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इस लिस्ट में भारत की हैं दिग्गज कंपनियां, जिन्होंने हमेशा देश की मदद की

किसी भी कर्मचारी या देश के लिए वही कंपनी अच्छी होती है जो दूसरों के हित में काम करती है. ऐसी ही कंपनियों के दम पर हमारे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत है.

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  • Feb 22, 2022, 05:09 PM IST

भारत में भी कुछ ऐसी ही कंपनियां हैं जिन्होंने ना सिर्फ अपना नाम बनाया बल्कि देश की आर्थिक स्थिति को संभाले रखा है. आइये जानते हैं कौन सी हैं यह कंपनियां?

1.महिंद्रा एंड महिंद्रा

महिंद्रा एंड महिंद्रा
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महिंद्रा के इतिहास की बात करें तो यह कंपनी तब शुरू हुई थी जब देश आजाद हुआ था. ऐसी स्थिति में देश के सामने आर्थिक स्थिति को संभालना मुश्किल हो रहा था. इस दौरान दो भाइयों ने देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती देने में अपना योगदान देने की कोशिश की. ये दो भाई थे जगदीश चंद्र महिंद्रा और कैलाश चंद्र महिंद्रा. दोनों भाइयों ने मिलकर 1945 में मालिक गुलाम मुहम्मद के साथ मिलकर महिंद्रा एंड मोहम्मद कंपनी की शुरुआत की थी. इस कंपनी को दोनों भाई मिलकर स्टील कंपनी बनाना चाहते थे जिससे देश को मजबूती मिल सके. हालांकि देश बंटने से बहुत सी समस्याएं आईं बावजूद इसके महिंद्रा बंधुओं ने कंपनी को आगे बढ़ाने का फैसला किया.आज महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप की कुल संपत्ति 22 बिलियन है. इस ग्रुप का कारोबार आज 100 देशों में फैला हुआ है. 150 कंपनियों के साथ महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप ने ना केवल देश की आर्थिक स्थिति को सहारा दिया है बल्कि 2.5 लाख से ज़्यादा लोगों को रोजगार भी दिया है.



2.टाटा ग्रुप

टाटा ग्रुप
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टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा इंडियन इंडस्ट्री के पिता के तौर पर माने जाते हैं. जमशेदजी टाटा ने साल 1870 के दशक में अपना एक कपड़े का मिल शुरू किया था. इस मिल को शुरू करने के बाद जमशेदजी टाटा के विजन ने भारत में स्टील एंड पॉवर इंडस्ट्री को मोटिवेट किया. आज के समय में टाटा ग्रुप विश्व के तमाम कोने में मौजूद है. इस ग्रुप के आदर्शों और विजन ने असाधारण व्यापारिक ग्रुप को आकार दिया है.



3.ओबेरॉय होटल्स

ओबेरॉय होटल्स
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मोहन सिंह ओबेरॉय जब 6 महीने के थे तभी उनके पिता की मौत हो गई थी जिसके बाद उनकी मां ने बड़ी मुश्किल से उनका पालन-पोषण किया. मोहन सिंह ने पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी पाने के लिए भरसक कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ जिसके बाद थक हार कर उन्होंने एक जूता बनाने वाली फैक्ट्री में काम किया. हालांकि यह फैक्ट्री भी कुछ समय बाद बंद हो गई. मोहन सिंह ने हालातों से हार नहीं माना और शिमला के एक बड़े होटल सिसिल में क्लर्क के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. किस्मत ने यहां मोहन सिंह का साथ दिया और उन्होंने उसी होटल को 1935 में 25000 रुपये में खरीद लिया. आज होटल ओबेरॉय को किसी पहचान की जरुरत नहीं है. इस होटल ने देश की उन्नति में आर्थिक तौर पर भी मदद किया.



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