डीएनए हिंदी: शेयर बाजार (Share Market) में तेजी को देखते हुए. बहुत सी कंपनियों ने अपना आईपीओ (IPO) लॉन्च किया है. बता दें कि जुलाई 2023 में अब तक मिनिमम 15 कंपनियों (एक्सचेंज के एसएमई प्लेटफार्म पर वर्तमान कंपनियों समेत) की लिस्टिंग किया गया है. सेबी (SEBI) के ड्राफ्ट ऑफर डॉक्यूमेंट बताते हैं कि आने वाले समय में अभी और आईपीओ लॉन्च होने वाले हैं. ऐसे में देखा गया है कि कई निवेशक आईपीओ में निवेश कर तो लेते हैं. लेकिन उन्हें आईपीओ में इस्तेमाल होने वाले बड़े शब्दों का मतलब मालूम नहीं होता है. आज हम उन सभी के लिए कुछ महत्वपूर्ण टर्मिनोलॉजी को आसान भाषा में समझाने की कोशिश करेंगे. इन सभी टर्मिनोलॉजी के बारे में जान लेने के बाद आपके लिए IPO में निवेश करना और भी ज्यादा आसान हो जाएगा.
फिक्स्ड प्राइस और बुक-बिल्ट इश्यू क्या है?
फिक्स्ड प्राइस वैल्यू वाली कंपनी में पहले ही तय कर लिया जाता है की आईपीओ में निवेशकों को किस कीमत पर शेयर दिए जाएंगे. उदाहरण के तौर पर एक कंपनी AccelerateBS India अभी जल्दी ही BSE SME एक्सचेंज के लिस्ट में शामिल हुई थी. इस कंपनी ने 90 रुपये प्रति शेयर का फिक्स्ड प्राइस तय किया था. लेकिन BSE या NSE मेनबोर्ड की लिस्टों में ज्यादातर गैर SME कंपनियां बुक-बिल्ट इश्यू का ऑप्शन ही चुनती है. इन कंपनियों के ऐसा करने के कारण आईपीओ लॉन्च करने वाली कंपनियां अपने शेयर की तय कीमत के बजाय उसके प्राइस बैंड का घोषणा कर देती हैं. इसके बाद इश्यू प्राइस तय करने के लिए एक सीमा के अंदर ही इन शेयरों पर कीमत बोली के आधार पर लगाया जाता है.बुक-बिल्ट इश्यू में निवेशक की बोलियों को सबमिट करते हैं. इसमें शेयरों की संख्या और उसकी कीमत की जानकारी दी जाती है. निवेशकों को इसे खरीदने के लिए बोली के बाद कट-ऑफ/इश्यू प्राइस बन जाता है. ये शेयर की लास्ट कीमत होती है. जिसे बाजार में जारी किया जाता है.
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ऑफर फॉर सेल या फ्रेश इश्यू किसे कहते हैं?
अगर कोई कंपनी आईपीओ के द्वारा फ्रेश इश्यू या ऑफर फॉर सेल या दोनों के कॉम्बिनेशन के साथ फंड को इकट्ठा करती है. तो फ्रेश इश्यू किसी कंपनी के निवेशकों का पूंजी इकट्ठा कर सकती है और इस पैसे का इस्तेमाल निवेश ,लोन चुकाने जैसे कामों के लिए कंपनी की मदद करती हैं. इसके अलावा ऑफर फॉर सेल में शेयरों को प्रमोटर या वर्तमान के निवेशक जनता को बेच देते हैं और शेयर बेचने का पैसा शेयरधारकों को मिलता है, कंपनी को नहीं.
ASBA की शुरुआत कब हुई?
बता दें कि ASBA (एप्लिकेशन सपोर्टेड बाय ब्लॉक अमाउंट) की शुरुआत पहली बार सेबी के द्वारा 2008 में किया गया था. इसके बाद 2016 से इसे आईपीओ के लिए जरूरी कर दिया गया है. आईपीओ का इस्तेमाल करते समय आपके सामने अक्सर ASBA शब्द आता होगा. इसके अंतर्गत आईपीओ के आवेदन करने पर आपका पैसा बैंक अकाउंट में ही रहता है. बैंक का काम है कि ये अलॉटमेंट तक आपके अकाउंट में आवेदन राशि को ब्लॉक करके रखें. जब आपको शेयर दिए जाते हैं तभी आपके अकाउंट से पैसे कटते हैं. अगर आपका शेयर अभी आवंटित नहीं है तो आपका पैसा अनब्लॉक ही रहेगा. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आपके पैसे पर इंटरेस्ट भी बढ़ता रहता है.
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जानिए क्या है एंकर निवेशक?
एंकर निवेशक बड़े इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स को कहते हैं. इसमें म्यूच्यूअल फंड (Mutual Fund), सॉवरेन वेल्थ फंड और बीमा कंपनियां आदि शामिल होती हैं. बता दें कि लोगों के लिए आईपीओ में शेयर की पेशकश के बाद सब्सक्रिप्शन (IPO Subscription) खोला जाता है. इसके बाद जनता शेयर को सब्सक्राइब कर इश्यू को सपोर्ट करती है. शेयरों की कीमत पर आवंटन के बाद ही आईपीओ को खोला जाता है. किसी इश्यू को अच्छा तभी माना जाता है, जब उसका एंकर पार्टिसिपेशन मजबूत होता है. बहुत से रिटेल निवेशकों को आईपीओ में हिस्सा लेने के लिए फैक्टर को समझना अनिवार्य होता है.
साल 2022 में भारत का सबसे बड़ा LIC IPO (एलआईसी आईपीओ) में एंकर निवेशकों के द्वारा ही मजबूत डिमांड देखा गया था. सेबी के नियमों के मुताबिक, एंकर निवेशकों को शेयरों के आवंटन में से आधे शेयरों के लिए 30 दिन का लॉक-इन टाइम और बाकी के लिए 90 दिन का लॉक-इन टाइम दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि निवेश किए गए शेयरों की कीमत स्थिरत बनी रहे.
Greenshoe ऑप्शन क्या है?
ग्रीन शू ऑप्शन इसके मुताबिक, इश्यू के ओवरसब्सक्राइब होने के बाद पब्लिक होने वाले कंपनी के पास निवेशकों के अलावा भी शेयर जारी करने का ऑप्शन होता है. आईपीओ प्रॉस्पेक्टस बताते हैं कि किस इश्यू में ग्रीन शू का ऑप्शन है. इस ऑप्शन का इस्तेमाल करते समय शेयर जारी नहीं किया जा सकते हैं. इसके साथ ही निवेशकों को आवंटित करने के अतिरिक्त शेयर प्रमोटरों से ही उधार भी लेना पड़ता है.
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