Russia-Ukraine Crisis: भारत और यूक्रेन के बीच कपड़ों का कारोबार हुआ प्रभावित, एक्सपर्ट्स ने दी ये सलाह

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 01, 2022, 07:40 PM IST

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे जंग का असर अब कपड़ा उद्योग पर भी देखने को मिल रहा है.

डीएनए हिंदी: रूस और युक्रेन के बीच चल रही लड़ाई की वजह से लोगों में तीसरे विश्व युद्द का खतरा घर करने लगा है. इस लड़ाई ने वैश्विक महंगाई का डर भी बढ़ा दिया है. बता दें इस जंग का असर सिर्फ कच्चे तेल की कीमतों पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि छोटे-बड़े कई ऐसे कारोबार हैं जिनपर इनडायरेक्टली असर पड़ेगा. यूक्रेन और भारत के बीच कपड़ों का कारोबार एक ऐसा ही क्षेत्र है. कयास लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में भारत से यूरोप के शहरों में जाने वाले कपड़ों के कारोबार पर भी असर पड़ सकता है.

कपड़ों के उद्योग पर असर 

रूस और यूक्रेन के युद्द का असर भारत में कपड़ों की इंडस्ट्री पर पड़ने लगा है. APPAREL CITY यानी कपड़ों के शहर नोएडा और दिल्ली समेत भारत के कई शहरों से यूरोप में रेडीमेड कपड़ों का निर्यात होता है. युद्ध के माहौल में निर्यात तो छोड़िए जो ऑर्डर तैयार थे वो भी अधर में लटके हुए हैं. फिलहाल ये असर यूक्रेन और भारत के कारोबार पर पड़ रहा है लेकिन आने वाले वक्त में भारत से पूरे यूरोप को हो रही कपड़ों की सप्लाई चेन पर इसका प्रभाव पड़ सकता है.
 
सनफ्लावर ऑइल पर प्रभाव  
 
रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव का असर भारतीय रुपये, कच्चे तेल और सनफ्लावर ऑयल पर तो पड़ ही रहा है आम आदमी की जेब पर भी पड़ रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक यूक्रेन संकट का सीधा असर भारत की आम जनता पर भी पड़ेगा. पेट्रोल-डीजल, नेचुरल गैस, खाद्य तेल (Edible Oil) और गेहूं महंगी हो सकती हैं. यूक्रेन और भारत के बीच तकरीबन 3 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है. भारत में मौजूद यूक्रेन एंबेसी की वेबसाइट के मुताबिक  भारत यूक्रेन से 2 बिलियन डॉलर का यानी तकरीबन डेढ़ खरब का आयात करता है. भारत यूक्रेन से केमिकल्स, खाने का तेल और मशीनें खरीदता है जबकि यूक्रेन भारत से दवाएं, इलेक्ट्रिकल्स और कपड़े खरीदता है. यूक्रेन भारत से 721 मिलियन डॉलर यानी तकरीबन 55 अरब का सामान आयात करता है. हालांकि जानकार मानते हैं कि भारत के कुल आयात निर्यात कारोबार में ये लेन देन 10 फीसदी से भी कम का है.
  
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की किमत 

भारत में अभी कच्चे तेल की कीमतें संभली हुई हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें 15 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ चुकी हैं. ये तय है कि वैश्विक स्तर पर कारोबार को संभलने में लंबा वक्त लगेगा.

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