डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में चार विधानसभा सीटें हैं. इन्हीं में से एक है घोसी विधानसभा सीट. इस क्षेत्र में सौर ऊर्जा केंद्र और चीनी मिल हमेशा से ही चुनावी मुद्दे रहे हैं. गन्ना किसानों की समस्याएं, स्वास्थ्य और शिक्षा में पिछड़ा यह क्षेत्र जातिगत समीकरणों में उलझकर वोट देता आ रहा है. यही वजह है कि यहां पार्टियां भी जाति के हिसाब से ही उम्मीदवार उतारती हैं.
कैसा रहा है चुनावी इतिहास?
घोसी विधानसभा सीट के चुनावी इतिहास की बात करें तो साल 1977 में इस सीट से जनता पार्टी के विक्रम राय ने जीत का परचम लहराया. इसके बाद 1980 में कांग्रेस के केदार ने जीत हासिल की. वहीं साल 1985 में लोक दल, 1991 में जनता दल, 1996, 2002 में भारतीय जनता पार्टी और 2007 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर फागू सिंह चौहान यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचे.
इसके अलावा घोसी विधानसभा सीट से 1989 में कांग्रेस के सुभाष ने अपनी जीत दर्ज की. 1993 में बसपा के अक्षयवर भारती तो 2012 में सपा के सुधाकर चुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित हुए. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले फागू चौहान बीजेपी में लौट आए और अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अब्बास अंसारी को 7003 वोट से हराया. हालांकि साल 2019 में इस सीट पर उपचुनाव कराए गए जिसमें भारतीय जनता पार्टी के विजय राजभर ने जीत हासिल की. दरअसल फागू चौहान को बिहार का राज्यपाल बना दिया गया था जिसके बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. फागू चौहान के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर 2019 में उपचुनाव हुआ और बीजेपी के विजय कुमार राजभर यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचे.
2019 का रिपोर्ट कार्ड विजेता पार्टी | भारतीय जनता पार्टी |
विजेता का नाम | विजय कुमार राजभर |
प्राप्त वोट | 68,371 |
निकटतम प्रतिद्वंद्वी | सुधाकर सिंह |
पार्टी | सपा |
प्राप्त वोट | 66,598 |
हार का अंतर | 1,773 |
तीसरे स्थान पर | अब्दुल कयूम |
पार्टी | बसपा |
प्राप्त वोट | 50,775 |
चौथे स्थान पर | राज मंगल यादव |
पार्टी | कांग्रेस |
प्राप्त वोट | 11,624 |
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सामाजिक समीकरण
घोसी विधानसभा क्षेत्र में चार लाख से अधिक मतदाता हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित और पिछड़ी जाति के वोटरों का प्रभाव ज्यादा है. यहां अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या 56 हजार, 52 हजार से ज्यादा राजभर, 46 हजार से ज्यादा चौहान और 50 हजार से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं.
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