डीएनए हिंदी: मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने अल्पसंख्यक समुदाय से रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठने और प्रगतिशील विचारों को अपनाने की अपील करते हुए शनिवार को कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने से ज्यादा प्रगति के लिए शिक्षा अधिक महत्वपूर्ण है. संगठन ने कहा कि भारत में मुसलमानों में निरक्षरता की दर सबसे अधिक 43 प्रतिशत है और समुदाय में बेरोजगारी की दर भी बहुत अधिक है.
MRM के राष्ट्रीय संयोजक एवं प्रवक्ता शाहिद सईद ने कहा, "मुसलमानों को सोचना चाहिए कि उनकी साक्षरता दर सबसे कम क्यों है. भारत के मुसलमानों को एक प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. उन्हें यह समझना होगा कि उन्हें किताब की जरूरत है, न कि हिजाब की. उन्हें रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठकर शिक्षा और प्रगति पर ध्यान देना चाहिए."
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उन्होंने कहा कि भारत में कुल मुस्लिम आबादी का केवल 2.75 प्रतिशत स्नातक या इस स्तर की शिक्षा से ऊपर है. इनमें महिलाओं का प्रतिशत मात्र 36.65 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों में स्कूल छोड़ने की दर सबसे अधिक है और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर लड़कों की तुलना में अधिक है.
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शाहिद सईद ने कहा, "हमें सोचना चाहिए कि हमारे पास स्नातकों का इतना कम प्रतिशत क्यों है जबकि देश में मुसलमानों की आबादी कम से कम 20 करोड़ है." उन्होंने कहा कि चाहे सरकारी क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र, रोजगार में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है. उन्होंने कहा, "और यह अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ किसी पूर्वाग्रह के कारण नहीं है. जब किसी समुदाय में स्नातकों का इतना कम प्रतिशत और स्कूल छोड़ने की दर अधिक होती है, तो यह स्पष्ट है कि इसके सदस्य पीछे रह जाएंगे."
MRM संयोजक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन के दौरान ‘तीन तलाक’ को समाप्त करके मुस्लिम महिलाओं को इस सदियों पुरानी प्रथा के दर्द से मुक्त कर दिया है. उन्होंने कहा, "यह मुस्लिम महिलाओं के स्वाभिमान और गरिमा का कानून है. आज उनकी स्थिति में बहुत बदलाव आया है. कानून लागू होने के बाद से बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को राहत मिली है. लोग अपने परिवार को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दे रहे हैं."