पेपरवेट की जगह 1,000 करोड़ का हीरा रखता था ये शख्स, जानिए कौन था ये अमीर

Written By नेहा दुबे | Updated: Apr 18, 2023, 11:16 AM IST

Diamond (Symbolic Image)

Most Expensive Diamond: क्या आपको पता है कि हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान 1000 करोड़ रुपये का हीरा पेपरवेट के तौर पर इस्तेमाल करते थे.

डीएनए हिंदी: 1937 में मीर उस्मान अली खान (Mir Osman Ali Khan) टाइम पत्रिका के कवरपेज पर थे और हों भी क्यों ना? आखिर द बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, हैदराबाद के सातवें निज़ाम को "दुनिया का सबसे अमीर आदमी" कहा जाता था. बता दें कि 40 के दशक की शुरुआत में उनकी कुल संपत्ति लगभग 236 बिलियन डॉलर (18 लाख 68 हजार करोड़ रुपये) थी. 

मीर उस्मान अली खान ने 30 और 40 के दशक में अकूत संपत्ति अर्जित की थी.उन्होंने दुर्लभ जैकब हीरे (Jacob Diamond) का इस्तेमाल एक पेपरवेट के रूप में किया. यह हीरा 185 कैरेट चूने के आकार का रत्न था. जिसका टाइम्स नाउ ने 1000 करोड़ रुपये का मूल्य बताया है. वहीं उनके गैरेज में कम से कम 50 रोल्स-रॉयस (Rolls-Royce) कारें थीं, जिनमें सबसे प्रतिष्ठित सिल्वर घोस्ट थ्रोन कार (Silver Ghost Throne Car) भी शामिल थी.

मालूम हो कि ऐतिहासिक तौर पर मीर उस्मान अली खान निज़ाम (Nizam) की उपाधि को सही अर्थों में धारण करने वाले अंतिम व्यक्ति थे. 1948 में हैदराबाद के विलय के बाद, उन्हें गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर भी, उन्होंने राज्य के गवर्नर के रूप में कार्य किया.

जब सातवें निजाम के शासनकाल की बात आती है तो इतिहासकारों के विचार थोड़े अलग होते हैं. हालांकि, लगभग सभी इस बात से सहमत हैं कि उनके अधीन, तत्कालीन रियासत ने एक स्ट्रक्चरल और एडमिनिस्ट्रेटिव उछाल देखा. सबसे जरूरी बात यह है कि निश्चित रूप से उनके पास अपनी अधिक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स का समर्थन करने के लिए फंड था. आइए जानते हैं उनके पास कितनी संपत्ति थी?

18 लाख 68 हजार करोड़ की नेटवर्थ वाले इस निजाम ने 1000 करोड़ के हीरे को पेपरवेट के तौर पर इस्तेमाल किया.

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गोलकोंडा खान (Golconda Mines)

दुनिया को ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की हीरे की खानों के बारे में पता चलने से बहुत पहले, गोलकोंडा हीरे की खदानें (Golconda Diamond Mines) पहले से ही हैदराबाद के निज़ामों के लिए धन के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में काम कर रही थीं. हैदराबाद के पास स्थित, खदानों को 16वीं से 19वीं शताब्दी तक दुनिया के बेहतरीन और सबसे बड़े हीरों के व्यापारिक केंद्र के रूप में बताया गया था. बिजनेस 18वीं शताब्दी में हैदराबाद साम्राज्य वैश्विक बाजार के लिए हीरों का एकमात्र सप्लायर बन गया.

जब मीर उस्मान अली खान (Mir Osman Ali Khan) को उपाधि विरासत में मिली, तो उन्होंने इन आकर्षक खानों का स्वामित्व भी अपने हाथ में ले लिया, जिससे उनकी नेट वर्थ में काफी बढ़ोतरी हुई. उनके पास दरिया-ए नूर (Darya-e Nur), नूर-उल-ऐन डायमंड (Nur-Ul-Ain Diamond), कोह-ए-नूर (Koh-i-Noor), होप डायमंड (Hope Diamond), प्रिंसी डायमंड (Princie Diamond), रीजेंट डायमंड (Regent Diamond) और विटल्सबैक डायमंड (Wittelsbach Diamond) जैसे कई कीमती हीरे थे.

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निज़ाम के सोने और जवाहरात

द बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक मीर उस्मान अली खान के सोने और गहनों ने उनकी कुल संपत्ति (2019 तक) में 2933537733.42 डॉलर का योगदान दिया. हैदराबाद के निजामों के पास भारत के अन्य राजघरानों (मुगलों को छोड़कर) से ज्यादा आभूषण होने की अफवाह थी. भारत सरकार को बेचे गए 173 गहनों में कथित तौर पर 2,000 कैरेट के पन्ने और 40,000 के मोती शामिल थे. इसमें रत्न, हार और पेंडेंट, झुमके, बाजूबंद, चूड़ियां, कफ़लिंक और बहुत कुछ शामिल था.

