Punjab Assembly Election : पारम्परिक पार्टियों से 'आम आदमी' का मोहभंग क्यों हुआ?

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रवींद्र सिंह रॉबिन

क्या आम आदमी पार्टी पंजाब के वोटरों का सहज चुनाव थी या फिर कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल, भाजपा सरीखी पारम्परिक पार्टियों की अक्षमता और अहंकार से हुई विरक्ति आप की सुनामी लेकर आई है?

 पिछले साठ सालों में पंजाब में राजनैतिक सत्ता और शक्ति अमूमन कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (बादल) - भाजपा गठबंधन के बीच घूमती रही है. इसने समय के साथ इन पार्टियों को अप्रासंगिक बना दिया है. इस वजह से इन पार्टियों के नेताओं और जनता के बीच के विश्वास में कमी होती गई. इस खाली स्थान को भरने का काम आम आदमी पार्टी के नेतृत्व ने किया, यह जनता के लिए तीसरे विकल्प का खुलना था.

पारम्परिक पार्टियों की आसन्न भविष्य को पढ़ पाने की असफलता ने  न केवल उनके नेतृत्व से नया वोट बैंक बनाने का विकल्प छीन लिया बल्कि समय के साथ उनके अपने विश्वासी मतदाता भी दूर होते गए. 

जनता ने अनदेखे-अनजाने अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को चुनना पसंद किया

अकाली की लगातार राज्य संकट की बड़बड़ाहट, कांग्रेस का पंजाब को लेकर आत्म-स्तुत्य भाव में रहना और 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के फ्रीबी वाले सबका साथ -सबका विकास के नारे ने पंजाब के वोटरों पर कोई प्रभाव नहीं डाला. उन्होंने अनदेखे-अनजाने अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को चुनना पसंद किया.  इसके बारे में आप नेताओं  ने चुनावों के दरमियान काफ़ी बात की थी

आम आदमी पार्टी के नए-नवेले उम्मीदवारों के हाथों हैवीवेट नेताओं मसलन पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमिटी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, उप मुख्यमंत्री ओ पी सोनी, अकाली दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया (जिन्हें माझै-दा-जरनैल भी कहा जाता है ) का हारना ख़ुद-ब-ख़ुद लोगों के पंजाब नेतृत्व से  हुए मोहभंग का पता देता है.

 

पक्षपाती और अनुशासनहीन टिकट बंटवारा रहा कांग्रेस की हार की वजह  

पंजाब में कांग्रेस नेतृत्व ने पक्षपाती और अनुशासनहीन टिकट बंटवारे को पहले ही सबसे ख़राब चुनावी तैयारी का दर्जा दे दिया था. खादुर साहिब  लोकसभा क्षेत्र से संसद जसबीर सिंह गिल डिम्पा कहते हैं  कांग्रेस हाई कमान को टिकटों के बंटवारे पर ध्यान देना चाहिए और उन नेताओं की ख़बर लेनी चाहिए जिन्होंने पैसे के बदले  टिकट बांटकर विश्वस्त, ईमानदार और प्रतिभावान कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ किया.

डिम्पा की ही तरह अमृतसर से कांग्रेस के सांसद कहते हैं कि यह अनुशासनहीनता ही पार्टी के उम्मीदवारों के हारने की मुख्य वजह है. उदहारण देते हुए वे कहते हैं, "चरणजीत सिंह चन्नी ने कुछ अच्छे काम किए. उसे इसकी तारीफ़ मिलनी थी पर उसे लगातार कोसा जा रहा था. इसे न कार्यकर्ताओं ने पसंद किया न उन जैसे नेताओं ने."

नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब में महिलाओं  मासिक स्वास्थ्य पर काम करने वाली और 'पैड वुमन ऑफ़ पंजाब' मानी जाने वाली बेहद युवा उम्मीदवार जीवनजोत कौर ने हरा दिया. हारने के बाद सिद्धू ने कहा, "शुक्रिया! यह जनता की जीत है. यह आम लोगों की जीत है जिन्होंने अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली के गुड गवर्नेंस मॉडल में अपना भरोसा जताया है."

पार्टी में चल रहे घमासान पर कुछ और न बोलते हुए सिद्धू ने कहा कि वे समस्याप्रद सिस्टम से लड़ते रहेंगे. उन्होंने 'आप' को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उम्मीद है कि वे उन्हें वोट देकर सत्ता तक पहुंचाने वाले आम लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे.

(लेखक रवींद्र सिंह रॉबिन वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह जी मीडिया से जुड़े हैं. राजनीतिक विषयों पर यह विचार रखते हैं.)  

(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)