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UP Election 2022: कहीं काशी के Kejriwal न बन जाएं Bhim Army चीफ Chandrashekhar Azad

चंद्रशेखर आजाद की गिनती तेज तर्रार नेता के तौर पर होती है. राजनीतिक अनुभव न के बराबर होने के बाद भी उन्हें लेकर एसटी/एससी वर्ग के युवाओं में जबर्दस्त क्रेज देखने को मिलता है.

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में आज़ाद समाज पार्टी  (Azad Samaj Party) की एंट्री हो गई है. भीम आर्मी (Bhim Army) के चीफ चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) की अध्यक्षता वाली यह पार्टी यूपी सियासत में सबसे नई पार्टी है. भारतीय जनता पार्टी (BJP), समाजवादी पार्टी (SP), कांग्रेस (Congress) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के दबदबे वाले उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर आजाद अपनी पहचान तलाश रहे हैं. अचानक से चंद्रशेखर आजाद का 18 जनवरी को दिया गया एक बयान चर्चा में है जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर पार्टी तय करेगी तो वह गोरखपुर शहरी (Gorakhpur Urban) विधानसभा सीट (Assembly Election 2022) से सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं. सवाल यह है कि क्या चंद्रशेखर आजाद सीएम योगी के खिलाफ सीधे चुनावी समर में उतरने से काशी (Kashi) के केजरीवाल (Arvind Kejriwal) तो नहीं साबित हो जाएंगे?

1.क्या काशी के Kejriwal साबित होंगे चंद्रशेखर Azad?

क्या काशी के Kejriwal साबित होंगे चंद्रशेखर Azad?
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2014 का लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2014) याद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े थे. वह तब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ही थे, प्रधानमंत्री बने नहीं थे. बीजेपी जोर-शोर से कैंपेनिंग कर रही थी. अचानक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने ऐलान किया कि वह नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद चुनाव लड़ेंगे. आम आदमी पार्टी (AAP) यूपी में अपना चुनावी भविष्य तलाश रही थी. अरविंद केजरीवाल मोदी लहर में भी बीजेपी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट (Varanasi Lok Sabha) से चुनाव लड़ने पहुंच गए. 17 मई 2014 को नतीजे आए. अरविंद केजरीवाल को नरेंद्र मोदी से  3,71,784 मतों के अंतर से हार मिली. मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे वहीं, दूसरे स्थान पर अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले. कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 75,614 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. सपा, बसपा और कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई थी. चंद्रशेखर आजाद के बयान के बाद यही नतीजे राजनीतिक विश्लेषकों के मन में घूम रहे हैं.



2.क्यों आजाद के लिए आसान नहीं है गोरखपुर की राह?

क्यों आजाद के लिए आसान नहीं है गोरखपुर की राह?
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गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गढ़ है. यहीं से पूर्वांचल की सियासत तय होती है. केंद्र में सरकार किसी की भी हो योगी आदित्यनाथ ही 2014 से पहले तक यहां से सांसद रहे हैं. साल 1998 से 2017 तक यहां के सांसद योगी आदित्यनाथ रहे. 26 साल की उम्र में सांसद बने योगी आदित्यनाथ का यह अभेद्य दुर्ग है. 2018 के उपचुनाव में इस सीट से सपा गठबंधन को जीत मिली लेकिन बीजेपी ने सलीके से उसका डैमेज कंट्रोल कर लिया. बसपा समर्थित सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद यहां से विजयी हो गए थे. प्रवीण निषाद अब बीजेपी नेता हैं. ऐसे में अगर चंद्रशेखर आजाद यहां की राह आसान समझ रहे हैं तो यह आसान नहीं है.



3.न के बराबर हैं चंद्रशेखर आजाद का राजनीतिक अनुभव

न के बराबर हैं चंद्रशेखर आजाद का राजनीतिक अनुभव
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चंद्रशेखर आजाद यूपी की सियासत में लगातार स्थापित होने की कोशिश कर रहे हैं. चुनाव लड़ने का अनुभव उनके पास नहीं है. अभी तक वे मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) के मोहजाल से नहीं निकले हैं. पहली बार ऐसा लग रहा है कि उनकी पार्टी चुनाव लड़ सकती है. चंद्रशेखर आजाद अब कोशिश कर रहे हैं उन्हें भी सियासी तौर पर मजबूत माना जाए. राजनीतिक पार्टियों से उनकी बात बन नहीं पा रही है. ऐसे में अगर वे बिना किसी दूसरी पार्टी के समर्थन के गोरखपुर की सियासत में उतर रहे हैं तो उनके लिए यह डगर मुश्किल साबित हो सकती है.



