डीएनए हिंदी: Arvind Kejriwal Meet Sharad Pawar- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को महाराष्ट्र के वरिष्ठ मराठा नेता शरद पवार से मुलाकात की है. मुंबई के यशवंत राव चव्हाण सेंटर में हुई मुलाकात में केजरीवाल ने उनसे भी केंद्र सरकार के उस ऑर्डिनेंस के खिलाफ आप की लड़ाई में समर्थन मांगा है, जिसके जरिये केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर एक बार फिर उपराज्यपाल को 'दिल्ली का बॉस' बनाने की कवायद में जुटी है. शरद पवार ने उनका समर्थन करने की बात कही है. इस मुलाकात के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (NCP) के नेताओं की एक फोटो भी सामने आई है, जिसमें दोनों दल के नेता 'हम साथ साथ हैं' वाले अंदाज में दिखाई दे रहे हैं. शरद पवार की राजनीतिक हैसियत और सभी दलों में उनकी स्वीकार्यता को देखा जाए तो यह फोटो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की टेंशन भी बढ़ा सकती है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि अब तक कई विपक्षी दलों का समर्थन हासिल कर चुके केजरीवाल संसद में मोदी सरकार के सामने खड़े होने की कवायद में कहां तक पहुंचे हैं.
साथ पाने के लिए भटक रहे हैं केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल इस समय राजनीतिक दलों में ज्यादा से ज्यादा को अपने साथ जोड़ने की कवायद में हैं. वे विपक्षी दलों को एकजुट कर संसद में तय कराना चाहते हैं कि 'दिल्ली का बॉस कौन है?' उन्होंने यह कवायद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन से शुरू की थी. इसके बाद वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व शिवसेना (ठाकरे) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और अब शरद पवार से मुलाकात कर समर्थन हासिल कर चुके हैं. नीतीश कुमार की बदौलत उन्हें तेलंगाना के सीएम व भारत राष्ट्र पार्टी (BRS) मुखिया के. चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का साथ भी मिलने की पूरी उम्मीद है.
कांग्रेस है सबसे अहम कड़ी, राहुल-खड़गे से मांगा है मिलने का वक्त
विपक्षी दलों को अपने साथ जोड़ने की कवायद में कांग्रेस सबसे अहम कड़ी है, जो सांसद संख्या में इस समय भी संसद में भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. साथ ही कांग्रेस के पास अब भी कई राज्य हैं, जो केंद्र सरकार पर दबाव बनाने में केजरीवाल की मदद कर सकते हैं. इसी कारण अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार शाम को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात के लिए समय मांगा है.
क्यों है केजरीवाल को सबके साथ की जरूरत?
केजरीवाल को सभी विपक्षी दलों के साथ की जरूरत क्यों है? इस सवाल का जवाब संसद के नंबर गेम में छिपा है. भाजपा की केंद्र सरकार संसद के अंदर लोकसभा में मजबूत है. भाजपा नेतृत्व वाले NDA गठबंधन से शिवसेना (ठाकरे), जदयू और शिअद जैसे दलों के निकल जाने के बावजूद 320 से ज्यादा सीट का आंकड़ा उनके पास हैं, जो वहां किसी भी बिल या ऑर्डिनेंस को एकतरफा उनके पक्ष में मंजूर दिलाता है. इसके उलट राज्यसभा का गणित उलझा हुआ है. राज्यसभा में 238 मेंबर्स में से 233 ही वोट दे सकते हैं. यहां किसी भी बिल को पारित कराने के लिए 117 वोट की जरूरत होती है. यही वो गणित है, जिसे पार करने के लिए केजरीवाल को सभी विपक्षी दलों के साथ की जरूरत है ताकि वे केंद्र सरकार की तरफ से लाए जा रहे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 को राज्यसभा में पारित होकर कानून बनने से रोक सकें.
राज्यसभा में किस दल के पास कितने वोट
राज्यसभा के 233 वोट में से भाजपा नेतृत्व वाले NDA के पास करीब 110 वोट हैं. इनमें भाजपा की 93 वोट और अन्नाद्रमुक की 4 वोट हैं. बाकी अन्य सहयोगी दलों की हैं. भाजपा को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस की 9 सीट और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजेडी की 9 वोट मिलने की उम्मीद है. यदि ये वोट विपक्षी दल तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो भाजपा को मुश्किल हो जाएगी. विपक्षी दलों में कांग्रेस के पास 31 सीट हैं. इसके बाद आम आदमी पार्टी की 10, तृणमूल कांग्रेस की 12, द्रमुक की 10, BRS की 9, राजद की 6, माकपा की 5, जदयू की 5, NCP की 4, सपा की 3, शिवसेना (ठाकरे) की 3, CPI की 2, JMM की 2 और रालोद की 1 सीट है. अरविंद केजरीवाल को अपनी 10 सीट के अलावा इन सभी का समर्थन मिलने की उम्मीद है. तब उनके हिस्से में कुल 103 वोट हो जाएंगी.
कैसे बढ़ सकती हैं मोदी सरकार के लिए टेंशन?
अरविंद केजरीवाल केंद्र सराकर के ऑर्डिनेंस के खिलाफ अपनी लड़ाई को लोकसभा 2024 का सेमीफाइनल बताकर विपक्षी दलों को एकजुट कर रहे हैं. उनका कहना है कि यदि राज्यसभा में विपक्षी दल एकजुट होकर मोदी सरकार का ऑर्डिनेंस गिरा दें तो यह लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए बड़ी हार होगी. साथ ही इससे विपक्ष के बीच चल रही मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट गठबंधन बनाने की कवायद के भी सफल होने की राह साफ हो जाएगी. यही वो बात है, जो मोदी सरकार की चिंता बढ़ा सकती है. नए संसद भवन के उद्घाटन के मुद्दे पर पहले ही विपक्षी दल बहिष्कार के लिए एकसाथ खड़े होकर एकजुट गठबंधन की तरफ पहला कदम बढ़ा चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह की भी कोशिश होगी कि राज्यसभा में ऑर्डिनेंस को नहीं गिरने दिया जाए ताकि विपक्षी एकजुटता की कवायद की हवा यहीं पर निकल जाए.
विपक्षी सत्ता वाले राज्यों में लाए जा सकते हैं विरोध प्रस्ताव भी
भाजपा विरोधी दलों के एकजुट होने के बाद एक खतरा मोदी सरकार के लिए और भी है. अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों को यह कहकर अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली सरकार के पंख ऑर्डिनेंस से कतरने का प्रयोग सफल होने के बाद मोदी सरकार इसे दूसरे राज्यों के खिलाफ भी इस्तेमाल कर सकती है. इसके लिए विपक्षी दलों के राज्यों के फैसलों को सही नहीं होने का आरोप लगाकर संसद में प्रस्ताव के जरिये उनके अधिकार कम किए जा सकते हैं. ऐसे में यह भी संभावना है कि भाजपा विरोधी सत्ता वाले राज्यों की सरकारें अपनी-अपनी विधानसभाओं में केंद्र सरकार के ऑर्डिनेंस के खिलाफ निंदात्मक प्रस्ताव भी पारित कर सकती हैं. इस प्रस्ताव से मोदी सरकार को संवैधानिक तौर पर कोई खतरा नहीं होगा, लेकिन नैतिक तौर पर इससे उनकी छवि को चोट पहुंचेगी.
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