डीएनए हिंदी: Chandrayaan-3 News- भारत ने एक सपना साल 1969 में अमेरिका के नील आर्म्सस्ट्रांग के चांद पर पहला कदम रखने के साथ देखा था. यह सपना था एक दिन चांद पर पहुंचने का. यह सपना वर्चुअल ही सही, लेकिन बुधवार (23 अगस्त) को पूरा हो गया. चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने जैसे ही चांद की जमीन पर कदम रखा, तो मानो 1.4 अरब भारतीय वर्चुअल तरीके से चांद पर पहुंच गए. भारत का यह कारनामा ऐतिहासिक है, क्योंकि चांद पर पहुंचने का काम इससे पहले तीन महाशक्ति अमेरिका, रूस और चीन ही कर पाए हैं. इतना ही नहीं भारत ने इनसे भी आगे निकलते हुए चांद के दक्षिणी हिस्से पर अपने कदम टिकाए हैं, जहां ये तीनों महाशक्ति भी अपना यान उतारने में घबराती हैं. रूस ने तो अपना यान Luna 25 दक्षिणी हिस्से पर पहुंचने वाला पहला देश बनने की कोशिश में महज 2 दिन पहले गंवाया भी है. ऐसे में भारत की यह उपलब्धि पूरे देश के लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय मानी जा रही है, लेकिन इसका असर महज इतना ही नहीं है. चांद पर पहुंचने का असर हर भारतीय पर भी पड़ने जा रहा है, क्योंकि इससे इंडियन इकोनॉमी पर बेहद रियल इंपेक्ट होने की उम्मीद की जा रही है.
यह इंपेक्ट इकोनॉमी से लेकर भारत के लोगों तक पर कैसा होगा, आइए 5 पॉइंट्स में आपको समझाते हैं.
.
1. तेजी से ऊपर की तरफ दौड़ रही है वर्ल्ड स्पेस इकोनॉमी
दुनिया में सैटेलाइट इमेजिंग, पोजिशनिंग और नेविगेशन डाटा की ग्लोबल डिमांड तेजी से बढ़ रही है. इसके चलते रोजाना नई-नई सैटेलाइट छोड़ने की तैयारी हो रही है. निजी कंपनियां तक इस बिजनेस में कूद रही हैं. इसके चलते वर्ल्ड स्पेस इकोनॉमी इस समय कई गुना बढ़ोतरी की तरफ तेजी से दौड़ रही है. Deloitte की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 से स्पेस इकोनॉमी से जुड़ी 1,791 कपंपनियों में 272 अरब डॉलर का निवेश हो चुका है. स्पेस फाउंडेशन ने भी अपनी सालाना रिपोर्ट में लिखा है कि ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी साल 2023 के दूसरे क्वार्टर में 546 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है, जो पिछले एक दशक के मुकाबले 91 फीसदी बढ़ोतरी है. ऐसा तब है, जबकि अभी स्पेस इकोनॉमी नवजात शिशु जैसी अवस्था में है यानी उसकी शुरुआत ही हुई है.
2. भारत के लिए क्यों अहम है चांद पर सफल लैंडिंग?
भारत ने स्पेस इकोनॉमी में पहले ही एक अहम स्थान बना रखा है. एक अनुमान के हिसाब से भारत की स्पेस इकोनॉमी साल 2025 तक 13 अरब डॉलर की हो जाने की संभावना है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO पूरी दुनिया में अंतरिक्ष मिशन के मामले में अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA जैसा ही प्रतिष्ठित नाम है. इस प्रतिष्ठा को ISRO ने अब देश के लिए आर्थिक लाभ में बदलना भी शुरू किया है, जिसके लिए दूसरे देशों के अंतरिक्ष मिशनों में मदद के अलावा निजी कंपनियों के सैटेलाइट लॉन्च करने जैसे काम किए जा रहे हैं. ऐसे में चंद्रमा पर सफल लैंडिंग ने भारत की तकनीकी क्षमता पर दुनिया का भरोसा और ज्यादा बढ़ाया है. खासतौर पर इससे भारत की इमेज ऐसे खतरनाक मिशन को सफलता से अंजाम देने वाले की बनेगी, जिन्हें नासा, रूस और चीन की अंतरिक्ष एजेंसियां भी नहीं पूरा कर पा रही हैं.
3. कैसे लाभ होगा भारत को इससे?
अब भारत की तरफ उन देशों की तरफ से हाथ बढ़ाया जा सकता है, जो इस स्पेस इकोनॉमी में अपनी जगह बनाना चाहते हैं ताकि उनकी अपनी इकोनॉमी को बड़े पैमाने पर इससे होने वाला लाभ मिल सके और उनके नागरिकों को नए अंतरिक्ष युग में शामिल होने की प्रेरणा मिल सके. इन देशों का भारत की स्पेस इकोनॉमी के साथ जुड़ना जहां देश को आर्थिक लाभ देगा, वहीं नौकरियों के भी नए युग खोलेगा.
4. भारत को यह लाभ कैसे मिलेगा, इस उदाहरण से समझें
ऑस्ट्रेलिया जैसे देश ने अपनी सिविल स्पेस स्ट्रेटजी 2019-2028 के तहत अपनी इकोनॉमी में स्पेस सेक्टर का योगदान तीन गुना करने की योजना बना रखी है. ऑस्ट्रेलिया की योजना 2030 तक इसके जरिये जीडीपी में स्पेस सेक्टर का योगदान 12 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक पहुंचाने और 20,000 नई नौकरियां पैदा करना है. भारत और ऑस्ट्रेलिया बेहद करीबी सहयोगी हैं. तकरीबन हर सेक्टर में दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. ऐसे में भारत की स्पेस मिशन को बेहद कम लागत में अंजाम देने की योग्यता का लाभ ऑस्ट्रेलिया भी उठाना चाहेगा और दोनों देश साथ मिलकर काम करते दिख सकते हैं.
5. चांद पर स्थायी बसावट के मिशन में इंपोर्टेंट प्लेयर
चांद तक पहुंचने की होड़ अब इससे भी आगे निकलती जा रही है. अब इंसान चांद पर बसने के सपने देख रहा है. चीन ने साल 2030 तक चांद पर पहली मानव बस्ती तैयार करने की घोषणा कर रखी है. साल 2021 में चीन और रूस मिलकर चांद पर इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन खोलने की घोषणा कर चुके हैं. अमेरिका भी अपने Artemis program के जरिये यही तैयारी कर रहा है. भारत इन दोनों ही पक्षों के मिशन में इंपोर्टेंट प्लेयर है, क्योंकि चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर की बदौलत भारत के पास चांद के उस हिस्से के हालात, मौसम, वातावरण, चट्टानों, मिट्टी आदि का डाटा होगा, जिस तक अमेरिका, चीन और रूस की पहुंच नहीं है.
हालांकि चंद्रयान-3 में टेक्नोलॉजी पार्टनर के तौर पर और भारत के जुलाई 2023 में आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर कर देने से इस डाटा तक अमेरिका की मामूली पहुंच है. इसके बावजूद भारत के बिना वहां की स्थिति को समझना बेहद मुश्किल होगा. यदि ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर भारतीय इकोनॉमी को इससे बेहद लाभ मिलेगा, क्योंकि स्पेस इन्वेस्टमेंट का बड़ा हिस्सा भारत आने की संभावनाएं खुलेंगी और भारतीयों के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार भी पैदा होंगे.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.