Cheque Bounce Cases: अब अगर चेक बाउंस हुआ तो होगी कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

Written By नेहा दुबे | Updated: May 19, 2022, 09:50 PM IST

चेक बाउंस (सांकेतिक चित्र)

अगर अब किसी का चेक बाउंस हुआ था सुप्रीम कोर्ट इस पर बाद कार्रवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक खास कमिटी का गठन किया है.

डीएनए हिंदी: चेक बाउंस को लेकर अक्सर ग्रहकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसको लेकर अदालत ने पहले ही काफी सख्‍त न‍ियम बना रखे हैं. अब अगर आपका या आपके क‍िसी र‍िश्‍तेदार / दोस्‍त का चेक बाउंस होता है तो उसकी खैर नहीं. दरअसल अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चेक बाउंस (Cheque Bounce) के मामलों को लेकर एक सितंबर से पांच राज्यों में र‍िटायर्ड न्यायाधीश के साथ विशेष अदालतों के गठन का निर्देश दे दिया है. बता दें कि यह गठन इसलिए किया गया है जिससे समस्याओं का जल्दी निपटारा किया जा सके.
 
किया गया विशेष अदालतों का गठन

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने कहा कि महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बड़ी संख्या में लंबित मामलों को देखते हुए 'नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट' के तहत विशेष अदालतें (Special Court) गठित की जाएगी.
 
कब से शुरू होंगी स्‍पेशल कोर्ट

पीठ ने कहा, 'हमने पायलट अदालतों (Pilot Court) के गठन के संबंध में न्याय मित्र के सुझावों को शामिल कर लिया है. इसके ल‍िए हमने समयसीमा भी दी है. यह 1 सितंबर 2022 के बाद से शुरू होनी है.' पीठ ने कहा कि अदालत के महासचिव यह तय करेंगे कि मौजूदा आदेश की प्रति सीधा इन 5 उच्च न्यायालयों के महापंजीयक को मिले, जो उसे तत्काल कार्रवाई के लिए मुख्य न्यायाधीशों के समक्ष पेश कर सकते हैं.
 
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जुलाई तक दायर करना होगा हलफनामा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने महासचिव को इस आदेश के बारे में इन राज्यों के उच्च न्यायालयों के महापंजीयक को सूचित करने का निर्देश दिया है. साथ ही उन्हें इस आदेश के पालन करने पर 21 जुलाई 2022 तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. मालूम हो कि न्याय मित्र ने सुझाव दिया कि एक पायलट परियोजना के तौर पर हर जिले में र‍िटायर्ड जज वाली एक अदालत होनी चाहिए.
 
बता दें कि अब इस मामले पर 28 जुलाई को सुनवाई होगी. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने प‍िछले द‍िनों चेक बाउंस मामलों के भारी संख्या में लंबित रहने पर संज्ञान लेते हुए ऐसे मामलों के तत्काल निस्तारण का निर्देश दिया था. आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर 2019 तक ऐसे मामले 35.16 लाख थे.

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