UP में बदलाव की बयार में कुछ बाहुबलियों को मिली हार तो कुछ ने पहना जीत का 'हार' 

पुष्पेंद्र शर्मा | Updated:Mar 11, 2022, 10:43 PM IST

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रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया ने लगातार आठवीं बार कुंडा सीट से जीत दर्ज की. पढ़िए आरती राय की रिपोर्ट

डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश के पूरब से आने वाली हवाओं ने इस बार अपना रुख बदला है. बदलाव की राजनीति की तरफ आगे बढ़ते हुए जनता ने इस बार पूर्वांचल के ज्यादातर बाहुबली उम्मीदवारों को सिरे से नकार दिया. हालांकि कुछ बड़े नाम के साथ साथ बाहुबली छवि वाले प्रत्याशी जीतने में कामयाब भी रहे लेकिन जनता ने ज्यादातर बाहुबली उम्मीदवारों को सिरे से खारिज कर दिया. 

उत्तर प्रदेश के चुनावी परिणामों के मुताबिक बाहुबली उम्मीदवार धनंजय सिंह (मल्हनी), विजय मिश्रा (ज्ञानपुर), यश भद्र सिंह मोनू (इसौली) और उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी (नौतनवा) को जनादेश नहीं मिला. वहीं, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने कुंडा से और अभय सिंह ने गोसाईगंज से जीत हासिल की. 

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इनको बाहुबलियों को मिली हार
जौनपुर की मल्हनी सीट से जनता दल (यूनाइटेड) के बाहुबली उम्मीदवार धनंजय सिंह को सपा प्रत्याशी लकी यादव ने 17,527 वोटों से हराया. गौरतलब है कि पूर्व में सांसद रह चुके धनंजय सिंह का हमेशा से विवादों से नाता रहा है. पूर्व में उनपर हत्या का मामला भी चला था हालांकि बाद में हुई जांच में उन्हें क्लीनचिट मिल गई थी.

ज्ञानपुर सीट से वर्ष 2002 से लगातार विधायक बनते आ रहे बाहुबली विजय मिश्रा को इस बार करारी हार मिली. वह वर्ष 2017 में निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर पार्टी के एकमात्र विधायक बने. इस बार निषाद पार्टी से टिकट न मिलने के कारण  उन्होंने  प्रगतिशील मानव समाज पार्टी का रुख किया और तीसरे स्थान पर रहे. 

सियासत पर चार बार से कब्जा जमाने वाले विधायक विजय मिश्रा साल 2002, 2007 और 2012 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे पर  2017 में समाजवादी पार्टी से टिकट न मिलने पर निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते लेकिन विधायक का किला आखिरकार 18वें विधानसभा चुनाव में ढह गया. विधानसभा सीट ज्ञानपुर से वह पांचवीं बार सदन तक नहीं पहुंच सके. विजय मिश्रा पांचवीं बार जेल से ही चुनाव लड़ रहे थे लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया. 

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सुल्तानपुर की इसौली सीट से दो बार चुनाव लड़ चुके बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बाहुबली उम्मीदवार यश भद्र सिंह मोनू को एक बार फिर पराजय का सामना करना पड़ा. वह इससे पहले भी बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ चुके हैं.

इसी तरह हत्या के मामले में पूर्व में जेल जा चुके अमनमणि त्रिपाठी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. साल 2017 के नौतनवा सीट से अमनमणि त्रिपाठी ने जीत दर्ज की थी. इस बार उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह जीत नहीं पाए. अमनमणि, मधुमिता शुक्ला हत्याकांड मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्वांचल के माफिया राजनेताओं में शुमार अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं. 

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वो बाहुबली जिन्होंने फिर लहराया जीत का परचम 

एक बार फिर बाहुबली नेता और विवादों से घिरे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया ने लगातार आठवीं बार कुंडा सीट से जीत का बिगुल बजाया. आमतौर पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते वाले राजा भैया ने इस बार चुनाव से पहले जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक का गठन किया और  उसी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते. गौरतलब है कि राजा भैया वर्ष 1993 से लगातार प्रतापगढ़ की कुंडा सीट पर  विधायक के तौर पर काबिज़ हैं. 

इसी लिस्ट में दूसरा नाम आता है समाजवादी पार्टी के बाहुबली प्रत्याशी अभय सिंह जो गोसाईगंज सीट  किस्मत आज़मा रहे थे और जीत भी दर्ज की. एक बार पहले साल  2012 में भी सपा के ही टिकट पर अभय सिंह ने जीत हासिल की थी. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजय का स्वाद चखना पड़ा था. 

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अगर बाहुबली राजनेताओं के रिश्तेदारों की बात करें तो पूर्वांचल के माफिया राजनेता बृजेश सिंह के भतीजे सुशील से सैयदराजा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. सुशील जीत हासिल कर चौथी बार विधानसभा पहुंचे.  इससे पहले 2007 में बसपा के टिकट पर धानापुर सीट से चुनाव जीते थे जबकि साल 2012 में वह सकलडीहा सीट से विधायक बने थे. 

उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेताओं की बात करें तो सबसे ऊपर मुख़्तार अंसारी का नाम आता है. मऊ सदर सीट से कई बार विधायक रहे माफिया राजनेता मुख्तार अंसारी इस बार चुनाव नहीं लड़े लेकिन इस सीट से उनके बेटे अब्बास अंसारी चुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा तक का रास्ता तय किया. 

अब्बास समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के टिकट पर मऊ सदर सीट से विधायक चुने गए. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के अशोक कुमार सिंह को 38 हजार वोटों से हराया. 
 

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