DNA TV Show: अब JDU में केवल नीतीश राज, क्या है इसका मतलब और क्यों हो रही भारतीय राजनीति में इसकी चर्चा

कुलदीप पंवार | Updated:Dec 29, 2023, 11:09 PM IST

DNA TV SHOW

Nitish Kumar Latest News- जदयू भी उन पार्टियों में शामिल हो गई है, जहां पार्टी के अंदर लोकतंत्र यानी सबकी आवाज नहीं बल्कि एक ही नेता का फैसला सर्वोपरि होता है. इस फैसले का पूरा डीएनए पेश कर रही है ये रिपोर्ट.

डीएनए हिंदी: Bihar Politics Updates- बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में पिछले कुछ समय से सबसे ज्यादा चर्चा जनता दल यूनाइटेड (JDU) के अंदरूनी घटनाक्रम को हो रही थी. जदयू के अंदर बहुत सारी ऐसी हलचल चल रही थी, जिस पर बिहार ही नहीं तकरीबन पूरे देश की नजर लगी हुई थी. यह हलचल शुक्रवार को दिल्ली में उस समय खत्म हो गई, जब जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पद से हटा दिया गया और उनकी जगह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की ताजपोशी हो गई. इसके साथ ही अब जदयू मतलब नीतीश कुमार और नीतीश कुमार मतलब जदयू हो गया है.

व्यक्ति ही सर्वोपरि वाली कतार में आई जदयू

देश में ऐसी कई राजनीतिक पार्टियां हैं, जो मकसद के लिए संगठन के तौर पर शुरू होती हैं, लेकिन समय के साथ साथ, वो एक शक्तिशाली व्यक्ति या परिवार के इशारे पर चलने लगती हैं यानी उसमें एक व्यक्ति ही सर्वोपरि हो जाता है. इसका असर उसी राजनीतिक पार्टी में असंतोष के रूप में दिखाई देता है. ऐसी परिवार केंद्रित और व्यक्ति केंद्रित राजनीतिक पार्टियां, धीरे-धीरे अपने कार्यकर्ताओं का भरोसा भी खो देती हैं, और पार्टी की मूल विचारधारा भी कहीं पीछे छूट जाती हैं.

कांग्रेस और बसपा हैं इसके सशक्त उदाहरण

JDU और कांग्रेस-बसपा में समानता

कुछ यही हाल बिहार की जनता दल यूनाइटेड का भी है. JDU भी एक मकसद के लिए संगठन के तौर पर शुरू हुई पार्टी थी. जिसका मकसद था, बिहार को जंगलराज से मुक्त कराना. जंगलराज यानी, बिहार में RJD के शासनकाल से मुक्त कराना. आज जेडीयू भी एक व्यक्ति पर केंद्रित पार्टी बन गई है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि ऐसा लगता है कि इस पार्टी में अब केवल एक ही नेता है, जिसको नीतीश कुमार कहते हैं. वही बिहार के सीएम भी हैं और वही जेडीयू के अध्यक्ष भी. दरअसल आज जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. नए अध्यक्ष के तौर पर नीतीश कुमार को चुना गया है.

ऐसा लगता है कि पार्टी अध्यक्ष के तौर पर जेडीयू के पास कोई चेहरा नहीं है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार के पहली बार अध्यक्ष बनने के बाद से जितने भी लोग अध्यक्ष बने, उनका रिमोट नीतीश कुमार के पास ही होता था. चाहे RCP सिंह हो, या फिर ललन सिंह, दोनों के फैसलों पर आखिरी मुहर नीतीश कुमार की ही रहती थी. कहने के लिए ये दोनों लोग अध्यक्ष थे, लेकिन कई मौकों पर इन लोगों के फैसलों को नीतीश कुमार ने बदल दिया. जहां तक ललन सिंह के इस्तीफे की बात है तो इसको लेकर भी कई तरह की बातें सामने आ रही हैं. जैसे-

नीतीश ने बना लिया है JDU को अपनी व्यक्तिगत पार्टी

नीतीश कुमार के पार्टी अध्यक्ष बनने को लेकर कई नेता खुश हैं. उनका कहना है कि नीतीश कुमार पार्टी के हित में बेहतर फैसला ले सकते हैं. लेकिन जेडीयू का जो इतिहास है, उससे पता चलता है कि नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी को पिछले कई वर्षों से पूरी तरह से अपने कंट्रोल में ले रखा है. इसका फायदा उन्हें ये हुआ है कि पूरी पार्टी में उनके अलावा कोई भी नेता उभरकर सामने नहीं आया. जो नेता उनके कद के थे, उन्हें धीरे धीरे साइडलाइन कर दिया गया. नीतीश कुमार ने जेडीयू को अपनी व्यक्तिगत पार्टी के तौर पर रखा है. जिसमें पूरी की पूरी पार्टी, उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए चुनावी मैदान में उतरती हैं. 

