डीएनए हिंदी: भारतीय रेलवे (Indian Railways) में प्रतिदिन करोड़ो यात्री सफर करते हैं लेकिन एक केस रेलवे को भारी पड़ गया है.रिजर्वेशन के बावजूद एक बुजुर्ग पैसेंजर को सीट नहीं मिली और यहा देना रेलवे को बहुत भारी पड़ा. इस मामले में उपभोक्ता आयोग ने रेलवे को हर्जाने के रूप में एक लाख रुपये देने का आदेश दिया है. यह मामला 14 साल पुराना है और अब आयोग ने इस केस में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है जो कि रेलवे और इसमें सफर करने वाले यात्रियों के लिए भविष्य के लिहाज से अहम है.
दरअसल, 14 साल पहले 2018 में दिल्ली के दक्षिण जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (South District Consumer Disputes Redressal Commission) ने इंद्र नाथ झा की शिकायत पर ईस्ट सेंट्रल रेलवे के जनरल मैनेजर को मुआवजा देने का फैसला सुनाया है. इंद्र नाथ झा ने फरवरी 2008 में दरभंगा से दिल्ली की यात्रा के लिए टिकट बुक कराई थी लेकिन रिजर्वेशन के बावजूद उन्हें बर्थ नहीं दी गई. बुजुर्ग को पूरे रास्ते खड़े होकर यात्रा करनी पड़ी.
आयोग ने कहा कि स्लीपर क्लास के टीटीई ने एसी के टीटीई को बताया था कि पैसेंजर ने ट्रेन पकड़ ली है और वह बाद में वहां पहुंचेंगे. आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता को रिजर्वेशन के बावजूद कोई बर्थ नहीं दी गई और उन्हें बिना सीट के यात्रा करनी पड़ी. किसी यात्री को अपनी रिजर्व बर्थ पर बैठने का अधिकार है और इसमें किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं है. यदि बर्थ अपग्रेड कर दी गई थी तो उन्हें वह बर्थ मिलनी चाहिए थी. आयोग ने कहा कि यह रेलवे की लापरवाही का मामला है.
आयोग ने अपने फैसले में कहा कि लोग आरामदायक यात्रा के लिए ही एडवांस में रिजर्वेशन कराते हैं लेकिन शिकायतकर्ता को इस यात्रा में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. ऐसे में उन्हें मुआवजा मिलना ही चाहिए. शिकायत के मुताबिक रेल अधिकारियों ने झा की कन्फर्म टिकट किसी और को बेच दी थी.
वहीं इस घटना के संबंध में जब उन्होंने टीटीई से पूछा तो उन्हें बताया गया कि स्लीपर क्लास में उनकी सीट को एसी में अपग्रेड कर दिया गया है लेकिन जब झा वहां पहुंचे तो ट्रेन अधिकारियों ने उन्हें वो बर्थ भी नहीं दी. इस कारण उन्हें दरभंगा से दिल्ली की यात्रा खड़े-खड़े करनी पड़ी जो कि एक अफसोस जनक घटना थी.
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वहीं इस मामले में रेलवे ने अपनी गलती नहीं ंमानी है औऱ कहा है कि झा ने 5 घंटे बाद तय स्टेशन से अलग किसी अन्य स्टेशन से बोर्डिंग की थी जिसके चलते टीटीई ने उनकी टिकट अन्य जरूरतमंद यात्री को दे दी. रेलवे अब तक इस मामले में अपनी गलती नहीं स्वीकार रहा है जबकि आयोन ने रेलवे की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े किए हैं.
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