Godhra Assembly constituency: ओवैसी की पार्टी ने मुकाबले को बनाया रोचक, विस्तार से समझें सियासी समीकरण

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Dec 02, 2022, 12:50 PM IST

गोधरा की राजनीति के भीष्म पितामह हैं सीके राउलजी.

Gujarat Elections 2022: गोधरा बीजेपी के लिए अहम सीट रही है. इसे बीजेपी अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखती है. यहां समझें गोधरा का सियासी समीकरण...

डीएनए हिन्दी: गुजरात की सबसे चर्चित विधानसभा सीटों में से एक है गोधरा विधानसभा सीट (Godhra Assembly constituency). यह सीट भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए बेहद अहम है. उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ी रही है यह सीट. 2017 में बीजेपी ने कड़े मुकाबले में कांग्रेस को हराकर इस सीट पर जीत हालिस की थी. 2017 की बीजेपी की जीत भी कम मजेदार नहीं है. गोधरा से 2007 और 2012 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस विधायक सीके राउलजी (CK Raulji) को 2017 में बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. राउल जी फिर बीजेपी के विधायक हो गए. पिछले दो दशकों की राजनीति में यहां एक कहावत है 'गोधरा मतलब राउलजी'. राउलजी ने जिस पार्टी का दामन थामा उसी के विधायक रहे. वह दो बार जनता दल के टिकट पर भी विधायक रह चुके हैं. इस बार देखना है कि वह छठी बार विधायक बन पाते हैं या नहीं. 

गोधरा ही वह जगह है जिससे नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की 'हिन्दू हृदय सम्राट' की छवि बनी थी. 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से कारसेवक अहमदाबाद लौट रहे थे. वे ट्रेन से लौट रहे थे. जब ट्रेन गोधरा पहुंची तो मुस्लिमों की उन्मादी भीड़ ने उस डिब्बे को जला डाला जिसमें कार सेवक मौजूद थे. इसमें 58 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई. इस हादसे में पूरे गुजरात को अपनी चपेट में ले लिया. पूरे राज्य में भीषण दंगा भड़का. दंगे में करीब 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर दंगे में बहुसंख्यकों को साथ देने के आरोप लगे. हालांकि, बाद में उन पर लगे सारे आरोप खारिज हो गए. 

भले ही दंगा में हजारों लोगों की मौत हुई, लेकिन नरेंद्र मोदी को इसका बड़ा सियासी फायदा मिला. न सिर्फ गुजरात बल्कि पूरे देश में उनकी छवि 'हिन्दू हृदय सम्राट' की बनी. विकास के साथ-साथ कट्टर हिन्दूवादी छवि की वजह से ही 2014 में बीजेपी ने उनके नेतृत्व में एक बड़ी जीत हालिस की. आज भी गोधरा के दंगों की साया से नरेंद्र मोदी निकल नहीं पाए हैं.

AIMIM की मौजूदगी से बीजेपी को मदद
गोधरा की लड़ाई इस बार मजेदार है. गोधरा की राजनीति के पर्यायवाची सीके राउलजी को बीजेपी ने मैदान में उतारा है. वहीं, कांग्रेस ने इस बार स्मिताबेन दुष्यंत सिंह चौहान पर भरोसा जताया है. गुजरात की राजनीति में तेजी से उभरती नई पार्टी AAP के कैंडिडेट राजेश राजू पटेल हैं. इस बार औवेसी की पार्टी AIMIM ने भी गोधरा में अपना उम्मीदवार उतारा है. AIMIM की तरफ मुफ्ती हसन कच्चबा मैदान में हैं. औवैसी की पार्टी की मौजूदगी से यहां मुकाबला चतुष्कोणिय होने की संभावना है. वहां की राजीनीति के जानकारों का मामना है कि AIMIM की मौजूदगी से इस बार बीजेपी के सीके राउलजी की राह आसान हो गई है.

