डीएनए हिंदीः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) को लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) नया सामाजिक फॉर्मूला तैयार कर करने में जुटे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) और दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chouhan) के यूपी कैबिनेट से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी में शामिल होने को इसी सोशल इंजीनियरिंग प्रयास के परिणाम के रूप में देखा जा रहा है. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित कर रणनीति तैयार की थी. इसमें बीजेपी (BJP) को प्रचंड बहुमत भी मिला था. अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान को पार्टी में शामिल कर इसी समीकरण को तोड़ने का काम किया है. अखिलेश यादव चुनाव से ठीक पहले गैर यादव ओबीसी नेताओं को आकर्षित करने में जुटे हुए हैं. लालजी वर्मा और राम अचल राजभर का सपा में शामिल होना उसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
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यादव और कुर्मी के बाद मौर्य तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक
बीजेपी में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य को दूसरा सबसे बड़ा गैर-यादव ओबीसी चेहरा माना जाता था. स्वामी प्रसाद मौर्य पिछले तीन दशक से यूपी काी राजनीति में हैं. उन्होंने पिछड़ा वर्ग में अपनी अच्छी पकड़ बनाई है. वह बौद्ध धर्म, बीआर अंबेडकर और दलित नेता कांशीराम के बारे में मुखर रहे हैं. बसपा को छोड़ जब वह बीजेपी में शामिल हुए तो उन पर विचारधारा से अधिक राजनीतिक अवसरवाद का आरोप लगा. स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा से समाजवादी पार्टी में जाने से विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के दावे को बल मिलने की संभावना है. स्वामी प्रसाद मौर्य जिस समुदाय से आते हैं वह उत्तर प्रदेश में ओबीसी श्रेणी में यादवों और कुर्मियों के बाद तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक है. इसके अतिरिक्त, स्वामी प्रसाद मौर्य ने कभी भी खुद को सभी समुदायों के नेता के रूप में स्थापित नहीं किया. उन्होंने खुद को दलितों और पिछड़े वर्गों के नेता के रूप में पेश किया है.
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नोनिया समुदाय पर अखिलेश की नजर
स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा अखिलेश ने दावा सिंह चौहान पर बड़ा दांव खेला है. स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह दारा सिंह चौहान भी 2017 के यूपी चुनावों से पहले बहुजन समाज पार्टी से भाजपा में शामिल हो गए. बसपा में रहते हुए चौहान ने 1996 में राज्यसभा की सदस्यता जीतने वाले पिछड़े वर्गों के नेता की प्रतिष्ठा बनाई. इसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा. हालांकि चुनाव में हार के बाद वह बसपा में वापस शामिल हो गए. उन्होंने 2009 में बसपा के लिए घोसी लोकसभा सीट जीती, लेकिन 2014 में मोदी लहर में वह हार गए. भाजपा में चौहान ने पार्टी के पिछड़ा वर्ग मोर्चा का नेतृत्व किया, जिसने उन्हें 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में मैदान में उतारा और योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री बनाया गया. अखिलेश यादव की निगाहें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान की मदद से भाजपा के नोनिया समुदाय के वोट बैंक में पैठ बनाने की हैं.