डीएनए हिंदी: दुनिया भर में कई ऐसे बिजनेस शुरू हुए जो छोटे पैमाने से शुरू होकर इतने बड़े हो गए कि आज हर किसी की इनकी कहानी हर किसी की जुबान पर है. चाहे फिर वह कोका-कोला (Coca-Cola), रावलगांव (Ravalgaon), न्यूट्रिन (Nutrine), चेलपार्क स्याही (Chelpark ink) हो या फोर्ड (Ford). इन सभी कंपनियों ने अपनी किस्मत खुद लिखी. हाल ही में एक और ऐसा ही ब्रांड है जो खत्म हो गया. यह ब्रांड कोई और नहीं रेनॉल्ड्स (Reynolds) है. इसके एक पेन की शुरुआती कीमत 3 रुपये थी. इससे ना जानें कितनी ही साड़ी बचपना की यादें जुड़ी हुई हैं.
रेनॉल्ड्स की शुरुआत कहां हुई?
कंपनी के तौर पर रेनॉल्ड्स की शुरुआत अमेरिका में हुआ. 1945 में रेनॉल्ड्स (Reynolds) के प्रोडक्ट्स ने मार्केट में तूफान ला दिया था. धीरे-धीरे यह ब्रांड भारत में आया और एक आइकन बन गया. बाटा की तरह, रेनॉल्ड्स की शुरुआत भी भारत में नहीं हुई थी, लेकिन इसने तेजी के साथ भारत में अपना सिक्का जमा लिया.
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इसकी अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियां इसकी पॉपुलैरिटी के आस-पास भी नहीं फटक सकीं. दरअसल अन्य कंपनियों के पेन रेनॉल्ड्स के मुकाबले काफी महंगे थे. प्रतिस्पर्धी कंपनियों में पार्कर, पायलट और मित्सुबिशी थे. लेकिन ये महंगे पेन भारतीय शिक्षा प्रणाली का बोझ नहीं उठा पाए. क्लास नोट्स से लेकर ऑफिस के पेपर वर्क तक में हर वक्त पेन की जरुरत पड़ती थी जिसे रेनॉल्ड्स के पेन ने बिना महंगा किए काम को पूरा किया.
भारतीय शिक्षा प्रणाली की लेखन जरूरतों को करने के लिए अन्य ब्रांडों के पास एक या दो पेन थे. लेकिन रेनॉल्ड्स के पास कई ऑप्शन थे. इसमें खासकर 045 फाइन कार्ब्यूर - सचिन तेंदुलकर पेन था. इस पेन की रिफिल या स्याही कभी ख़राब नहीं हुई.
रेनॉल्ड्स ने अन्य कलर्स के पेन भी लॉन्च किए
रेनॉल्ड्स ने मार्केट में खुद को सबका फेवरेट बनाए रखने के लिए काले, हरे, नील, लाल, बैंगनी और भी रंग के पेन लॉन्च किए. इसके बाद एक जेटर पेन भी आया जिसका ज्यादा इस्तेमाल शिक्षकों ने किया. वहीं ट्राइमैक्स परीक्षा के लिए चैंपियन पेन था.
हम जितनी तेजी के साथ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं आमतौर पर उतनी ही तेजी के साथ पेन ब्रांडों की मौत को भी देखा जा सकता है.
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