भले ही भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हों, लेकिन यूपी सबसे जुदा है. ये सिर्फ उत्तर प्रदेश ही है जहां का अंडर करंट पूरे देश की सियासत को हिला कर रख देता है. मौजूदा वक़्त में यूं तो तमाम मुद्दे हैं, मगर जिस एक चीज को लेकर यूपी की सरकार और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर ही अपनी पीठ थपथपाते हैं वो है एनकाउंटर. जिस हिसाब से यूपी में अपराधियों के सफाए के नाम पर हर दूसरे दिन एनकाउंटर हो रहा है, सरकार और स्वयं सीएम योगी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि अखिलेश यादव और विपक्ष क्या कह रहे हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि अपराध और अपराधियों को लेकर योगी आदित्यनाथ का एजेंडा एकदम क्लियर है. बावजूद इसके ये यूपी पुलिस ही है, जिसकी कार्यप्रणाली तब संदेह के घेरों में आ जाती है जब विपक्ष ये आरोप लगाता है कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ यूपी पुलिस से राजनीतिक लाभ ले रहे हैं.
इन गंभीर आरोपों से निपटने और अपने को बेदाग दिखने के लिए अब यूपी पुलिस भी विपक्ष के नहले पर दहला जड़ते हुए नजर आ रही है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने कथित अपराधियों के साथ मुठभेड़ में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं.
जिला पुलिस प्रमुखों को लिखे पत्र में, राज्य के शीर्ष पुलिस अधिकारी प्रशांत कुमार ने 16-सूत्रीय दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें कथित अपराधी की मौत के मामलों में मुठभेड़ स्थल की वीडियोग्राफी भी शामिल है.
दिलचस्प ये कि नए निर्देशों में मुठभेड़ में शामिल कथित अपराधियों से बरामद हथियारों की बैलिस्टिक जांच अनिवार्य कर दी गई है. गौरतलब है कि 25 मार्च, 2022 को शुरू हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल के बाद से पुलिस मुठभेड़ों में 50 से अधिक लोग मारे गए हैं.
इस साल सितंबर में, समाजवादी पार्टी के प्रमुख और लोकसभा सांसद अखिलेश यादव ने सुल्तानपुर डकैती मामले के एक आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर को एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश की थी और एनकाउंटर के बाद सरकार पर निशाना साधा था.
घटना के बाद, कन्नौज के सांसद ने राज्य पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे और उन्होंने भाजपा सरकार पर पुलिस बल को 'बर्बाद' करने का आरोप लगाया था.
खैर जिक्र प्रशांत कुमार के 16-सूत्रीय दिशा-निर्देशों का हुआ है. तो बताना जरूरी है कि कुमार द्वारा लिखे गए पत्र में पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि मुठभेड़ में मारे गए व्यक्ति का पोस्टमार्टम दो डॉक्टरों की संयुक्त टीम द्वारा किया जाना चाहिए, और पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए.
कुमार ने अपने पत्र में पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) टीम को अपराध स्थल की तस्वीरें लेनी चाहिए और घटनास्थल का पुनर्निर्माण करना चाहिए और सभी साक्ष्यों को फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी सहित उचित दस्तावेज के साथ जांच में शामिल किया जाना चाहिए.
कुमार ने जिला पुलिस प्रमुखों को यह भी निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि पुलिस कार्रवाई में शामिल पुलिस अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियारों को मुठभेड़ के बाद सरेंडर कर दिया जाए और जांच के लिए भेजा जाए.
डीजीपी प्रशांत कुमार की ओर से जारी ताजा दिशा-निर्देशों में इस बात पर जोर दिया गया है कि जिन मामलों में आरोपी मामूली या गंभीर रूप से घायल होते हैं, वहां अपराधी के हाथ धोने के नमूने और उनसे बरामद हथियारों की बैलिस्टिक जांच की जानी चाहिए. इसमें आगे कहा गया है कि घायलों के मामलों में शामिल पुलिस अधिकारियों और अपराधियों दोनों की मेडिकल रिपोर्ट केस डायरी (सीडी) से जुड़ी होनी चाहिए.
कुमार के दिशा-निर्देशों में पुलिस मुठभेड़ों के मामले में कुछ मानकों और मानदंडों को सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर याचिका के संबंध में जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी हवाला दिया गया है.
बहरहाल अब जबकि स्वयं डीजीपी की तरफ से यूपी पुलिस को नए नियम कानूनों से अवगत करा ही दिया गया है तो माना यही जा रहा है कि इससे फर्क इसलिए भी पड़ेगा क्योंकि तमाम चीजें विपक्ष चाहकर भी नहीं कह पाएगा.
बाकी यूपी में एनकाउंटर के मुद्दे पर विपक्ष विशेषकर अखिलेश यादव कितनी भी छाती क्यों न पीट लें. लेकिन इन दिशा निर्देशों को देखकर इतना तो साफ़ है कि यूपी में एनकाउंटर के बल पर अपराधियों का सफाया बदस्तूर जारी रहेगा.
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