डीएनए हिंदी: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक खत्म होने के संकेत हैं. विधानसभा चुनाव में बहुमत पाने के बाद मुख्यमंत्री के नाम पर कशमकश खत्म हो गई है. कांग्रेस हाई कमान के सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लेने के बाद विधायक दल ने भी उस पर मुहर लगा दी है. इसके साथ ही कांग्रेस को 'दूधवाला' मुख्यमंत्री मिल गया है. सीएम पद की दूसरी तगड़ी दावेदार प्रतिभा सिंह (Pratibha Singh) के गुट को डिप्टी सीएम पद देकर शांत रखने का तरीका अपनाया गया है.
आइए 5 पॉइंट्स में जानते हैं कि हिमाचल के नए सीएम सुखविंदर सिंह कौन हैं-
1. कानून की डिग्री रखने वाले सुक्खू तीन बार के विधायक
सुखविंदर सिंह मूल रूप से हमीरपुर जिले के नादौन के रहने वाले हैं. वह लॉ ग्रेजुएट हैं यानी कानून के जानकार हैं. मौजूदा चुनाव में कांग्रेस के प्रचार समिति प्रमुख रहे सुक्खू नादौन सीट से ही विधायक निर्वाचित हुए हैं. उन्होंने तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीता है.
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2. छोटा शिमला में बेचते थे दूध, NSUI से शुरू किया था राजनीतिक सफर
सुक्खू (58 वर्ष) के पिता हिमाचल प्रदेश रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (Himachal Pradesh Road Transport Corporation) में ड्राइवर थे. आर्थिक हालात बहुत अच्छे नहीं होने के चलते सुखविंदर को भी रोजीरोटी के लिए छोटा शिमला (Chhota Shimla) में दूध बेचने का काउंटर चलाना पड़ा था. उन्होंने अपना राजनीतिक करियर कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) से शुरू किया था. साल 1989 में वह NSUI के प्रदेश अध्यक्ष बने, जबकि साल 1998 से 2008 तक हिमाचल प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. उनकी पहचान हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी (Himachal Pradesh University) के एक्टिविस्ट के तौर पर रही है.
3. राहुल गांधी के करीबी रहे हैं सुक्खू
सुक्खू को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के करीबियों में से एक गिना जाता है. इसी कारण उन्होंने मतगणना के बाद कांग्रेस के अंदर शुरू हुई मुख्यमंत्री पद की होड़ में लगातार हाईकमान पर भरोसा होने का ही बयान दिया. उन्होंने हर बार यही कहा कि हाईकमान जो निर्णय लेगा, वह मंजूर करूंगा.
4. 1992 में आए चुनावी राजनीति में
सुखविंदर का चुनावी राजनीतिक सफर साल 1992 में शुरू हुआ था, जब वे शिमला नगर निगम के पार्षद चुने गए. इसके बाद साल 2002 से पहले वह एक बार फिर पार्षद बने. हिमाचल में उनके प्रभाव का अंदाजा इससे भी लग सकता है कि यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने पर उन्हें 2008 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी सचिव बनाया गया था. साल 2013 में वे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी चुने गए. इस पद पर वे रिकॉर्ड छह साल तक रहे.
5. वीरभद्र सिंह परिवार के विपक्षी की छवि
कांग्रेस की तरफ से 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) से सुक्खू की कभी नहीं बनीं. दोनों हमेशा विपक्षी गुट ही माने गए. पिछले साल वीरभद्र सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह (Pratibha Singh) के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर भी ये तनातनी कायम रही. अब मुख्यमंत्री पद को लेकर भी दोनों आमने-सामने रहे थे.
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