Chhath Puja 2024 : फाइनली दीपावली बीत चुकी है... जब छोटा था, तो महसूस यही होता था कि, दिवाली ऐसा फेस्टिवल है जिसके बाद जाड़े की शुरुआत होती है. जाड़ा मतलब ठंड और ठंड का मतलब हफ्ते दस दिन का विंटर वेकेशन. बचपन इसी विचार को पालते हुए बीता. फिर जब बड़ा हुआ तो समझ आया दिवाली और जाड़े के बीच छठ जैसा खूबसूरत और महत्वपूर्ण पर्व है जिसपर वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में भरपूर बात होनी ही चाहिए.
छठ, एक ऐसा त्योहार जो बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए इमोशन है. यार दोस्तों में कई ऐसे हैं, जो भले ही साल भर घर न जाते हों. मगर जैसे ही छठ की शुरुआत होती है. इनके हॉर्मोन्स गोते खाने लगते हैं. बेचैनी का आलम उस निशान के ऊपर आ जाता है, जहां से घर जाने के लिए ट्रेन, बस या फिर हवाई जहाज पकड़ने की शुरुआत होती है.
एक मुस्लिम होने और उसपर भी लखनऊ से संबंध रखने के बावजूद मुझे छठ अपनी तरफ आकर्षित करता है.
क्यों? वजह न तो ठेकुआ, सुथनी, सिंघाड़ा है न ही गन्ना, केला, नारियल बल्कि इस त्योहार से जुड़ी जो चीज मुझे पसंद है, वो है इसकी सादगी और संस्कृति से जुड़ाव. छठ क्यों मनाया जाता है? कैसे मनाया जाता है? इस पर कुछ लिखने के लिए मेरे द्वारा (एक मुस्लिम होने के नाते) गूगल की भरपूर मदद ली जा सकती है. मगर मैं ऐसा नहीं करने वाला.
मैं छठ पर बात कर रहा हूं और ये पर्व मुझे क्यों पसंद है? इसपर बात कर रहा हूं. तो इतना जरूर कहूंगा कि छठ देश के उन चुनिंदा त्योहारों में से एक है, जो किसी इंसान को न केवल अपनी जमीन से जोड़ता है. बल्कि जैसे ही ये त्योहार आता है हमें इस बात का भी एहसास हो जाता है कि हमारे लिए नदियां क्यों जरूरी हैं? हमारे जीवन में सूर्य का क्या महत्व है (दुनिया चढ़ते सूरज को सलामी देती है मगर ये छठ की खूबसूरती है कि इसमें डूबते सूरज को पूजा जाता है)? क्यों हिंदुस्तान उन देशों में है जिसकी बुनियाद में कृषि है.
छठ को लेकर Gen Z और Elite क्लास के अपने तर्क और आलोचनाएं हो सकती हैं. लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि साफ़ सफाई ही इस त्योहार का मूल है. साथ ही ये त्योहार हमें बताता है कि स्वस्थ शरीर से ही एक बेहतर समाज का निर्माण संभव है.
आज समाज का बहुत बड़ा बड़ा वर्ग ऐसा है, जो महिला हितों की बात करता है. ऐसे लोग इस विचारधारा के झंडाबरदार हैं कि देश में महिलाओं को सशक्त होना चाहिए. ऐसे लोग एक बार छठ के मौके पर घाट पर आएं और देखें कि ये वो त्योहार है जो महिलाओं को वास्तव में सशक्त करता है. हम भले ही महिलाओं को देवी की संज्ञा दे देते हों. मगर इस त्योहार को देखकर पता यही चलता है कि, आखिर एक महिला कैसे वास्तव में एक परिवार के लिए देवी है.
वाक़ई जिस तरह इस त्योहार में पुरुष महिलाओं का सपोर्ट करते हैं, समां बंध जाता है. यूं तो छठ के विषय में कहने बताने को कई बातें हैं लेकिन शायद आपको ये जानकार हैरत हो कि छठ का शुमार देश के उन कुछ एक त्योहारों में है जो असल में गंगा जमुनी तहजीब की वकालत करता है.
ध्यान रहे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार/ झारखंड में कई मुस्लिम परिवार ऐसे हैं जो हिंदू परिवारों की ही तरह छठ मनाते हैं और इनमें भी इस त्योहार के प्रति उत्साह कुछ-कुछ वैसा ही होता है जैसा हिंदू परिवारों में.
भले ही दुनिया ग्लोबल हो गई हो, हमें टेक्नोलॉजी ने घेर लिया हो और हम अपने को मॉडर्न बता रहे हों लेकिन जैसे ही छठ का आगमन होता है सब कुछ धरा का धरा रह जाता है और मन ये गाने पर मजबूर हो जाता है कि - दुखवा मिटाईं छठी मैया, रउए आसरा हमार ...
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