Book Review: JNU का सफर कराती है जे सुशील की 'जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता'

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Dec 19, 2022, 12:45 PM IST

चर्चा में है जे सुशील की किताब जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता.

जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता किताब जे सुशील ने लिखी है. पढ़िए इस किताब का रिव्यू.

'अगर उच्च शिक्षा में सब्सिडी न मिले तो गरीब बच्चों का पढ़ना मुहाल हो जाएगा.' ये शब्द हैं एक लेखक, पत्रकार जे सुशील जिन्होंने अपनी किताब 'जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता' में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अपने अनुभवों के ज़रिए पाठकों के सामने एक समग्र संस्थान का विचार रखा है. जेएनयू की बुनियाद संवैधानिक मूल्यों पर रख गई है. 

अपने खुले वातावरण के चलते जेएनयू हमेशा आलोचना की रोशनी में घिरा रहता है. इसपर जे का कहना है - 'भले ही कैंपस के बारे में कोई कुछ भी बोले लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, जब कैंपस को बदनाम किया गया, उस दौरान भी अकादमिक सूचियों में जेएनयू सबसे ऊपर रहा.'

जेएनयू नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क की 2022 की यूनिवर्सिटी रैंकिंग में दूसरे स्थान पर है. कम संसाधन वाले और हाशिए के समुदायों से आने वाले शिक्षार्थी न केवल जेएनयू जैसे संस्थानों में पढ़ने का सपना देख सकते हैं, बल्कि बिना किसी आर्थिक अड़चन के अपने सपनों को साकार भी कर सकते हैं. 

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बतौर सार्वजनिक विश्वविद्यालय, जेएनयू सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता को खुल के गले लगाता है. तमाम तरह की विविधता को अपनाने के लिए, एक संस्था का समावेशी होना ज़रूरी है. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और साथ ही मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में समावेशी. यह समतावादी स्पेस शिक्षार्थियों को मानवतावादी मूल्यों के आधार पर कौशल और विचारों से लैस करता है. 

इस पृष्ठभूमि में जे लिखते हैं- 'जेएनयू में सिखाया जाता है कि इंसान कैसे बना जाए और शायद इसीलिए यहां के छात्र अच्छा बनने के क्रम में अकादमिक रूप से भी बेहतर कर पाते हैं.'

जे का मानना है जेएनयू में बहसों से लेकर ढाबों की बातचीत तक, सभी सीखने के केंद्र हैं. कक्षा अध्ययन शिक्षार्थियों को उनके विषयों की समझ विकसित करने में मदद करता है, लेकिन कैंपस का माहौल उन्हें ज़िंदगी के कई सबक सिखाता है. जैसे लैंगिक 'विभिन्नता' आम है 'असमानता' नहीं. महिला-पुरुष साइकिल के पहिए जैसे हैं. दोनों के बीच का तालमेल जितना ज़रूरी ज़िंदगी के सफ़र को सुगम बनाने के लिए है, उतना ही समाज में तारतम्यता लाने के लिए भी है. लेकिन, इन दोनों के अस्तित्वों के बीच असमानता की 'अप्राकृतिक' दीवार की नींव बहुत ही गहरी और मज़बूत है.

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नाइजीरियाई लेखिका चिमामांडा न्गोज़ी अदिची कहती हैं- 'लड़के और लड़कियां जैविक रूप से बेशक अलग हैं, लेकिन समाजीकरण इस भेद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है.' यह भी सच है कि समाजीकरण भी इन अंतरों को कम कर सकता है. जैसा कि जेएनयू का कैंपस करता है. 

जे का मानना है गलतफ़हमियों को कम करने के लिए संवाद बहुत ज़रूरी है. 'किसी भी लड़के के लिए किसी लड़की से बात करने की मनाही नहीं है. कोई किसी को पसंद करे, तो जाकर सीधे कह दे, कोई बुरा नहीं मानता है इस बात का. इस खुलेपन के कारण कई समस्याएं आसानी से अपने आप सुलझ जाती हैं." जेएनयू को विभिन्न समुदायों, संस्कृतियों और धर्मों के शिक्षार्थी मिलकर बनाते हैं. औपचारिक और साथ ही अनौपचारिक बातचीत उन्हें दूसरे समुदायों से जुड़े अपने पूर्वाग्रहों को दूर करने में मदद करती हैं. इससे उनके बीच प्यार का बीज विकसित होता है. प्यार के इस बीज को खाद पानी देने का काम करते हैं वहां के प्रोफेसर. 

जे कहते हैं- 'जेएनयू के अच्छे शिक्षकों और ज्यादातर शिक्षकों का पढ़ाने का ध्येय यही होता है कि छात्र खुद सोचना सीखें. अपनी दृष्टि का विकास करें, ताकि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार स्वयं गढ़ें, किसी से प्रभावित न हों, सवाल करना सीखें, बहस करना जानें.'

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'अगर कोई मुझसे पूछे कि जेएनयू में क्यों पढ़ना चाहिए या फिर जेएनयू में ऐसा क्या ख़ास है तो मैं यही कह सकता हूं कि इकोसिस्टम, एक ऐसी व्यवस्था जिसमें शिक्षक किसी ऊंचे आसन पर नहीं है, बल्कि आपके साथ खड़ा है. यह भाव नया सोचने, इनोवेट करने और अकादमिक एक्सीलेंस के लिए प्रयास करने का मौक़ा देता है.'

जे ने अपनी किताब में पब्लिक यूनिवर्सिटी की ज़रूरत को सही ठहराया है. प्राइवेट यूनिवर्सिटी की चकाचौंध ज़ाहिर ही सबको अपनी ओर खींचती है, लेकिन ज्यादातर शिक्षार्थियों के लिए लाखों में फीस देना नामुमकिन होता है. शिक्षा हर इंसान का मौलिक अधिकार है और इसलिए सभी को अच्छी शिक्षा मुहैया कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है. 

जे ने अपनी किताब के ज़रिए पिछले कुछ वर्षों से तरह-तरह के विवादों का विषय रहे जेएनयू की तस्वीर पाठकों के सामने रखी है. 'जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता' किताब बहस पैदा करती है कि एक विश्वविद्यालय कैसा होना चाहिए? जो भी शिक्षार्थी उच्च शिक्षा लेना चाहते हैं उन्हें यह किताब पढ़नी चाहिए. यह किताब सबके लिए है. जेएनयू को खास पसंद ना करने वालों से लेकर उन तक जो वहां पढ़ने का सपना देखते हैं.

(यह रिव्यू रिया चंद ने लिखा है जो नानकमत्ता स्कूल में बारहवीं की छात्रा हैं.)

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