डीएनए हिंदी: हर देश की अपनी एक करेंसी होती है. वैसे ही रुपया भी भारत की करेंसी है. रुपये के कमजोर होने या मजबूत होने की खबर अक्सर आपको सुनने में आता होगा, लेकिन इससे आपको क्या फायदा या नुकसान होता है? अगर नहीं जानते तो यहां हम आपके इन्हीं सवालों का बड़ी ही आसान भाषा में जवाब देंगे?
रुपये के कमजोर या मजबूत होने की वजह
रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी डिमांड और सप्लाई पर डिपेंड करती है. इसपर इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट का भी असर पड़ता है. बता दें हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है जिससे वे एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं. आम बोलचाल भाषा में इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं. समय-समय पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया इसके आंकड़े जारी करता रहता है. विदेशी मुद्रा के घटने या बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा में वृद्धि या गिरावट देखने को मिलती है. बता दें कि अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी की अहमियत हासिल है. यानी कि ज्यादातर निर्यात की जाने वाली चीजों का पेमेंट अमेरिकी डॉलर में किया जाता है. यही कारण है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा कितना मजबूत या कमजोर है.
रुपये का पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ने का कनेक्शन
भारत अपनी जरुरत के मुताबिक 80 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पाद दूसरे देशों से आयात करता है. अब अगर रुपये की कीमत में गिरावट आती है तो पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा देती हैं.
पेट्रोल डीजल के दाम पर असर
एक आंकड़े के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की बढ़ोतरी होने से तेल कंपनियों पर 8 हजार करोड़ रुपये का भार पड़ता है जिसकी वजह से पेट्रोल-डीजल के दाम में मजबूरन बढ़ोतरी करनी पड़ती है. अगर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो लगभग 0.8 प्रतिशत महंगाई बढ़ जाती है.
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