किसान आंदोलन के कर्ताधर्ता राकेश टिकैत चुनावी राजनीति में फिसड्डी साबित हुए हैं, दो बार चुनाव लड़े और दोनों बार करारी हार हुई.
डीएनए हिंदीः मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक वर्ष से जो किसान आंदोलन चल रहा है, उसकी कमान भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने संभाव रखी थी. भले ही मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानून रद्द कर दिए हों किन्तु टिकैत अभी भी कुछ बातों के साथ अड़े हुए हैं. राकेश टिकैत के पहले के बयान और मोदी सरकार पर हमले दर्शाते हैं कि वो राजनीतिक महत्वकांक्षा पाले हुए हैं, जबकि उनकी राजनीतिक सफर अच्छा नहीं रहा है.
किसान आंदोलन का नेतृत्व
राकेश टिकैत 'बड़े टिकैत' महेन्द्र सिंह टिकैत के बेटे हैं. पिता की मृत्यु के बाद किसानों के मुद्दों को उठाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. देश में किसान आंदोलन के खिलाफ सर्वाधिक तीखी आवाज राकेश टिकैत की ही रही है.
आंसुओं ने पलट दिया पासा
26 जनवरी की घटना के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ने लगा था लेकिन मोदी सरकार की सख्ती के बीच राकेश टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन को तीखी धार दी थी.
योगी को सीधी चुनौती
राकेश टिकैत ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के खिलाफ प्रचार किया था, जिसका भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ा था. टिकैत अब भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में भी मुश्किले खड़ी करने के संकेत दे रहें हैं.
निशाने पर हैं ओवौसी
लगातार राजनीतिक बयानों के बीच राकेश टिकैत ने हाल ही AIMIM नेता असदद्दीन ओवैसी को भाजपा का समर्थक और मददगार बताया है. टिकैत के इस बयान ने पुनः राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है.
उत्तर प्रदेश में आंदोलन की तैयारी
चुनाव के ठीक पहले राकेश टिकैत के चुनावी बयान दर्शाते हैं कि वो चुनाव में उतर सकते हैं लेकिन उनके राजनीतिक इतिहास को देखकर उनकी राजनीतिक डगर आसान प्रतीत नहीं होती है.
लड़ चुके हैं चुनाव
टिकैत ने पहला चुनाव 2007 में खतौली विधानसभा से लड़ा था. वहीं दूसरा चुनाव 2014 में आरएलडी के टिकट पर अमरोहा लोकसभा सीट से लड़ा. दोनों में ही टिकैत की बुरी हार हुई थी. राकेश टिकैत पीएम मोदी को कृषि कानूनों के मुद्दे पर पीछे हटने के लिए मजबूर कर चुके हैं. इसके इतर उनका राजनीतिक सफर दर्शाता है कि वो एक सफल किसान नेता अवश्य हो सकते हैं किन्तु वो अच्छे राजनेता नहीं हैं.