डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और राज्य में भाजपा के बड़े नेताओं में से एक केशव प्रसाद मौर्य सिराथू विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं. केशव प्रसाद मौर्य पहले भी सिराथू से विधायक रहे चुके हैं. उन्होंने साल 2012 में यहां से विधानसभा का चुनाव जीता था. सिराथू में इसबार केशव प्रसाद मौर्य का मुकाबला अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल से है.
केशव 'बेटा' तो पल्लवी 'बहू'
सिराथू केशव प्रसाद मौर्य का होम ग्राउंड है. केशव प्रसाद मौर्य पूरे यूपी में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. वो अपने चुनाव अभियान के बारे में पूछे जाने पर केशव कहते हैं, "मैं सिराथू से उम्मीदवार नहीं हूं, मैं सिराथू का बेटा हूं और सिराथू के लोग मेरे चुनाव अभियान की देखभाल कर रहे हैं."
भाजपा के कार्यकर्ता यहां लगातार अपने प्रचार में सपा-अपना दल कमेरवादी की प्रत्याशी पल्लवी पर बाहरी कहकर हमला करते हैं लेकिन पल्लवी पटेल इस आरोप को खारिज करते हुए कहती हैं कि वह "कौशाम्बी की बहू" हैं.
क्या है जमीनी हकीकत?
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) के समर्थक अपनी जीत तय मान रहे हैं, वहीं पल्लवी पटेल और उनके कार्यकर्ता सपा की जीत का दावा कर रहे हैं. केशव प्रसाद मौर्य और भाजपा समर्थक यहां अपनी सरकार के काम गिनवा रहे हैं. राशन, बिजली और कानून व्यवस्था का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ पल्लवी पटेल जातीय समीकरण के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश करती दिखाई दे रही हैं.
इतिहास और आंकड़े किसके पक्ष में?
केशव प्रसाद मौर्य पहले भी सिराथू विधानसभा सीट से विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. उन्होंने साल 2012 के चुनावों में यहां भाजपा का कमल खिलाया था. इसके बाद साल 2014 में वो लोकसभा सांसद चुन लिए गए थे. तभी सपा यहां पहली बार कोई चुनाव जीती थी. हालांकि तब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी.
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इसके अलावा सपा का इस सीट पर कोई खास प्रभाव नहीं है जबकि भाजपा ने सिराथू में पिछला विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीता था. साल 2017 में केशव प्रसाद मौर्य के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भाजपा ने कौशांबी जिले की तीनों सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसबार सपा ने गठबंधन ने यह सीट अपना दल कमेरावादी को दी है. हालांकि स्थानीय जानकारों का कहना है कि यहां सपा संगठन हमेशा से कमजोर रहा है इसलिए यह सीट अपना दल को दी गई है.
जमीन पर किसकी पकड़ है मजबूत?
जमीनी पकड़ के बारे में बात करे तो यहां केशव प्रसाद मौर्य को पल्लवी के मुकाबले ज्यादा लाभ मिलता है. केशव प्रसाद मौर्य को स्थानीय होने की वजह से लोग व्यक्तिगत तौर पर भी पहचानते भी हैं. भाजपा के अलावा संघ की जमीनी सक्रियता का भी उन्हें लाभ मिलने की पूरी संभावना है जबकि पल्लवी की पार्टी अपना दल कमेरावादी का संगठन यहां भाजपा के मुकाबले काफी कमजोर हैं. सपा का प्रत्याशी न होने की वजह से पार्टी के कई स्थानीय दिग्गज भी चुनाव में उतनी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं जितनी उन्हें लेनी चाहिए.
केशव का कद पल्लवी के लिए सबसे बड़ी चुनौती!
बात अगर सियासी कद की करें तो पल्लवी पटेल के लिए सबसे बड़ी चुनौती केशव प्रसाद मौर्य का सियासी कद है. यहां दोनों पार्टियों के प्रचार में भी काफी अंतर नजर आ रहा है. पल्लवी जहां अकेले ही अपना प्रचार कर रही हैं तो वहीं केशव प्रसाद मौर्य के पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं का लगातार सिराथू में आगमन हो रहा है. बताया जा रहा है कि खुद केशव प्रसाद मौर्य भी अंतिम दिनों में यहां प्रचार करेंगे.
क्या हैं जातीय समीकरण?
अगर पुराने आंकडों पर नज़र डालें तो यहां मुख्य रूप से पिछड़े और दलित मिलकर तय करते हैं कि विधानसभा में सिराथू का प्रतिधिनित्व कौन करेगा. 2012 और 2017 में भाजपा को यहां इन दोनों वर्गों के वोट अच्छी संख्या में हासिल हुए थे. भाजपा का कोर वोटर इसबार पार्टी की तरफ लामबंद नजर आ रहा है.
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वहीं दूसरी तरफ पल्लवी पटेल को यादव और मुस्लिम वोट तो मिलते दिखाई दे रहे हैं लेकिन पटेल मतदाता बंटा हुआ नजर आता है. पल्लवी के लिए एक मुश्किल यह भी है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने सिराथू में मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है, जो सिर्फ और सिर्फ सपा और अपना दल कमेरावादी गठबंधन का नुकसान करता नजर आता है.