UP Election 2022: 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं हस्नूराम अंबेडकरी, 93 बार हो चुके पराजित

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 21, 2022, 01:41 PM IST

अंबेडकरी का कहना है, मैं हारने के लिए चुनाव लड़ता हूं. जीतने वाले नेता जनता को भूल जाते हैं. मैं 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहता हूं.

डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल जारी है. इस बीच आगरा की खेरागढ़ विधानसभा (Kheragarh Vidhansabha Seat) सीट से 74 वर्षीय हस्नूराम अंबेडकरी चर्चा का विषय बने हुए हैं. दरअसल हस्नूराम इस बार अपना 94वां चुनाव लड़ने जा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया है.

बता दें कि हस्नूराम अब तक 93 बार चुनाव हार चुके हैं. उनकी इच्छा है कि वह 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाएं. अंबेडकरी एक खेत मजदूर के रूप में काम करते हैं. उन्होंने कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा ग्रहण नहीं है लेकिन वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी पढ़ और लिख सकते हैं.

कांशीराम द्वारा स्थापित अखिल भारतीय पिछड़ा एंव अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी फेडरेशन (बामसेफ) के एक सदस्य अंबेडकरी का कहा कि उन्होंने डॉ. भीम राव अंबेडकर (B. R. Ambedkar) की विचारधारा पर चलते हुए सभी चुनाव लड़े हैं. वह 1985 से लोकसभा, राज्य विधानसभा, पंचायत चुनाव और अन्य विभिन्न निकायों के लिए चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.

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इतना ही नहीं, उन्होंने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन किया जिसे 1988 में खारिज कर दिया गया था.

अंबेडकरी का कहना है, मैं हारने के लिए चुनाव लड़ता हूं. जीतने वाले नेता जनता को भूल जाते हैं. मैं 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहता हूं. मुझे परवाह नहीं है कि मेरे विरोधी कौन हैं, क्योंकि मैं मतदाताओं को अंबेडकर की विचारधारा के तौर पर एक विकल्प देने के लिए चुनाव लड़ता हूं.

अंबेडकरी ने 1989 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद सीट से सबसे ज्यादा वोट (36,000) हासिल किए थे. फिलहाल उन्होंने अपनी पत्नी और समर्थकों के साथ घर-घर जाकर प्रचार करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि मेरा एजेंडा हमेशा निष्पक्ष और भ्रष्टाचार मुक्त विकास और समाज में हाशिए के लोगों का कल्याण रहा है.

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कुछ समय के लिए बसपा के सदस्य रहे अंबेडकरी ने बताया, 'मैं बामसेफ का एक समर्पित कार्यकर्ता था. मैंने उत्तर प्रदेश में पार्टी की जड़ें मजबूत करने के लिए बसपा के लिए भी काम किया. 1985 में जब मैंने टिकट मांगा तो मेरा उपहास किया गया और कहा गया कि मेरी पत्नी भी मुझे वोट नहीं देगी. उस बता को लेकर मैं बहुत निराश हो गया था और तब से मैं हर चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ रहा हूं.'

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