सियासी कद बढ़ाने में जुटीं Mamata Banerjee, हरियाणा में TMC का दफ्तर खोला, क्या होंगी चुनौतियां?

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डीएनए हिंदी: पश्चिम बंगाल (West Bengal) के विधानसभा चुनावों में मिले प्रचंड बहुमत के बाद अब ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) अपना सियासी कद बढ़ाने की कोशिश में हैं. ममता बनर्जी अब तृणमूल कांग्रेस (TMC) का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहती हैं. यही वजह है कि कभी ममता बनर्जी दिल्ली के औचक दौरे पर होती हैं तो कभी महाराष्ट्र. अब ममता बनर्जी  हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हो गई हैं. 

हरियाणा किसान आंदोलन के केंद्र में रहा है. किसान आंदोलन के दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं का किसान व्यापक स्तर पर विरोध कर रहे थे. कभी बीजेपी नेताओं के काफिलों को रोकने की कोशिश हुई तो कभी उग्र विरोध प्रदर्शन हुआ. ममता बनर्जी ने किसानों की इसी नाराजगी को भुनाने की कोशिश की है.

ममता बनर्जी ने राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रॉय (Sukhendu Sekhar) को हरियाणा का इंचार्ज बनाया है. हरियाणा के नेता अशोक तंवर को ममता ने अभी चेहरा बनाया है. अशोक तंवर राहुल गांधी के करीबी नेताओं में शुमार रहे हैं. उन्होंने नवंबर ही में तृणमूल कांग्रेस का दामन थामा था. हरियाणा में टीएमसी के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.

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हरियाणा के हर जिले में होगा TMC का दफ्तर

ममता बनर्जी हरियाणा में जमीनी पैठ मजबूत करने की कोशिश में हैं. यही वजह है कि हरियाणा के सभी 22 जिलों में पार्टी का दफ्तर खोला जाएगा. मार्च 2022 तक टीएमसी की योजना है कि राज्य में वृहद स्तर पर सदस्यता अभियान चलाया जाए.

किन क्षेत्रीय पार्टियों से मिलेगी चुनौती

ममता बनर्जी का कद अभी क्षेत्रीय नेता का ही है, भले ही वे लगातार तीसरे मोर्चे की नेता के तौर पर खुद को पेश कर रही हों. कांग्रेस अब भी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. हरियाणा में तृणमूल कांग्रेस को कई स्तर पर चुनौतियों से जूझना होगा. हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के बाद भी कई पार्टियां हैं जिनका मजबूत जनाधार है. जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) और हरियाणा लोकहित पार्टी जैसे राजनीतिक दल हैं. बीजेपी के पास 40 सीटें, कांग्रेस के पास 31 सीटें, जेजेपी के पास 10 सीटें, आईएनएलडी  के पास 1 और एचएलपी के पास 1 सीटे हैं. बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधी जंग में टीएमसी कहां ठहरती हैं इसे आने वाला वक्त ही बताएगा.

आसान नहीं है TMC की हरियाणा में राह

ऐसा बेहद कम हुआ है कि जब क्षेत्रीय पार्टियों को सियासत में देशव्यापी पहचान मिली हो. जब भी क्षेत्रीय पार्टियां अपने राज्यों से बाहर निकलने की कोशिश करती हैं निराशा हाथ लगती है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल युनाइडेट (जेडीयू), नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), शिव सेना और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) पार्टियों के प्रयासों को देखकर तो यही लगता है.

ममता बनर्जी की छवि देश के बाकी हिस्सों में कठोर प्रशासक के तौर पर रही है. विपक्षी दलों का आरोप है कि उनका रवैया तानाशाही वाला रहा है. 2011 से ही ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की सत्ता में रही हैं. वहां की राजनीतिक हिंसा को लेकर उन पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं. पश्चिम बंगाल के विकास को लेकर भी हमेशा उन पर सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में ममता बनर्जी को दूसरे राज्यों में लोग क्यों पसंद करेंगे यह अपने आप में एक सवाल है. ममता की भाषण शैली भी हिंदी में उतनी प्रभावी नहीं है कि लोग उनके चार्म में खिंचे चले आएं और टीएमसी  की मजबूत जमीन तैयार करें.

बीजेपी से अब नाराज नहीं हैं किसान!

तीनों नए कृषि कानूनों को केंद्र सरकार वापस ले चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान भी किया था. संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन भी वापस ले लिया है. किसान संगठनों ने यह भी कहा है कि अगर केंद्र सरकार अपने वादों को पूरा नहीं करती है तो एक बार फिर किसान विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरेंगे. अभी के समीकरणों के मुताबिक किसान बीजेपी से नाराज नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में किसानों के गुस्से का फायदा ममता बनर्जी को तो मिलता नजर नहीं आ रहा है.

...विधानसभा और लोकसभा चुनाव हैं बहुत दूर

ममता बनर्जी को सियासी जमीन तैयार करने में वक्त लगेगा. हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2019 में हुए थे. 2019 में लोकसभा चुनाव भी हुए थे. ऐसे में राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर चुनाव होने में अभी करीब 3 साल हैं. सियासी जमीन तैयार करने के लिए टीएमसी के पास वक्त है. तब तक बीजेपी और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के पास भी खुद को मजबूत करने का और वक्त है. ऐसे में ममता की राह हरियाणा में कितनी आसान होगी यह अभी कहना मुश्किल है.

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