भारत से पहले इन देशों ने भेजे सूरज पर 22 मिशन, बस एक रहा सफल

कुलदीप पंवार | Updated:Sep 02, 2023, 01:44 PM IST

Aditya L-1 Mission Updates: इसरो का सौर मिशन 2 सितंबर की सुबह लॉन्च किया जाएगा.

ISRO Solar Mission Updates: भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अपना सूर्य मिशन आदित्य L-1 शनिवार 2 सितंबर को लॉन्च करेगी. यह पृथ्वी और सूर्य के बीच L-1 Point तक जाएगा, जो पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर है.

डीएनए हिंदी: ISRO Latest News- भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation) का सौर मिशन आदित्य L-1 रवाना होने की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच गई हैं. आदित्य L-1  को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चिंग पैड की तरफ बुधवार शाम रवाना कर दिया गया है, जहां से वह शनिवार 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे लॉन्च किया जाएगा. धरती पर जीवन के लिए जिम्मेदार सूरज को लेकर हजारों सवाल हर इंसान के मन में उमड़ते हैं. ऐसे ही सवालों का जवाब पाने के लिए ISRO ने अपना सौर मिशन (ISRO Solar Mission) रवाना करने की तैयारी की है. यह मिशन पृथ्वी और सूर्य के बीच के गुरुत्वाकर्षण पॉइंट को बराबर करने वाले L-1 Point तक जाएगा, जो धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है. इसी पॉइंट से Aditya L-1 Mission सूरज पर नजर रखेगा और उसकी गतिविधियों की स्टडी कर धरती पर रिपोर्ट भेजेगा. हालांकि सूरज को पढ़ने की कोशिश करने वाले भारतीय वैज्ञानिक दुनिया में पहले नहीं हैं. इससे पहले भी कई देश यह कोशिश कर चुके हैं, लेकिन एक ही मिशन को आंशिक सफलता मिली है.

अब तक ये देश भेज चुके हैं सूरज पर मिशन

भारत से पहले दुनिया के 3 देश सूरज पर मिशन भेज चुके हैं. मिशन भेजने वाले देश अमेरिका, जर्मनी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी हैं. इन्होंने अब तक 22 बार सूरज तक पहुंच बनाने की कोशिश की है, लेकिन महज एक बार ही वहां के सैंपल जुटा पाने में सफलता मिली है. हालांकि ये सैंपल भी सूरज नहीं बल्कि उससे बेहद दूर चक्कर लगाते समय राह में आई सौर हवाओं के थे. इसके बावजूद यह मिशन सफल माना जाता है, क्योंकि करीब 1.5 करोड़ डिग्री तापमान यानी सैकड़ों हाइड्रोजन बम के बराबर ऊर्जा से दहकने वाले सूरज पर लैंड करके रिसर्च करने की बात सोची भी नहीं जा सकती है. सूरज के करीब जाना भी असंभव है.

सबसे पहले और सबसे ज्यादा मिशन भेजे हैं NASA ने

सूरज पर सबसे पहला मिशन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने भेजा था. यह मिशन साल 1960 में लॉन्च किया गया पायनियर-5 (Pioneer-5 Solar Mission) था. इसके बाद से अब तक नासा ने ही सूरज पर सबसे ज्यादा मिशन भेजे हैं. सूरज की तरफ भेजे गए मिशन में से 14 मिशन अकेले नासा के रहे हैं, जबकि उसने जर्मनी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर भी 5 मिशन लॉन्च किए हैं. नासा के 12 मिशन सूर्य के चारों तरफ अलग-अलग कक्षाओं में चक्कर लगाने वाले आर्बिटर हैं, जो अपना काम कर रहे हैं. 

जर्मनी और EU स्पेस एजेंसी ने भेजे हैं 6 मिशन

जर्मनी ने सूरज की तरफ दो मिशन भेजे हैं. दोनों में ही NASA उसकी साझीदार रही है. पहला मिशन 1974 में भेजा गया था और दूसरा 1976 में लॉन्च हुआ था. इनका नाम हेलियोस-ए और हेलियोस-बी था. इसी तरह यूरोपियन स्पेस एजेंसी (European Space Agency) ने अब तक 4 मिशन भेजे हैं. इनमें से तीन मिशन ESA ने NASA के साथ मिलकर किए हैं, जिनमें पहला मिशन साल 1994 में भेजा गया था. NASA और ESA के तीनों संयुक्त मिशन उलिसस सीरीज के थे, जबकि साल 2021 में ESA ने सोहो नाम से अपना पहला स्वतंत्र मिशन लॉन्च किया है, जो एक सोलर आर्बिटर है. यह अभी रास्ते में ही है.

