Jammu and Kashmir विधानसभा में Article 370 पर प्रस्ताव पारित, क्या इसे दोबारा लागू कर सकती है Omar Abdullah की सरकार?

Written By कुलदीप पंवार | Updated: Nov 06, 2024, 07:26 PM IST

Article 370 Restoration Resolution: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बुधवार को अनुच्छेद 370 (Article 370) की बहाली का प्रस्ताव पारित हो गया है. इससे ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उमर अब्दुल्ला की सरकार के पास इस अनुच्छेद को दोबारा बहाल कराने का हक है?

Article 370 Restoration Resolution: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बुधवार को अनुच्छेद 370 (Article 370) की बहाली का प्रस्ताव पारित हो गया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस की उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने बुधवार (6 नवंबर) को इसे विधानसभा में पेश किया, जिसका मुख्य विपक्षी दल भाजपा के विधायकों ने जोरदार विरोध किया. BJP विधायकों ने प्रस्ताव की प्रतियां फाड़ दीं. PTI के मुताबिक, भाजपा विधायकों ने ‘वंदे मातरम’, ‘जय श्रीराम’, ‘5 अगस्त जिंदाबाद’, ‘जम्मू कश्मीर विरोधी एजेंडा नहीं चलेगा’, ‘पाकिस्तानी एजेंडा नहीं चलेगा’, ‘देश विरोधी एजेंडा बर्दाश्त नहीं होगा’ जैसे नारे लगाए और वेल में उतरकर अपना विरोध जताया. इसके बावजूद उमर अब्दुल्ला सरकार ने ध्वनिमत से राज्य में अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव मंजूर करा दिया. इससे ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उमर अब्दुल्ला की सरकार के पास इस अनुच्छेद को दोबारा बहाल कराने का हक है? चलिए हम बताते हैं कि राज्य सरकार के पास कौन से विकल्प हैं और किस मोर्चे पर उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के साथ की जरूरत होगी.

पहले जान लीजिए विधानसभा में आज क्या हुआ
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को संसद के जरिये निरस्त कर दिया था. इस अनुच्छेद को दोबारा लागू करने को नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपने एजेंडे में शामिल किया था. इसी के चलते बुधवार को राज्य सरकार की तरफ से उप मुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया. इस प्रस्ताव का भाजपा विधायकों ने नेता विपक्ष सुनील शर्मा के नेतृत्व में विरोध किया, लेकिन स्पीकर ने ध्वनिमत से वोटिंग कराकर इस प्रस्ताव को पारित घोषित कर दिया. सुनील शर्मा ने इसे जम्मू की जनता के साथ पक्षपात बताया है. साथ ही इसमें विधानसभा स्पीकर की मिलीभगत होने का भी आरोप लगाया. 

क्या लिखा गया है प्रस्ताव में
राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ भेदभाव का आरोप केंद्र सरकार पर लगाया है. प्रस्ताव में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकार और संस्कृति की रक्षा होती थी, जिसे केंद्र ने एकतरफा तरीके से हटा दिया है. यह विधानसभा राज्य के विशेष दर्जे और संवैधानिक गारंटी की पुष्टि करती है और केंद्र से मांग करती है कि इसके लिए निर्वाचित राज्य सरकार से बातचीत करे. जम्मू कश्मीर के लोगों के जायज हकों की रक्षा होनी चाहिए.

क्या हैं उमर अब्दुल्ला की सरकार के पास अब विकल्प
संवैधानिक जानकारों की मानी जाए तो उमर अब्दुल्ला सरकार के प्रस्ताव की महज नैतिक अहमियत है. दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव के जरिये केवल अपने समर्थकों को यह बताने की कोशिश की है कि वो अपना चुनावी वादा निभाना चाहती है. लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचार्य ने BBC से बातचीत में कहा था कि केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के पास सीमित शक्तियां हैं. ऐसे में वहां की विधानसभा अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 जैसे मामों में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि इन विषयों पर अब कानून बनाने का अधिकार केवल भारतीय संसद को है. 

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून भी आएगा राज्य सरकार के आड़े
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून 2019 भी उमर अब्दुल्ला सरकार के आड़े आता है, जिसमें केंद्र शासित विधानसभा को पुलिस व कानून व्यवस्था छोड़कर बाकी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. लेकिन साथ ही इस कानून में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार कोई ऐसा कानून नहीं बना सकती, जो किसी केंद्रीय कानून को प्रभावित करता हो. इसके अलावा विधानसभा में पारित बिल या संशोधन को भी उपराज्यपाल की मंजूरी मिलना जरूरी है. यदि ऐसा नहीं होता तो वह निष्प्रभावी माना जाएगा. इस लिहाज से देखा जाए तो उमर अब्दुल्ला सरकार का बुधवार (6 नवंबर) को पारित कराया गया अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव भी उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की मंजूरी मिलने तक महज कागज का पुलिंदा ही है. 

क्या खुद केंद्र सरकार कर सकती है 370 बहाल?

  • पीएम मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था. मोदी विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कह चुके हैं कि किसी भी कीमत पर कोई इसे वापस नहीं ला सकता. ऐसे में मौजूदा सरकार तो इसे दोबारा बहाल नहीं करने जा रही है.
  • यदि केंद्र में 5 साल बाद दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो क्या स्थिति होगी? इस सवाल का जवाब अनुच्छेद 367 और 368 में छिपा हुआ है. केंद्र सरकार को भी पहले संसद में इन दोनों अनुच्छेद को संशोधित करना होगा. जो संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत और बाकी राज्य विधानसभाओं में से 50 फीसदी के मंजूरी की मुहर लगाए बिना केंद्र सरकार नहीं कर सकती है. यह काम किसी भी तरीके से आसान नहीं है. 

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