निज़ाम के पास ऐतिहासिक जैकब हीरा (Jacob Diamond) भी था, जो दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा पॉलिश सॉलिटेयर था, जिसका मूल मालिक अलेक्जेंडर मैल्कन जैकब (Alexander Malcon Jacob) के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने इसे 1891 में बेल्जियम सिंडिकेट से खरीदा था. यह भी माना जाता है हीरा मूल रूप से मीर उस्मान अली खान के पिता, छठे निज़ाम महबूब अली खान (Nizam Mahboob Ali Khan) का था, जिन्होंने इसे "दुर्भाग्यपूर्ण" कहा और इसे अपनी चप्पल की नोक के भीतर छिपा कर रखा. कहानी यह है कि मीर उस्मान अली खान ने इसे अपने पिता की चप्पल से निकाला और इसे समान रूप से विचित्र तरीके से - पेपरवेट के रूप में इस्तेमाल किया. जैकब हीरे का वर्तमान मूल्यांकन लगभग 1,000 करोड़ रुपये के आसपास होने का अनुमान है.

1995 में, भारत सरकार ने निज़ाम के ट्रस्ट से GBP 13 मिलियन (1,303,131,60 रुपये) में अत्यधिक प्रतिष्ठित हीरा खरीदा. यह वर्तमान में मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) में है.

रोल्स रॉयस कारें (Rolls Royce Car)

प्रिंस मुकर्रम जाह (Prince Mukarram Jah) - हैदराबाद के आठवें निज़ाम को कारों के साथ छेड़छाड़ करना पसंद था. द वायर के मुताबिक, उन्होंने यहां तक ​​दावा किया कि उन्हें अपने दादा मीर उस्मान अली खान से एक कबाड़खाना विरासत में मिला था. साल 1907 और 1947 के बीच के वर्षों में रोल्स रॉयस (Rolls Royce) ने वैश्विक स्तर पर अपनी 36,000 लक्ज़री कारों की बिक्री की, जिनमें से भारत में 1,000 से अधिक का हिसाब था और इन 1,000 कारों में से 50 मीर उस्मान अली खान की थीं. उनके कलेक्शन में एक बार्कर-कोच (Barker-Coach) निर्मित रोल्स रॉयस सिल्वर घोस्ट (Rolls Royce Silver Ghost) भी शामिल था, जिसे उन्होंने 1912 में खरीदा था. 2117 के चेसिस नंबर और 40/50 हॉर्स पावर की इंजन क्षमता के साथ, इंदौर के विंटेज कार क्यूरेटर राणा मानवेंद्र सिंह बड़वानी (Rana Manvendra Singh Barwani) द्वारा शाही कार को इसके पूर्व गौरव पर बहाल किया गया था.

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एडमिनिस्ट्रेटिव प्रोजेक्ट्स

सातवें निज़ाम ने हैदराबाद के लोगों के लिए सार्वजनिक संस्थानों का निर्माण करने के लिए अपने नेट वर्थ का इस्तेमाल किया. इसमें प्रसिद्ध उस्मानिया जनरल अस्पताल (Osmania General Hospital) शामिल था - जो अभी भी शहर के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा केंद्रों में से एक है, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद (State Bank of Hyderabad) और उस्मानिया विश्वविद्यालय (Osmania University), जो शिक्षा की भाषा के रूप में उर्दू का उपयोग करने वाला पहला विश्वविद्यालय था. उन्होंने 1908 की मुसी नदी (Musi River) की बाढ़ के बाद बेगमपेट हवाई अड्डे (Begumpet Airport), हैदराबाद उच्च न्यायालय (Hyderabad High Court) और दो जलाशयों, उस्मान सागर (Osman Sagar) और हिमायत सागर (Himayat Sagar) के निर्माण का काम भी शुरू किया.

निज़ाम मीर उस्मान अली खान (Nizam Mir Osman Ali Khan) ने अपनी मृत्यु तक किंग कोठी पैलेस (King Kothi Palace) में रहना चुना. 24 फरवरी 1967 को उनका निधन हो गया और अगले दिन उन्हें मस्जिद-ए-जुदी (Masjid-e Judi) में दफनाया गया. राज्य सरकार ने 25 फरवरी 1967 को शोक दिवस के रूप में घोषित किया, सरकारी कार्यालय बंद रहे और पूरे राज्य में भारत का राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा. इसके बाद उनके पोते, प्रिंस मुकर्रम जाह (Prince Mukarram Jah) को हैदराबाद के अगले टाइटूलर निज़ाम के रूप में राज्याभिषेक किया गया.

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