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चुनावी इतिहास
दंगों के बाद गोधरा में कई चुनाव हुए हैं. हम पिछले कुछ चुनाव परिणाम को विस्तार समझने की कोशिश करते हैं.

2012 में इसकी सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी का नेतृत्व नरेंद्र मोदी करेंगे. नरेंद्र मोदी के लिए गोधरा बेहद अहम सीट रहा था. 2007 के चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. 2012 में कांग्रेस की तरफ से सिटिंग विधायक सीके राउलजी थे. बीजेपी ने इस बार प्रवीण सिंह चौहान के मैदान में उतारा. चुनाव में मुकाबला कांटे का रहा. एक बार फिर कांग्रेस के सीके राउलजी ने कड़े मुकाबले में बीजेपी के प्रवीण सिंह चौहान को 2,868 वोटों से हरा दिया. इस चुनाव में राउलजी को 73,367 वोट मिले, वहीं प्रवीण सिंह चौहान को 70,499 वोटों पर संतोष करना पड़ा.

गोधरा जैसी महत्वपूर्ण सीट पर लगातार हार से बीजेपी चिंतित थी. इस बार बीजेपी ने इसका उपाय खोजा. वहां के सिटिंग विधायक सीके राउलजी को बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. बताया जाता है कि इसके पीछे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति थी. कुछ सियासी जानकारों का मानना है कि सीके राउलजी से पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद बात की थी. बीजेपी की यह रणनीत काम भी आई. गोधरा सीट पर बीजेपी का सूखा भी खत्म हुआ. नजदीकी मुकाबले में राउलजी ने कांग्रेस के राजेंद्र सिंह परमार को पराजित किया. हालांकि, इस चुनाव में सीके राउलजी ने सिर्फ 258 वोटों से जीत हासिल की. चुनाव में सीके राउलजी को 75,149 वोट मिले, वहीं राजेंद्र सिंह परमार को 74,891 वोटों पर संतोष करना पड़ा. 

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गोधरा गुजरात के पंचमहल जिले में पड़ता है. यह पंचमहल लोकसभा का हिस्सा है. पंचमहल लोकसभा पर पिछले 15 सालों से बीजेपी का कब्जा है. बीजेपी के रतन सिंह राठौड़ यहां से सांसद हैं. उन्होंने 2019 में हुए चुनाव में कांग्रेस के वेचतभाई कुबेरभाई को करीब 4,28,541 वोटों से हराया था.

विकास की राह देखता गोधरा
लंबे समय से बीजेपी के सांसद होने के बावजूद गोधरा गुजरात के बाकी कस्बों की तुलना में काफी पिछड़ा है. यहां उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी है. रोजगार के साधन भी कम हैं. बच्चों को पढ़ाई और रोजगार के लिए अहमदाबाद या बडोदरा जाना पड़ता है. आवागमन के अच्छे साधनों की भी कमी है. कुल मिलाकर कहें तो गोधरा अब भी विकास की राह देख रहा है. 

आदिवासी और मुस्लिम वोटर अहम
गोधरा में आदिवासी वोटरों की बड़ी संख्या है. इस सीट पर करीब 15.50 फीसदी आदिवासी वोटर हैं. वहीं दलित वोटरों की संख्या करीब 5 फीसदी के आसपास है. यहां मुस्लिम वोटर भी निर्णायक स्थिति में हैं. मुलसमानों के वोट भी 15 फीसदी हैं. गोधरा के करीब 55 प्रतिशत वोटर ग्रामीण क्षेत्रों के हैं. इसके अलावा यहां राजपूत, बनिया, पाटीदार और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी ठीक-ठाक है. 2019 के वोटर लिस्ट के मुताबिक गोधरा में कुल 2,61,403 वोटर हैं.

गोधरा में दूसरे फेज में 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे. 8 दिसंबर को तय होगा कि गोधरा सीट बीजेपी बचा पाती है या नहीं. 

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