डीएनए हिंदी: Health News- आपने अकसर प्राइवेट अस्पतालों में देखा होगा, मरीज को देखते ही डॉक्टर बोलता है कि हालत गंभीर है और उसे ICU यानि Intensive care unit में admit करना पड़ेगा. ICU का नाम सुनते ही मरीज़ के परिजनों की टेंशन बढ़ जाती है. मरीज के परिजनों के परेशान होने की आमतौर पर दो वजह होती हैं, एक, मरीज ICU में है यानी तबीयत ज्यादा खराब है और दूसरी टेंशन होती है अस्पताल का मोटा बिल. मरीज के ठीक होने से पहले ही मरीज के परिजनों को लंबा चौड़ा बिल पकड़ा दिया जाता है. इन फाइव स्टार अस्पतालों में एक दिन का किराया हजारों से लाखों रुपये में पहुंच जाता है, लेकिन अब अस्पतालों के ICU में भर्ती किए जाने को लेकर सरकार ने guidelines तैयार की है. मरीज ICU में रहेगा या नहीं ये फैसला अब आप खुद ले सकते है.
क्या है सरकार की गाइडलाइंस में
सरकार ने Guidelines बनाकर तय कर दिया है कि किसी मरीज को ICU में admit करने का सही आधार क्या होना चाहिए. इन गाइडलाइंस को 24 एक्सपर्ट्स की टीम ने मिलकर तैयार किया है. Guidelines में कहा गया है कि-
- अगर मरीज का कोई अंग फेल हो चुका है तो उसे ICU में एडमिट किया जा सकता है.
- ऐसी आशंका है कि मरीज की मेडिकल हालत बिगड़ने वाली है.
- मरीज पूरी तरह होश में नहीं है तो भी डॉक्टर्स मरीज को ICU में भर्ती कर सकते हैं.
- मरीज का blood pressure, pulse or heart rate बहुत असामान्य है.
- मरीज को सांस नहीं आ रही और उसे oxygen, ventilator की जरूरत है.
- मरीज को हर मिनट मॉनिटरिंग की जरूरत है.
- मरीज की कोई बड़ी सर्जरी हुई है या सर्जरी के दौरान कोई दिक्कत हो गई है.
- बड़ी सर्जरी जैसे, पेट की बड़ी सर्जरी, गले या हार्ट की बड़ी सर्जरी, एक्सीडेंट या ब्रेन इंजरी.
- इन सब लक्षणों के आधार पर मरीज को ICU में एडमिट किया जा सकता है.
यह भी तय किस मरीज को नहीं भर्ती कर सकते ICU में
हमने आपको उन आधार के बारे में बताया, जिसको लेकर डॉक्टर्स मरीज को भर्ती कर सकते है. आपके मन में ये सवाल भी आ रहा होगा कि किस मरीज को ICU में भर्ती नहीं किया जा सकता. सरकार ने इसको लेकर भी guidelines में बताया है. अब हम आपको उसके बारे में बताते हैं.
- मरीज का परिवार ICU में मरीज को भर्ती करने से मना कर दे. तो डॉक्टर्स मरीज को भर्ती नहीं कर सकते.
- ऐसे मरीज जिनकी मृत्यु होने वाली हैं और मेडिकल तौर पर उनके इलाज में कोई फायदा संभव ना हो तो भी मरीज को ICU में भर्ती नहीं किया जा सकता.
- अगर आपदा की स्थिति हो और बेड्स सीमित हों तो प्राथमिकता के आधार पर ICU एडमिशन मिले.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी लग गए 8 साल
आमतौर पर मरीज के परिजनों की ये शिकायत होती है कि उनके मरीज को कई दिनों तक ICU में भर्ती रखा, जबकि इसकी जरूरत नहीं थी. किसी की ये शिकायत होती है कि मरीज को जरुरत पड़ने पर ICU बेड नहीं मिला. कई बार तो अस्पतालों में मारपीट की नौबत तक आ जाती है. ऐसा ही एक मामला जब देश की सर्वोच्च अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या हमारे देश में ICU admission को लेकर कोई दिशा निर्देश हैं या नहीं. 2016 में आए इस निर्देश के लगभग 8 सालों के बाद ICU में भर्ती किए जाने को लेकर गाइडलाइंस तैयार हुई है.
- वर्ष 2014 में कोलकाता में एक मरीज को जरूरत होने पर अस्पताल के ICU में बेड नहीं मिला था.
- गंभीर हालत में अस्पताल आई इस महिला मरीज की मौत हो गई थी.