नासा का एक जहाज जा रहा सूरज के करीब

नासा का एक मिशन फ्लाई बाई यानी सूरज के ज्यादा से ज्यादा करीब जाने का है. इस मिशन का नाम Parker Solar Probe है. यह मिशन सूरज के चारों तरफ 26 बार चक्कर काट चुका है, लेकिन अब भी यह अपने रास्ते में ही है. बता दें कि सूरज से पृथ्वी की दूरी 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है, जिसे तय करने में किसी भी यान को सैकड़ों साल लगने वाले हैं. इस मिशन के जरिये नासा यह जानना चाहता है कि कोई यान सूरज के कितना करीब जा सकता है.

किन सोलर मिशन को मिली सफलता और कौन रहे हैं फेल

वैसे तो अब तक भेजे जा चुके सूर्य मिशन में से महज एक को ही असफल माना जा सकता है, क्योंकि यह अपनी तय कक्षा में नहीं पहुंच पाया. यह पॉयनियर-ई मिशन था, जिसे नासा ने साल 1969 में लॉन्च किया था. यह एक ऑर्बिटर था, लेकिन तय कक्षा में पहुंचने के बजाय यह अलग निकल गया. इसी तरह नासा और ESA के जॉइंट प्रोजेक्ट उलिसस-3 मिशन को सफल-असफल दोनों माना जाता है. यह मिशन 2008 में लॉन्च हुआ था और कुछ डाटा भी इसने भेजना शुरू किया था. इसके बाद इस मिशन से संपर्क टूट गया, जिसका कारण बैटरी खत्म होना माना जाता है. अब तक का इकलौता सफल सूर्य मिशन NASA का Genesis था, जो साल 2001 में लॉन्च हुआ था. इस मिशन को सूर्य के चारों तरफ की सौर हवाओं के सैंपल लेकर वापस लौटना था. यह स्पेसक्राफ्ट अपना काम पूरा करने के बाद धरती पर लौटा, लेकिन क्रैश लैंड हो गया. हालांकि नासा के वैज्ञानिकों ने उसके टुकड़ों में से बहुत सारे सैंपल हासिल कर लिए थे. हालांकि बाकी मिशन भी अभी फेल नहीं कहे जा सकते हैं. इनमें से कई अभी अपने टारगेट के रास्ते तक ही पहुंचे हैं.

अब आदित्य L-1 मिशन के बारे में जान लीजिए

हम जानते हैं कि सूरज के करीब भी नहीं जा सकते. इसकी स्टडी दूर से ही रहकर करनी होती है, लेकिन अंतरिक्ष के अन्य तारों को समझने के लिए सूरज के बारे में Study करना जरूरी है. सूर्य काफी एक्टिव रहने वाला तारा है. उसमें निरंतर सौर तूफान उठते रहते हैं, इसीलिए उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करना, मानव जाति के भविष्य के लिए जरूरी है. यही मिशन आदित्य L-1 का भी है. आदित्य L-1 पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर L-1 Point पर पहुंचकर रुकेगा और यहीं से सूरज की स्टडी करेगा. यह एक तरीके से आसमान में पार्किंग स्पेस है, जहां पहले से ही कई सैटेलाइट काम कर रहे हैं. यहां सूरज और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बराबर होता है. यहां से आदित्य निम्न तरीके से स्टडी करेगा.

आदित्य में लगे हैं ये 7 खास Payloads

आदित्य L-1 को सूरज के विभिन्न तरंग बैंडों में प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) की स्टडी करनी है. इसके लिए वह सात पेलोड ले जाएगा, जो पूरी तरह स्वदेश में निर्मित हैं. इन सात पेलोड में बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) का बनाया विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ पेलोड (VELC), पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) का बनाया सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUET)  शामिल है. इसके अलावा एक्स-रे पेलोड, पार्टिकल डिटेक्टर और मैग्नेटोमीटर पेलोड भी इसमें लगे हैं. 

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