Assembly Election 2022: कांग्रेस से कहां हो रही है चूक, क्या चुनावी राज्यों में BJP को दे सकेगी टक्कर?

अभिषेक शुक्ल | Updated:May 01, 2022, 07:10 AM IST

राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी. (फाइल फोटो-PTI)

कांग्रेस को संगठनात्मक स्तर पर सुधार की जरूरत पड़ रही है. आलाकमान से लेकर कार्यकर्ता तक का हौसला टूटता नजर आ रहा है.

डीएनए हिंदी: भारतीय राजनीति में अगर किसी पार्टी को संजीवनी की सबसे ज्यादा जरूरत है तो वह कांग्रेस (Congress) है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस का ऐसा हाल किया है कि पार्टी के दिग्गज नेता इस सोच में हैं कि उनका गुजरात, हिमाचल, हरियाणा और राजस्थान में क्या हाल होने वाला है.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश, दो राज्य ऐसे हैं जहां नवंबर में विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) होने वाले हैं. दोनों राज्यों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में नजर नहीं आ रही है. गुजरात में कांग्रेस के खेवनहार अहमद पटेल (Ahmed Patel) को गुजरे 2 साल हो गए हैं. कांग्रेस के पास उनके टक्कर का कोई नेता अब तक सूबे में सामने नहीं आया है.

क्या गुजरात जीत पाएगी कांग्रेस?

गुजरात में कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि न तो वह हार्दिक पटेल (Hardik Patel) के भरोसे अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है न ही जिग्नेश मेवाणी. दो युवा तेज तर्रार नेताओं के अलावा तीसरा चेहरा नजर नहीं आ रहा है. नरेश पटेल के नाम पर सियासी चुगलियां जरूर हुईं लेकिन वह इतने बड़े जननेता भी नहीं हैं कि उनके भरोसे पार्टी की कमान संभाली जा सके.

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कहां हो रही है कांग्रेस से चूक?

कांग्रेस के दिग्गज नेता हमेशा वैकेशन मूड में नजर आते हैं. तीन शीर्षस्थ गांधियों को ही देखें तो यही लगता है. न तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हार के बाद एक्टिव हुई हैं, न ही प्रियंका गांधी. राहुल गांधी की स्थिति भी ऐसी ही नजर आती है. कभी-कभी वह स्क्रीन पर प्रकट होते हैं. 

सोशल मीडिया पर गाहे-बगाहे ट्वीट कर देने वाले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी न तो गुजरात के लिए सक्रिय दिख रहे हैं न ही हिमाचल के लिए. राजस्थान और हरियाणा में भी उनकी दिलचस्पी न के बराबर नजर आ रही है. हालात ऐसे हो गए हैं कि प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) जैसे रणनीतिकार भी कांग्रेस को संजीवनी नहीं दे पा रहे हैं.

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हरियाणा में किसके भरोसे है कांग्रेस?

हरियाणा में कांग्रेस ने उदय भान को नया कांग्रेस कमेटी का चीफ चुना है. उदय भान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी हैं. उनके चुने जाते ही कुलदीप बिश्नोई भड़क गए हैं. कुमारी शैलजा और हुड्डा के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई में इसे एक पक्ष की जीत माना जा रहा है. राज्य में भूपेंद्र सिंह हुड्डा से बड़ा नेता कोई नहीं है. 

उदय भान ने कुमारी शैलजा को रिप्लेस कर दिया है. मांग उठ रही थी कि पार्टी को नए तरीके से राज्य में खड़ा करने की जरूरत है. उदय भान की सियासी विरासत कांग्रेस के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है. वह उन्ही गया लाल के बेटे हैं जिनकी वजह से 'आया राम गया राम' जैसे सियासी मुहावरे की शुरुआत हुई थी. उन्होंने एक ही दिन में 3 राजनीतिक पार्टियों को बदल दिया था.

पंजाब में कौन होगा कांग्रेस का चेहरा?

पंजाब में एक बात तय है कि अब नवजोत सिंह सिद्धू के फेर में कांग्रेस नहीं पड़ेगी. ऐसी करारी हार हुई है कि कांग्रेस उनसे किनारा ही करेगी. चरणजीत सिंह चन्नी भी किनारे हो गए हैं. अब अमरिंद राजा वडिंग को सूबे की जिम्मेदारी दी गई है. अब उनके सियासी सफर का हाल क्या होता है यह अब 5 साल बाद ही पता चलेगा. अभी सिर्फ उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी. अमरिंदर राजा राहुल गांधी के करीबी हैं. वह बीते चुनाव में भारतीय यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष थे. ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस दूर की सोच रही है. आम आदमी पार्टी (AAP) की स्वच्छ राजनीति की छवि के जवाब में कांग्रेस अमरिंदर राजा को तैयार कर रही है.

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हिमाचल का क्या है हाल?

हिमाचल में भी कांग्रेस को खेवनहार की तलाश है. कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को स्टेट यूनिट का चीफ बना दिया है. सियासी जानकार कहते हैं कि अब प्रतिभा सिंह भी पार्टी को बहुत दूर तक लेकर नहीं जा सकती हैं. 2017 से ही राज्य में भारतीय जनता पार्टी ने खुद को स्थापित कर लिया है. ऐसे में प्रतिभा सिंह के भरोसे सियासी उड़ान बहुत मुश्किल लगती है.

प्रयोग करने से हिचकती क्यों है कांग्रेस?

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी लगातार शीर्ष नेतृत्व को लेकर प्रयोग करती रहती है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस कुछ भी नया करने से हिचकती है. 2014 से लेकर अब तक बीजेपी ने अपना तीसरा अध्यक्ष तक चुन लिया है. कांग्रेस आज भी अंतरिम अध्यक्ष के तर्ज पर चल रही है. चेहरे के नाम पर पूरी पार्टी में सिर्फ गांधी त्रिमूर्ति हैं. वहीं बीजेपी ने राज्य से लेकर केंद्र तक हर जगह अपने मजबूत नेताओं को खड़ा किया है. ऐसे में कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे सही नेता और कार्यकर्ता चुने हैं.

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कांग्रेस कैडरहीन पार्टी बनती जा रही है. कांग्रेस सेवा दल का नामोनिशां नहीं है. बूथ स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ता दुर्लभ हो गए हैं. अंदरुनी कलह इतना है कि जिन राज्यों में सत्ता है वहां भी ठना-ठनी चल रही है. पंजाब की सरकार तक इसी वजह से चली गई. कांग्रेस को एक नए सिरे से खड़े होने की जरूरत है जिसकी अनदेखी लगातार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कर रहा है.

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