- इसके बाद महिला मरीज़ के परिजनों ने कोर्ट का रूख किया था.
- इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने पूछा था कि ICU एडमिशन को लेकर क्या कोई दिशा-निर्देश हैं या नहीं.
- वर्ष 2014 से चल रहे इस केस की वजह से ही अब सरकार को आईसीयू गाइडलाइंस बनानी पड़ी.
फाइव स्टार होटल बन गए हैं हॉस्पिटल
ये सच्चाई है कि बड़े-बड़े Five star hotel जैसे Private Hospitals में इलाज के नाम पर लाखों रुपये वसूले जाते हैं. इसके बाद भी मरीज के ठीक होने की ना तो कोई गारंटी होती है और ना कोई वारंटी यानी जीरो जिम्मेदारी. अब हम आपको कुछ आंकड़े दिखाते हैं.
- एक अनुमान के मुताबिक, देश में प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के पास कुल 20 लाख बेड्स हैं.
- इनमें से ICU बेड्स की संख्या केवल 1 लाख 25 हजार के आसपास है.
- April 2023 में CGHS यानी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सरकार ने ICU का अधिकतम रेट 5400 रुपए तय किया था. इस रेट में कमरे का किराया और डॉक्टर की फीस शामिल है.
- इसके उलट आम आदमी के लिए भारत में एक प्राइवेट अस्पताल के ICU बेड का औसत खर्च 30 हज़ार रुपए से लेकर 1 लाख रोज़ का होता है.
- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 48 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है.
कमरे, टेस्ट और महंगी दवाओं से लूट
निजी अस्पताल किस तरह से लूटते है ये किसी से छिपा नहीं है. एक मामूली बीमारी में भी मरीज से कई तरह की जांच करवाई जाती है. हो सकता है इस तरह की जांच आपसे भी करवाई हो. मरीज को इस तरह से डराया जाता है कि पुरी दुनिया उसकी आंखों के सामने घूम जाती है. उन्हें अहसास कराया जाता है की अगर जल्दी इलाज नहीं करवाया, तो बहुत देर हो जाएगी. राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण यानी NPPA ने वर्ष 2022 में एक स्टडी की थी. इस स्टडी में बताया गया था कि कैसे थ्री, फोर और फाइव स्टार होटलों से भी महंगी कीमत पर कमरे देकर. बाजार भाव से कई गुना ज्यादा कीमत पर टेस्ट करके और महंगी दवाओं के जरिये मरीजों से लाखों रुपये की उगाही की जाती है. NPPA की इस रिपोर्ट के मुताबिक,
- कई प्राइवेट अस्पताल, MRP से ज्यादा पर दवाओं, सीरिंज और दूसरे मेडिकल उपकरणों को बेचकर उस पर 1200 से 1700 फीसदी का मुनाफा कमाते हैं.
- इस रिपोर्ट से पता चला था कि मरीज के बिल में एक Gloves की कीमत करीब 10 रुपये रखी गई, जबकि अस्पताल ने इस Gloves को महज डेढ़ रुपये में खरीदा.
- एक अस्पताल ने ऑपरेशन के दौरान 1200 ग्लव्स यूज होने की बात कहते हुए एक मरीज से 11 हजार 400 रुपये वसूल लिए.
- ऐसे ही एक अस्पताल ने blood चढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाले cannula को दो रुपये में खरीद कर मरीजों से करीब 1500 रुपये इसके लिए वसूले.
- दिल्ली में जहां MRI के लिए सामान्य Diagnostic Center महज दो हजार रुपये वसूलते हैं, वहीं एक प्राइवेट अस्पताल में प्रति MRI मरीज से 10 हजार रुपये लिए गए.
ऑपरेशन के दौरान Medicine, injection, mask, gloves भी भरपूर मात्रा में मंगाए जाते है. उनका सही से कितना इस्तेमाल होता है वो या तो operation Theatre में मौजूद medical staff जानता है या भगवान. बेचारा मरीज़ तो Anaesthesia लेकर बिस्तर पर लेटा ही रहता है.
सरकार ICU में भर्ती के लिए जो Guidelines लाई है वो समस्या का कितना हल कर पाएगी ये कहना तो मुश्किल है. लेकिन मरीज के परिवार को नई Guidelines से कुछ ताकत जरूर मिली है. हालाकि इस तरह के मामले में सबसे जरूरी है आम लोगों को इन नियमों के बारे में जानकारी होना, जिससे वो इस नियम का लाभ उठा सकें.
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