जैसी धुंध की परत और दम घोटू हवा है, तमाम नौकरीपेशा चाहे वो सरकारी हों या फिर गैरसरकारी उनका यही मानना है कि गैस का चैंबर बन चुकी देश की राजधानी दिल्ली अब रहने योग्य बची नहीं. कुछ ऐसी ही सोच बेरोजगारों और स्टूडेंट्स की भी है. हर तरफ मायूसी इसलिए भी है क्योंकि जाड़े ने अभी सिर्फ दस्तक ही दी है. मगर जिस तरह हर बीते दिन के साथ हवा बद से बदतर हो रही, इसमें कोई शक नहीं है कि आने वाले दिन दिल्ली में रहकर गुजर बसर कर रहे लोगों पर भारी पड़ने वाले हैं.
जैसे हाल हैं दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है. यह न तो कोई अतिशयोक्ति है और न ही इस महान शहर को कमतर आंकने का प्रयास, यह एक ऐसा तथ्य है जिसे विभिन्न AQI माप चीख-चीख कर हमें बता रहे हैं.
कहां से हुई दिल्ली के बुरे दिनों की शुरुआत
दिल्ली में हल्की फुल्की धुंध तो छाई ही थी लेकिन स्थिति बिगड़ी 8 नवंबर 2024 को. दिल्ली में लोगों ने पटाखों के घने धुएं से बनी धुंध की चादर को महसूस किया. तब से लेकर अब तक धुंध इतनी घनी है कि कई जगहों पर दृश्यता मात्र कुछ मीटरों तक रह जाती है. AQI का स्तर उम्मीद के मुताबिक बढ़ गया.
दिल्ली में प्रदूषण का लेवल कहां पहुंच गया है? इसका अंदाजा सीपीसीबी बुलेटिन की उस रिपोर्ट से लगा सकते हैं जिसमें कहा गया है कि दिल्ली का औसत 24 घंटे का AQI493 है, जो कि इस सीजन का सबसे ज्यादा एयर क्वालिटी इंडेक्स है. शायद आपको ये जानकार हैरत हो कि दिल्ली के 36 में से 13 स्टेशनों पर AQI 499 या 500 है. और मौसम विभाग ने घने से बहुत घने कोहरे का 'ऑरेंज अलर्ट' जारी किया है.
दिल्ली की इस बदहाली पर एक दावा वो भी हमारे सामने आ रहा है जिसमें कहा जा रहा है कि यदि स्थिति ठीक नहीं हुई तो बहुत जल्द AQI 999 हो जाएगा. हो सकता है कि इस दावे को सुनकर कोई व्यक्ति इसे नजरअंदाज कर दे लेकिन वास्तविकता ये है कि यदि वास्तव में ऐसा हो गया तो स्थिति भयावह होगी.
ध्यान रहे कि दिल्ली और एनसीआर में एक्यूआई (AQI) का स्तर कई स्थानों पर 999 दिखा रहा था. ये अत्यंत खतरनाक स्थिति है. चूंकि कोई भी एक्यूआई मीटर 999 के ऊपर के लेवल को नहीं दिखाता. दुनिया के ज्यादातर देशों में AQI सीमा 500 पर सीमित है, लेकिन जब ये 999 पर आता है तो इसका अर्थ ये है कि स्वास्थ्य के लिहाज से लोगों को गंभीर खतरा होने वाला है.
बताते चलें कि दुनियाभर के लगभसग सभी एक्यूआई मीटर 999 से स्तर के ऊपर की जानकारी नहीं रखते. इससे पहले ही प्रदूषण पर नकेल कसने के लिए अधिकांश देशों द्वारा एक्शन ले लिया जाता है.
यदि वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 999 तक पहुंचता है, तो यह वायु प्रदूषण के अत्यधिक खतरनाक स्तर को इंगित करता है. कह सकते हैं कि तब नौबत हेल्थ इमरजेंसी वाली हो जाती है.
AQI 999 इंसानों पर क्या डालता है असर
हम पहले ही इस बात का वर्णन कर चुके हैं कि यदि AQI 999 के पार चला गया तो स्थिति भयावह होगी. इसकेचलते स्वस्थ व्यक्तियों को भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिसमें सांस लेने में कठिनाई, गले और आंखों में जलन शामिल है.
एक्सपर्ट्स की मानें तो ये एक ऐसा लेवल है जब दिल के दौरे, स्ट्रोक और श्वसन संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है. वहीं कहा ये भी जा रहा है कि इसका सबसे बुरा असर हमें बच्चे, बुज़ुर्ग और उन लोगों पर देखने को मिलता है जो पहले से ही हृदय या फेफड़ों की बीमारी का सामना कर रहे हैं. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि प्रदूषण ऐसे लोगों की मौत की वजह भी बन सकता है.
AQI के इस खतरनाक लेवल को लेकर डॉक्टर्स का ये भी कहना है कि प्रेग्नेंट औरतों को भी इससे खतरा है. कहा जा रहा है कि ऐसी महिलाओं को भ्रूण के विकास में भारी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है.
किन कारणों से AQI होता है 999 के पार
AQI के 999 के पार जाने की यूं तो कई वजहें होती हैं लेकिन जो सबसे बड़ा कारण है वो है गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, जिसमें तमाम तरह की जहरीली गैसें होती हैं. वहीं पराली और बायोमास को भी इसकी एक बड़ी वजह माना जा सकता है.
हेल्थ एक्सपर्ट्स लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं कि जैसा हाल है, जितना हो सके व्यक्ति अपने घरों में रहे और बाहरी गतिविधियों से बचे. चूंकि हवा की क्वालिटी बेहद ख़राब है इसलिए कहा ये भी जा रहा है कि लोग घरों में कायदे से दरवाजे और खिड़कियों को बंद कर रखें और जितना हो सके एयर प्यूरीफायर का प्रयोग करें. एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि इन सुझावों के बावजूद यदि किसी की तबियत बिगड़ती है तो वो फ़ौरन ही डॉक्टर से कंसल्ट करें.
बताते चलें कि हवा में पार्टिकुलेट मैटर - PM2.5 और PM10 - का घनत्व इतना अधिक है कि शहर में वायु गुणवत्ता में शायद ही कोई बदलाव होगा. ज्ञात हो कि PM का मतलब पार्टिकुलेट मैटर है. 2.5 हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों या बूंदों की चौड़ाई को दर्शाता है जिसे माइक्रोन (माइक्रोमीटर) में मापा जाता है.
एक माइक्रोन एक मीटर के दस लाखवें हिस्से के बराबर होता है. इस प्रकार 2.5 ढाई माइक्रोन या उससे कम होता है. इस प्रकार एक बिंदु (.) में कई हज़ार छोटे कण हो सकते हैं. PM2.5 के संपर्क में आने पर फेफड़ों में जलन से लेकर फेफड़ों के कैंसर तक कुछ भी हो सकता है.
PM 2.5 हमारे फेफड़ों में गहराई तक समा सकता है जिससे अस्थमा और हृदय रोग जैसी चिकित्सा स्थितियां बिगड़ सकती हैं.
बहरहाल, जैसे दिल्ली और एनसीआर के हाल हैं, इसमें कोई शक नहीं है कि मौसम इतनी जल्दी साफ़ नहीं होगा. जितना हो सके लोग घरों में रहें और अपनी सुरक्षा के प्रबंध खुद करें. हम ऐसा सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि चाहे केंद्र हो या राज्य सरकार वो बस आरोप प्रत्यारोप कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रही हैं.
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