध लेते दिखे लेकिन इन फोटो ऑप्स के बाहर कांग्रेस ने अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई. कांग्रेस के सोशल मीडिया सेल से लेकर उनके काडर तक को यह समझना होगा कि ज़मीनी समस्याओं को सुलझाए बिना, ट्विटर पर चुनाव नहीं जीता जा सकता.
कांग्रेस के लिए यह दिन आत्म मंथन का है और अभी से 2024 की तैयारी में लग जाने का है. ना उनके पास युवा नेता हैं, ना काडर में अनुशासन. यह पार्टी ओल्ड से ओब्सोलीट हो जाने के कगार पर है, उन्हें नए नेतृत्व में आज ही निवेश करना होगा, वर्ना हम अपनी आने वाली पीढियों को सिर्फ नेहरू- गांधी नहीं कांग्रेस पार्टी का भी इतिहास पढ़ाएंगे.