डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश में चुनावों के ऐलान के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर की फाजिलनगर विधानसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. पडरौना से दो बार बसपा और एक बार भाजपा के टिकट पर विधायक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य इसबार सपा के टिकट पर फाजिलनगर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं.
क्या स्वामी प्रसाद को पडरौना में था हार का डर
भाजपा छोड़ सपा में जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) काफी आक्रमकता से अपनी जीत के दावे कर रहे थे लेकिन आरपीएन सिंह के भाजपा ज्वॉइन करते हुए उनकी पूरी स्ट्रैटजी पटरी से उतरी नजर आई है. शायद इसी वजह से वो पडरौना छोड़ फाजिलनगर से चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन फाजिलनगर में स्वामी प्रसाद मौर्य की रणनीति सफल रहेगी यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.
फाजिलनगर में कौन जीता था पिछला चुनाव
कुशीनगर की फाजिलनगर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के गंगा सिंह कुशवाहा लगातार दो बार से विधायक हैं. उन्होंने साल 2017 में करीब 40 हजार वोटों से सपा के प्रत्याशी को मात दी थी. उन्हें 1,02,778 वोट मिले थे. इससे पहले साल 2012 में उन्होंने बसपा के प्रत्याशी को 5 हजार मतों से मात दी थी. इसबार भाजपा ने बेटे को टिकट दिया है.
प्रत्याशी | पार्टी | वोट |
गंगा सिंह कुशवाहा (विजेता) | भाजपा | 1,02,778 |
विश्वनाथ | सपा | 60,856 |
जगदीश सिंह | बसपा | 34,250 |
स्वामी प्रसाद मौर्य से किसकी टक्कर?
फाजिलनगर में सपा ने जहां स्वामी प्रसाद मौर्य पर दांव लगाया है, वहीं भाजपा ने गंगा सिंह कुशवाहा के बेटे सुरेंद्र कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा है. यहां बसपा ने सपा के पुराने और बड़े मुस्लिम नेता मोहम्मद इलियास अंसारी को चुनाव मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. अंसारी के बसपा से चुनाव में उतरने यहां मामला त्रिकोणीय हो गया है. कांग्रेस ने इस सीट से मनोज सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है.
क्यों फाजिलनगर में भी कुशवाह की राह आसान नहीं?
RPN सिंह की भाजपा में एंट्री के बाद फाजिलनगर आए स्वामी प्रसाद मौर्य की फाजिलनगर में दिक्कतें कम नहीं है. यहां के जातीय समीकरण साधना उनके लिए आसाना नहीं होने वाला है. फाजिलनगर में करीब 4 लाख मतदाता हैं. इनमें से ब्राहाम्ण वोट 10 फीसदी हैं, क्षत्रिय 7 फीसदी हैं, वैश्य 8 फीसदी हैं.
इसके अलावा करीब 8 फीसदी वोट अन्य सामान्य जातियों का है. इसके अलावा कुशवाहा वोट की तादाद 13 फीसदी है, सैंथवार जाति के वोट 9 फीसदी हैं. यहां मुस्लिम मतों की संख्या 15 फीसदी हैं जबकि दलित जातियां 17 फीसदी हैं. अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि स्वामी प्रसाद यहां के जातीय समीकरण साधने में कामयाब होंगे या उनका बड़बोलापन उन्हें ले डूबेगा.
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