JDU के इतिहास से समझिए नीतीश की महत्वाकांक्षा

नीतीश कुमार की सत्ता में बने रहने वाली महत्वाकांक्षा को बताने के लिए हम आपको जेडीयू के इतिहास के बारे में बताते हैं. वर्ष 1999 में जनता दल दो हिस्सों में बंट गया था. इसमें एक गुट HD देवगौड़ा का था और दूसरा गुट शरद यादव का था. 30 मार्च 2003 को जनता दल के शरद यादव, लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान और समता पार्टी के जॉर्ज फर्नांडिस ने अपनी पार्टियों का विलय, एक पार्टी में कर लिया. इन तीनों ने मिलकर अपनी नई पार्टी का नाम 'जनता दल यूनाइटेड' रखा था. उस वक्त इन तीनों का मकसद बिहार में लालू यादव की सत्ता को उखाड़ना था.

नीतीश की प्रधानमंत्री बनने की चाहत ने बिगाड़ी भाजपा से बात

इस हिसाब से देखा जाए तो JDU-BJP गठबंधन में सब ठीक चल रहा था, लेकिन नीतीश कुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ज्यादा थी. वो केवल बिहार का मुख्यमंत्री बनकर नहीं रहना चाहते थे. वो केंद्र में अपनी भूमिका चाहते थे. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले वर्ष 2014 में कोशिश की. वर्ष 2014 के चुनाव से पहले, जब बीजेपी की ओर से पीएम पद का चेहरा नरेंद्र मोदी को बनाया गया था, तब नीतीश कुमार ने बीजेपी को अल्टीमेटम दिया था. उन्होंने कहा था कि अगर नरेंद्र मोदी को पीएम कैंडिडेट बनाया गया, तो वो बीजेपी के साथ संबंध तोड़ लेंगे. नीतीश कुमार ने इसकी वजह गुजरात दंगों को बताया था. हालांकि यहां आपका ये जानना भी जरूरी है कि नीतीश कुमार ने वर्ष 2002 के दंगों के बाद भी बीजेपी का हाथ थामे रखा था.

नीतीश को सत्ता के लिए सबका साथ मंजूर

फिर हिलोरे ले रही है नीतीश के मन में केंद्र सरकार की सत्ता

सत्ता में बने रहने की महत्वाकांक्षा नीतीश कुमार को किसी भी पाले में ले जाती है, और मौका मिलते ही वो विरोधी पार्टियों के साथ मिलकर भी सरकार बना लेते हैं. नीतीश कुमार की सत्ता वाली महत्वाकांक्षा केवल बिहार तक सीमित नहीं रही है. उन्होंने जिस तरह केंद्र में अपनी भूमिका बनाने की कोशिश वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में की थी. कुछ उसी तरह की कोशिश इस बार भी वो बीजेपी सरकार के विरोध में रहकर कर रहे हैं. इस बार वो बीजेपी के विरोध में, खुद को INDI गठबंधन का चेहरा बनाना चाहते हैं. लेकिन नीतीश कुमार की ये वाली महत्वाकांक्षा फिलहाल पूरी होती नहीं दिख रही है. 

अपनी महत्वाकांक्षा के लिए जनादेश का मजाक उड़ाने की आदत

नीतीश कुमार ने कई बार जनता के जनादेश का अपमान किया है. अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए वो JDU पर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह शासन कर रहे है, जिसमें वो विरोधियों का साथ लेते और छोड़ते रहे हैं.

इस हिसाब से देखें तो अपने फायदे के लिए नीतीश कुमार ने हर वो कदम उठाया, जो उठाया जा सकता है. ना उन्होंने जनता के विचारों की परवाह की, ना ही उन्होंने गठबंधन धर्म की परवाह की और ना ही उन्होंने पार्टी नेताओं या संगठन के विचारों की परवाह की. एक समय ऐसा था जब इस पार्टी में जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, केसी त्यागी, उपेंद्र कुशवाह जैसे बड़े नेता हुआ करते थे. लेकिन नीतीश कुमार ने JDU को एक व्यक्ति के लिए काम करने वाली पार्टी बना दिया. जिससे कई बड़े नेता साइडलाइन होते गए.

पिछले 10 वर्षों के शासनकाल में JDU की राजनीति का एक ही मकसद है, नीतीश कुमार को किसी भी कीमत पर बिहार के सीएम पद की कुर्सी पर बैठाना. इसके लिए चाहे जनादेश को धोखा देना पड़े, या फिर गठबंधन वाली पार्टियों का साथ छोड़ना पड़े, या फिर अपनी ही पार्टी के नेता साइडलाइन करने पड़ें. हर हाल में पार्टी अपने सुप्रीम को कुर्सी दिलाती नजर आती है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हालिया उथल पुथल भी नीतीश कुमार की इस राजनीति का ही दांव है.

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