डीएनए हिंदी: जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से राज्य सरकारों के पास आमदनी के दो तीन अहम साधन ही बचे हैं. पेट्रोल-डीजल के जरिए जहां बड़ी मात्रा में टैक्स वसूला जाता है, तो वहीं सरकार की कमाई का दूसरी सबसे बड़ा स्रोत शराब मानी जाती हैं. इसीलिए जब भी पेट्रोल-डीजल या शराब पर जीएसटी लगाने की बात होती तो राज्य सरकारें इसका विरोध करती हैं.
देश के दो बड़े राज्यों गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री बैन है लेकिन इसके अलावा अन्य सभी राज्यों में धड़ल्ले से शराब बेची जाती है. गुजरात में इसके बावजूद विशेष लाइसेंस वाले लोग शराब खरीद सकते हैं. इसकी वजह यह है कि इसके जरिए सबसे ज्यादा टैक्स हासिल होता है. इसे राज्य एक्साइज ड्यूटी या वैट के माध्यम से राज्य सरकार वसूलती है.
कई तरह से वसूला जाता है टैक्स
बता दें कि ज्यादातर राज्य सरकारें शराब पर वैट (VAT) या उत्पादन शुल्क या फिर दोनों ही वसूलती है जिससे उनकी कमाई दोगुनी हो जाती है. उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति 1 लीटर शराब खरीदता है तो उसको 15 रुपये फिक्स एक्साइज ड्यूटी देनी होती है. इसके अलावा यदि अगर एक शराब की बोतल की कीमत 100 रुपये है तो राज्य उसपर 10 प्रतिशत वैट लगाती है और फिर नई कीमत 110 रुपये तक पहुंच जाती है.
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यहां बिकती है सबसे ज्यादा शराब
सबसे ज्यादा खपत वाले राज्यों की बात करें तो आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में शराब की ज्यादा खपत होती है. जानकारी के अनुसार देश में बिकने वाली कुछ शराब की 45 प्रतिशत तक खपत इन्हीं राज्यों में होती है. ये राज्य अपने राजस्व का लगभग 15 प्रतिशत उत्पाद शुल्क से ही वसूल लेते हैं. पंजाब में शराब एक्साइज ड्यूटी पहल 350 प्रतिशत थी. इसे घटाकर 150 प्रतिशत किया गया था.
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बता दें कि केरल में शराब पर सबसे ज्यादा टैक्स वसूला जाता है जो करीब 250 फीसदी तक है. दिल्ली में शराब पर 25 फीसदी से ज्यादा वैट लगता है. पंजाब की तरह महाराष्ट्र में भी पहले 350 प्रतिशत तक टैक्स वसूला जाता था लेकिन इसे 150 फीसदी कर दिया गया था. गोवा में शराब पर टैक्स करीब 50 फीसदी के करीब है वहीं मध्य प्रदेश में यह दर काफी कम है. पश्चिम बंगाल में शराब पर बिक्री कर करीब 30 फीसदी से ज्यादा वसूला जाता है. राजस्थान में शराब पर 35 फीसदी से ज्यादा का टैक्स वसूला जा रहा है.
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