डीएनए हिंदी: Mission 2024- भाजपा ने लोकसभा चुनाव (Lok sabha Elections 2024) के लिए बिहार की राजनीति में अपना बिखरा कुनबा जोड़ना शुरू कर दिया है. लोजपा के विद्रोही गुट के नेता और दिवंगत दलित नेता रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 18 जुलाई को होने वाली NDA की मीटिंग का न्योता दिया है. इसे चिराग की 'घर वापसी' का टिकट माना जा रहा है, जिसके लिए वे पिछले कुछ समय से लगातार हाथ-पैर मार रहे थे. साथ ही नड्डा ने इस मीटिंग में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को भी आमंत्रित किया है, जिनकी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) पार्टी की 'महादलित वोट (दलितों में भी अति पिछड़ा वर्ग)' पर पकड़ मानी जाती है. माना जा रहा है कि इन दोनों के जरिये भाजपा बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले 16% दलित वोट को NDA के खेमे में सुरक्षित करना चाहती है.
पहले बिहार में दलित वोट का गणित समझिए
बिहार में करीब 16% दलित मतदाता माने जाते हैं, जिनका असर राज्य की 40 में से 13 लोकसभा सीट पर है. इनमें से हर सीट पर दलित वोट कम से कम 3 लाख हैं. इनमें से भी 6 लोकसभा सीट दलितों के लिए ही आरक्षित हैं. ऐसे में दलित वोट की अहमियत खुद समझी जा सकती है. अब बात की जाए दलित वोट बैंक के झुकाव की. इन 16% दलित वोट में करीब 6% पासवान वोट हैं, जो चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान की LJP के कट्टर समर्थक माने जाते हैं, जबकि करीब 5.5% मुसहर वोट जीतन राम मांझी के इशारे पर वोट करते हैं. इस 16% दलित वोटबैंक में नीतीश कुमार ने 'महादलित' जातियों के लिए अलग से योजनाएं चलाकर सेंध लगाई थीं. ये महादलित जातियां करीब 40 विधानसभा सीटों पर असरदार हैं. इसके बावजूद चिराग की LJP और मांझी की HAM की भूमिका चुनाव में बेहद अहम रहने वाली है.
चिराग की वापसी BJP के लिए क्यों जरूरी?
अपने पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान LJP को बरकरार नहीं रख सके थे. चिराग ने NDA से नाता तोड़ने की कोशिश की थी, जबकि उनके चाचा पशुपति पारस को भाजपा का समर्थन मिला था. इससे पार्टी दो हिस्सों में बंट गई थी, जिसका असर बिहार विधानसभा चुनाव में दिखा था. इसके चलते भाजपा को भी ये अहसास है कि लोकसभा में पासवान वोट के लिए अकेले पशुपति से काम नहीं चलेगा, क्योंकि पासवान वोटर की आस्था रामविलास के बेटे में ही है. इस कारण भाजपा चिराग पासवान की वापसी चाह रही है. उधर, चिराग भी समझ चुके हैं कि भाजपा के बिना उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है. उनकी यह सोच पिछले कुछ समय के दौरान भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी का हर मुद्दे पर लगातार समर्थन करने से झलकी है. पिछले दिनों उन्होंने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से भी मुलाकात की थी. ऐसे में उनकी NDA में वापसी से, दोनों ही पक्षों को लाभ होने वाला है.
मांझी को भाजपा तो भाजपा को उनकी जरूरत
बिहार के 7 जिलों की 40 विधानसभा सीटों पर महादलित वोटर प्रभावी हैं. इन वोट पर जीतन राम मांझी का प्रभाव माना जाता है. जीतनराम मांझी ने नीतीश की JDU, तेजस्वी यादव की RJD और कांग्रेस की मौजूदगी वाले महागठबंधन से 19 जून को नाता तोड़ दिया था. उसी समय से माना जा रहा था कि वह भाजपा का दामन थाम सकते हैं. हालांकि इस बात की उम्मीद कम है कि वे अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करेंगे, क्योंकि इसी मुद्दे पर उन्होंने नीतीश कुमार का साथ छोड़ा है. इसके बावजूद मांझी को भाजपा का साथ जाने का लाभ होगा, जबकि भाजपा को उनके आने से 5 फीसदी मुसहर वोट में हिस्सेदारी करने का मौका मिल जाएगा.
कुनबे के बाकी मेंबर्स पर भी नजर
भाजपा की निगाह अपने कुनबे से छिटके बाकी छोटे दलों पर भी है. उपेंद्र कुशवाहा ने NDA से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार का साथ पकड़ा था. उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) का विलय भी JDU में कर दिया था, लेकिन पटरी नहीं बैठने पर वे फरवरी में नीतीश से अलग हो गए थे. इसके बाद से ही उनके भाजपा में आने की चर्चाएं चल रही हैं. इसके अलावा NDA बैठक में मुकेश साहनी की VIP पार्टी का भी भाग्य तय हो सकता है, जो NDA छोड़कर चली गई थी. ये पार्टियां छोटी हैं, लेकिन अपने-अपने इलाके में इनका खास वोटबैंक है और भाजपा को इसका लाभ हो सकता है.
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