Demonetization : देश में कैश बढ़ा, क्या सफल हुई नोटबंदी!

अभिषेक सांख्यायन | Updated:Nov 07, 2022, 07:17 PM IST

इकोनॉमी के सुचारू संचालन के लिए कितने नगदी चाहिए. इसे RBI तय करता है. अमूमन नगदी देश की GDP के 10 प्रतिशत हिस्से के आसपास ही रहती है.

डीएनए हिंदी: 8 नवंबर, 2016 को देश में नोटबंदी की घोषणा हुई थी. उस समय सरकार ने बताया था कि इससे काला धन और डिजिटल इकोनामी को बढ़ाने में मदद मिलेगी. मगर नोटबंदी के 7 साल के बाद (Demonetization) के बाद से देश की इकोनामी में कैश बढ़ता ही गया है. वहीं देश में लेनदेन में डिजिटल पेमेंट की भागीदारी भी बढ़ती जा रही है. आईए देखें कितनी सफल हुई नोटबंदी?

इकोनामी में कैश बढ़ा!
देश की अर्थव्यवस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए कितने नगदी चाहिए. इसे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) तय करता है. आमतौर पर देश में नगदी देश की GDP का 10 प्रतिशत के आसपास ही रही है. 2016 से अब तक कुल देश में करेंसी 75% बढ़ चुकी है. 2016 में 17.6 लाख करोड़ कैश मौजूद था, 6 जनवरी 2017 को ये कम होकर 8.9 लाख करोड़ रह गया था.10 अक्तूबर, 2022 को जारी ताजा आंकड़ो के तक देश में 30.9 लाख करोड़ करेंसी मौजूद थी.

साल 2011-12 में  GDP और करेंसी का अनुपात 12.22% था. साल 2014-15 में Currency to GDP Ratio कम होकर 11.62% रह गया था. नोटबंदी के वक्त नगदी जमा होने के कारण ये अनुपात गिरकर 8.6% रह गया था. इसके बाद ये धीरे धीरे साल दर साल बढ़ता ही चला गया. कोविड प्रभावित साल 2020-21 में ये बढ़कर 14.41% हो गया था. पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में थोड़ा कम होकर 13.24 प्रतिशत रहा है.

कैश कालाधन नहीं
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंज के चेयर प्रो. अरुण कुमार का कहना है कि, “कैश काला धन नहीं है. कैश काले धन का महज एक प्रतिशत है. कैश को काली कमाई नहीं मानना चाहिए. नोटबंदी के समय ये बताया गया था कि कैश निकल जाएगा तो काला धन खत्म हो जाएगा. ऐसा नहीं हुआ. 99.3 % कैश तो वापिस आ गया.”

किस पर निर्भर करती है कैश की डिमांड
देश में नोटबंदी के बाद बढ़े कैश और जीडीपी के अनुपात के बारे में प्रो. कुमार बताते हैं कि, हर देश में कैश की डिमांड उस देश के लोगों के व्यवहार पर निर्भर करती है. जैसे जापान में लोग ज्यादा कैश रखते हैं वहीं स्वीडन में कम कैश पर भरोसा है.देश में मौजूद कैश के बढ़ने और आर्थिक गतिविधि (Economic Activity) का आपस में कोई संबध नहीं है. वहीं वरिष्ठ अर्थशास्त्री वृंदा जागीरदार कैश की डिमांड के बारे में कहती हैं कि, “ लोग संकट के समय कैश अपने पास रखना चाहते हैं. कोविड और लॉकडाउन के समय एक सामान्य स्वभाव और प्रतिक्रिया थी कि न जाने कब पैसों की जरुरत पड़ जाए.इस वजह से बाजार में कैश ज्यादा आया है.”

इस साल दीवाली वाले हफ्ते कम हुआ कैश का इस्तेमाल
SBI रिसर्च ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि इस साल दीवाली पर कैश की डिमांड कम हुई है. पिछले कई सालों हजारों करोड़ रु ज्यादा कैश बाजार में उपलब्ध होता है. लेकिन इस साल 7600 करोड़ रु कम कैश मौजूद था. लेकिन दीवाली में खरीददारी बेहतर हुई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि देश कैश लेड इकोनॉमी से स्मार्टफोन लेड इकोनॉमी में परिवर्तित हो गया है.

बढ़ रही हैं Digital Payments
नोटबंदी का दूसरा लक्ष्य बताया गया था डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना भी शामिल था. डिजिटल ट्रांसेक्शन में जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिली है. सितंबर 2016 में UPI  द्वारा महज 3200 करोड़ रु का ट्रांसेक्शन हुआ था. जो कि अक्तूबर 2018 को 12 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है.

UPI ने IMPS को पछाड़ा

UPI से पहले अधिकतर लेनदेन IMPS के जरिए होता था. लेकिन सितंबर 2019 के बाद से UPI ने IMPS को पीछे छोड़ दिया. सितंबर 2022 तक IMPS से कुल 4.5 लाख करोड़ का लेन देन हुआ. वहीं UPI के जरिए 11.10 लाख करोड़ के ट्रांसेक्शन हुए. UPI से पहले अधिकतर लेनदेन IMPS के जरिए होता था. लेकिन सितंबर 2019 के बाद से UPI ने IMPS को पीछे छोड़ दिया. सितंबर 2022 तक IMPS से कुल 4.5 लाख करोड़ का लेन देन हुआ. वहीं UPI के जरिए 11.10 लाख करोड़ के ट्रांसेक्शन हुए.

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