4.न सपा दे रही साथ, न बढ़ रही बसपा से नजदीकी

न सपा दे रही साथ, न बढ़ रही बसपा से नजदीकी
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बसपा सुप्रीमो मायावती चंद्रशेखर आजाद की सियासत को कभी स्वीकारा ही नहीं. चंद्रशेखर आजाद दलित युवाओं में भले ही लोकप्रिय रहे हों लेकिन मायावती उनकी राजनीतिक को नजरअंदाज करती रही हैं. अखिलेश यादव के साथ शीट शेयरिंग पर बात नहीं बन सकी. चंद्रशेखर आजाद का दावा है कि अखिलेश यादव ने उनसे 25 सीटों का वादा किया था. ऑफर 2 सीटों का दिया गया. चंद्रशेखर आजाद को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने इससे किनारा कर लिया. आजाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यहां तक कह दिया कि अखिलेश यादव ने उनके साथ छल किया है. बसपा से पहले ही उन्हें गठबंधन की आस नहीं है.



5.Congress से है चंद्रशेखर को आस

Congress से है चंद्रशेखर को आस
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चंद्रशेखर आजाद को कांग्रेस से अब भी आस है. प्रियंका गांधी कांग्रेस को यूपी में स्थापित करने की जंग लड़ रही हैं. प्रियंका गांधी के मन में चंद्रशेखर को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर है. अगर गोरखपुर में कांग्रेस चंद्रशेखर का साथ दे तो उन्हें मदद मिल सकती है. हालांकि योगी के गढ़ में बीजेपी, सपा और बसपा की जंग में अगर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी उतरती है तो वह कहां ठहरती है यह भविष्य तय करेगा.



6.क्या सोशल मीडिया का स्टारडम गोरखपुर में करेगा असर?

क्या सोशल मीडिया का स्टारडम गोरखपुर में करेगा असर?
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बीजेपी का राजनीति में उदय जातीय समीकरणों को ध्वस्त करने वाला रहा है. मुस्लिम-यादव जैसे सोशल इंजीनियरिंग के सफल प्रयोग को यूपी की जनता बेअसर होते देख चुकी है. चंद्रशेखर अपनी छवि वर्ग विशेष के नेता के तौर पर ही बनाए रख रहे हैं. चुनाव किसी एक समुदाय के भरोसे नहीं जीता जा सकता है. ऐसे में चंद्रशेखर को बहुजन राजनीति की जगह सर्वजन राजनीति पर बढ़ना होगा. सोशल मीडिया पर भले ही एसटी/एससी वर्ग के युवाओं में उन्हें लेकर क्रेज देखने को मिलता हो लेकिन उस क्रेज को वोट में तब्दील कर पाना मुश्किल है.



7.पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अलग है पूर्वांचल का समीकरण

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से अलग है पूर्वांचल का समीकरण
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चंद्रशेखर आजाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं. मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर में उनकी लोकप्रियता अच्छी है. पूर्वांचल के समीकरण अलग हैं. वहां पहले से दूसरी सियासी पार्टियों का वर्चस्व है. चंद्रशेखर को लोग जानते हों इसमें भी जानकार एकमत नहीं हैं. नई जमीन तलाशने के लिए चंद्रशेखर को ज्यादा मेहनत की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में चंद्रशेखर आजाद का यह बयान कि उनकी पार्टी कहे तो वह योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भी चुनाव लड़ सकते हैं, असरदार नहीं लग रहा है. जानकारों का कहना है कि अगर वह ऐसा करते हैं तो कहीं नतीजे वाराणसी चुनाव की याद न दिला दें. (फोटो सोर्स- फेसबुक/BhimArmyOfficial)



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