डीएनए हिंदी: बैंक में सैलरी अकाउंट से लेकर सेविंग अकाउंट (Saving Account) तक कोई भी खुलवा सकता है. सैलरी अकाउंट (Salary Account) की खास बात यह होती है कि इसमें मिनिमम बैलेंस रखने की कोई बाध्यता नहीं होती यानि इसे आप जीरो पर भी खुलवा सकते हैं. जबकि सेविंग अकाउंट में कुछ मिनिमम बैलेंस रखना पड़ता है. सेविंग अकाउंट में मिनिमम बैलेंस रखने को लेकर सब बैंक की अपनी अलग शर्तें होती हैं.
सेविंग और सैलरी अकाउंट दोनों ही बैंक खाते हैं, लेकिन इनमें कुछ जरुरी अंतर हैं:
सेविंग अकाउंट
यह एक व्यक्तिगत खाता है जिसका उपयोग बचत के लिए किया जाता है.
इसमें आमतौर पर कोई मिनिमम बैलेंस नहीं होता है, लेकिन कुछ बैंकों में न्यूनतम बैलेंस रखने की आवश्यकता हो सकती है.
इसमें ब्याज दरें आमतौर पर सैलरी अकाउंट की तुलना में कम होती हैं.
इसमें चेकबुक, डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं.
सैलरी अकाउंट
यह एक कर्मचारी द्वारा अपने वेतन का भुगतान प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाने वाला खाता है.
इसमें आमतौर पर कोई मिनिमम बैलेंस नहीं होता है.
इसमें ब्याज दरें आमतौर पर सेविंग अकाउंट की तुलना में अधिक होती हैं.
इसमें चेकबुक, डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं.
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अंतर
उद्देश्य: सेविंग अकाउंट का उपयोग बचत के लिए किया जाता है, जबकि सैलरी अकाउंट का उपयोग वेतन प्राप्त करने के लिए किया जाता है.
मिनिमम बैलेंस: सेविंग अकाउंट में आमतौर पर कोई मिनिमम बैलेंस नहीं होता है, जबकि सैलरी अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस रखने की आवश्यकता हो सकती है.
ब्याज दर: सेविंग अकाउंट में ब्याज दरें आमतौर पर सैलरी अकाउंट की तुलना में कम होती हैं.
सुविधाएं: दोनों प्रकार के खातों में चेकबुक, डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं.
कौन सा खाता चुनें?
यदि आप बचत करना चाहते हैं, तो सेविंग अकाउंट एक अच्छा विकल्प है. यदि आप अपने वेतन का भुगतान प्राप्त करना चाहते हैं, तो सैलरी अकाउंट एक अच्छा विकल्प है.
यदि आप एक नौकरी में हैं, तो आप अपने नियोक्ता से पूछ सकते हैं कि क्या वह सैलरी अकाउंट प्रदान करता है. सैलरी अकाउंट में आमतौर पर ब्याज दरें अधिक होती हैं और इसमें कई सुविधाएं होती हैं जो सेविंग अकाउंट में नहीं होती हैं.
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